4 अगस्त को सदमे घोषणा की है कि भारत के सबसे शक्तिशाली नेता सोनिया गांधीको संयुक्त राज्य अमेरिका में सर्जरी से गुजरना करने ..
यू.पी.ए-2 सरकार दुविधा में है। इसकी पुष्टि तब हो गयी जब सरकार ने पचौरी रिपोर्ट पर अभी तक कोई स्टैंड नहीं लिया। ज्ञातव्य है कि सोमवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि सेतु समुद्रम परियोजना पर गठित पर्यावरणविद् डॉ. आर.के. पचौरी के नेतृत्व वाली उच्चस्तरीय समिति ने अपनी रिपोर्ट में समुद्री नहर के लिए वैकल्पिक मार्ग नंबर-4 ए पर्यावरणीय और आर्थिक दृष्टि से अनुकूल न पाते हुए खारिज करते हुए कहा है कि लिए रामसेतु का रास्ता ही बचा है जिसे तोड़े बिना अब नहर बनाना संभव नहीं है। इस कमेटी के अनुसार सेतु समुद्रम परियोजना के लिए पौराणिक राम सेतु को छोड़कर वैकल्पिक मार्ग आर्थिक एवं पारिस्थितिकी रूप से व्यावहारिक नहीं है। अपनी रिपोर्ट में समिति ने जोखिम प्रबंधन के मुद्दे पर विचार किया और पाया कि तेल रिसाव से पारिस्थितिकी को खतरा पैदा होगा। रामसेतु-मसले पर अपना हाथ जला चुकी केंद्र सरकार ने अब फूंक-फूंककर कदम उठा रही है। इसी के चलते उसने पचौरी रिपोर्ट पर अभी कोई स्टैंड नहीं लिया है। सॉलिसिटर जनरल आर.एफ. नरीमन ने सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस एच.एल. दत्तू की खंडपीठ को बताया कि रिपोर्ट कैबिनेट के सामने रखी जाएगी। अदालत-पीठ ने परियोजना के आगे के घटनाक्रम के बारे में जानकारी देने के लिए केंद्र सरकार को आठ हफ्ते का और समय दिया है। ध्यान देने योग्य है कि सुप्रीम कोर्ट में महत्वाकांक्षी सेतु समुद्रम परियोजना के खिलाफ दायर कई याचिकाओं के चलते राम सेतु का मुद्दा न्यायिक निगरानी में आया।
क्या है रामसेतु मामला : भारत के दक्षिणपूर्व में रामेश्वरम और श्रीलंका के पूर्वोत्तर में मन्नार द्वीप के बीच चूने की उथली चट्टानों की चेन है, इसे भारत में रामसेतु व दुनिया में एडम्स ब्रिज के नाम से जाना जाता है। इस पुल की लंबाई लगभग 48 किमी है तथा यह मन्नार की खाड़ी और पॉ क स्ट्रेटको एक दूसरे से अलग करता है। इस क्षेत्र में समुद्र बेहद उथला होने के कारण जल यातायात प्रभावित होता है। कहा जाता है कि 15 शताब्दी तक इस ढांचे पर चलकर रामेश्वरम से मन्नार द्वीप तक जाया जा सकता था लेकिन समुद्री-तूफानों ने यहां समुद्र को कुछ गहरा कर दिया। पूर्वी एशिया से भारत आने वाले जहाजों के लिए वैकल्पिक मार्ग बनाने हेतु सेतुसमुद्रम परियोजना का प्रादुर्भाव हुआ जिसमें 30 मीटर चौड़े, 12 मीटर गहरे और 167 मीटर लंबे चैनल के निर्माण का प्रस्ताव है। इस योजना का उद्देश्य हिंद महासागर में पाक जलडमरूमध्य के बीच एक छोटा रास्ता बनाना है।
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सरकार की नियत पर सवाल : सरकार भले ही हलफनामे दायर कर यह स्वीकारती रहे कि वह सभी धर्मो का सम्मान करती है परन्तु उसकी नियत पर संघ-परिवार इस मुद्दे पर लगातार सवाल खड़े करता रहा है। ध्यान देने योग्य है कि 2008 में दायर अपने पहले हलफनामे पर कायम रहेगी जिसे राजनीतिक मामलों की मंत्रिमंडल समिति ने मंजूरी दी थी जिसमे कहा गया था कि सरकार सभी धर्मों का सम्मान करती है। विभिन्न देशो की प्राचीन धरोहरों जैसे चीनी-दीवार, स्टेचू ऑफ लिबर्टी, बकिग्घम पैलेस ,आइफेल टावर, लन्दन ब्रिज आदि का हवाला देते हुए कहते है संघ-परिवार का तर्क है कि विकास के नाम पर जहाजरानी को विकसित करने हेतु इस अत्यंत प्राचीन धरोहर को को नष्ट कर देना कितना उचित है ? अगर कुतुबमीनार को बचाने के लिए मेट्रो के के रेल मार्ग में परिवर्तन किया जा सकता है , ताजमहल की सुन्दरता को बचाने हेतु वहा चल रहे कारखानों को बंद करवाया जा सकता है, संग्रहालयो में रखी गई प्राचीन वस्तुओ की देख-रेख पर करोडो रूपये खर्च किये जाते है तो इस प्राचीन धरोहर जो कि करोडो लोगो की आस्था का केंद्र है को तोड़ने हेतु सरकार करोडो रूपये क्यों खर्चा करना चाह रही है। केंद्र सरकार अपने इस कृत्य से किसे लाभ पहुचना चाहती है यह अपने आप में प्रश्न चिन्ह है। इससे सरकार की नियत पर सवाल खड़ा होना स्वाभाविक है।
अब तक की कार्रवाई : सेतुसमुद्रम परियोजना विवाद इस समय सुप्रीम कोर्ट के अधीन है। अदालत ने अप्रैल में केंद्र सरकार को रामसेतु को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने या न करने के बारे में जवाब मांगा था। इससे पूर्व, 19 अप्रैल को केंद्र सरकार ने राम सेतु को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने पर कोई कदम उठाने से इनकार कर दिया था और इसकी बजाय सुप्रीम कोर्ट से इस पर फैसला करने को कहा था। सरकार ने कहा था कि वह 2008 में दायर अपने पहले हलफनामे पर कायम रहेगी जिसे राजनीतिक मामलों की मंत्रिमंडल समिति ने मंजूरी दी थी और इसमें कहा गया था कि सरकार सभी धर्मों का सम्मान करती है। केंद्र द्वारा पहले दो हलफनामे वापस लिए जाने के बाद संशोधित हलफनामा दायर किया गया जिनमें भगवान राम और राम सेतु के अस्तित्व पर सवाल उठाए गए थे। यहाँ यह ध्यान देने योग्य है कि भगवान राम और राम सेतु के अस्तित्व पर सवाल उठाए जाने पर संघ-परिवार के रोष के बाद शीर्ष अदालत ने 14 सितंबर 2007 को केंद्र को 2,087 करोड़ रुपये की परियोजना की नए सिरे से समीक्षा करने के लिए समूची सामग्री के फिर से निरीक्षण की अनुमति दे दी थी।
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सियासत का पारा चढ़ा : पचौरी समिति की रिपोर्ट को लेकर सियासत भी अब गरमाने लगी है। भारत-श्रीलंका के बीच समुद्री नहर के प्रोजेक्ट पर राजनैतिक और धार्मिक विवाद फिर गहराने के असार हैं। तमिलनाडु की जयललिता की सरकार ने कहा कि रामसेतु को नहीं टूटने देंगे। उच्चतम न्यायालय द्वारा रामसेतु पर केन्द्र का रुख पूछने के एक दिन बाद तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता ने 28 मार्च 2012 को केन्द्र सरकार से इस सेतु को जल्द राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने का अनुरोध किया जिसके पक्ष में भाजपा भी है। सेतु को तोड़कर सेतु समुद्रम परियोजना को लागू करने के लिए 2014 में होने वाले लोकसभा के चुनावो को देखते हुए यूं.पी.ए.-2 की सरकार भगवान राम पर राजनीति करने हेतु विपक्ष को मौका नहीं देना चाहेगी। ज्ञातव्य है कि इससे पूर्व राज्य की करूणानिधि की द्रमुक सरकार पूरी तरह रामसेतु को तोड़ने के पक्ष में थी। उसका कहना था कि अलाइनमेंट नंबर-6 समुद्री नहर बनाने के लिए ज्यादा उपयुक्त है। लेकिन धार्मिक विश्वास और आस्थाओं को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 22 जुलाई 08 को 2400 करोड़ रुपये के इस प्रोजेक्ट पर स्टे लगा दिया था। प्रोजेक्ट का विरोध कर रहे याचिकाकर्ताओं ने एक वैकल्पिक मार्ग सुझाया था। कोर्ट ने रामसेतु को बचाने के लिए इस वैकल्पिक मार्ग की उपयुक्तता का अध्ययन करने का आदेश दिया था। सियासत का ऊँट किस करवट बैठेगा यह तो समय के गर्भ में है परन्तु विकास के नाम पर आस्था के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहिए।
राजीव गुप्ता
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