मीडिया में जिस अग्निवेश की बदनीयती और बेईमानी के बेनकाब होने के बाद उसको अन्ना हजारे ने अपने से अलग किया है उस भगवाधारी के..
मिशन महंगाई और अर्थशास्त्र : गरीब तो क्या, मध्यम वर्ग के मुँह का निवाला तक छीन लिया

मिशन महंगाई और अर्थशास्त्र डा. विनोद बब्बर यूपीए सरकार ने अपनी एक और सालगिरह क्या मनाई, जनता की मुसीबत और बढ़ गई। सब्जियों, दालों, बिजली, पानी के बिल, दूध आदि के दाम आसमान को छू रहे थे कि पैट्रोल के दामों में भी अभूतपूर्व वृद्धि करते हुए साढ़े सात रूपये प्रति लीटर का बोझ डाला गया। अब इसके बाद डीजल, रसोई गैस और मिट्टी के तेल के दाम बढ़ाने के कयास लगाये जा रहे हैं। सारा देश हाहाकार कर रहा है इसकी पुष्टि 31 मई को आहूत सफल भारत बंद भी करता है। ऐसे में सरकार की आंख-कान कितने सक्रिय हैं इसकी पता जल्द ही लगना चाहिए कि वह दामों में वृद्धि वापस लेती है या अपने मिशन महंगाई पर कायम रहती है।
सरकार का कहना है कि 80 प्रतिशत कच्चा तेल विदेश से मंगाना पड़ता है और भुगतान डॉलर में करना पड़ता है। चूंकि एक डॉलर 56 रुपए का हो चुका है। इसलिए ज्यादा कीमत देनी पड़ रही है। इससे आयात महंगा पड़ रहा है। जबकि सच्चाई यह नहीं है। 15 मई 2011 को जब पेट्रोल 5 रुपए महंगा हुआ था, तब कच्चा तेल 114 डॉलर (एक डॉलर की कीमत थी 46 रुपए) प्रति बैरल था। इसका सीधा-सीधा अर्थ है कि तबं 5244 रुपए चुकाने पड़ते थे। आज क्रूड 91.47 डॉलर प्रति बैरल होने के कारण (डॉलर 56 रुपए) के बावजूद एक बैरल तेल 5066 रुपए में मिल रहा है। यानी कच्चा तेल 148 रु प्रति बैरल सस्ता मिल रहा है। इसलिए सरकार का दावा कहीं नहीं ठहरता।
अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए दूसरी ओर सरकार पर कालेधन की वापसी का दबाव है लेकिन जिस तरह पिछले संसद सत्र में श्वेतपत्र पेश करने की औपचारिकता निभायी गई उससे कौन विश्वास करेगा कि इरादा सचमुच भ्रष्टाचार से संघर्ष का है। महंगाई लगातार नये कीर्तिमान स्थापित कर रही है। बताया जा रहा है कि मुद्रास्फिति का पिछला रिकार्ड अर्थशास्त्री वित्तमंत्री मनमोहन सिंह के नाम था तो महंगाई और रूपये के मूल्य में जबरदस्त गिरावट का ताजा रिकार्ड भी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल को ही प्राप्त हो रहा है। आश्चर्य है कि जब हमारे छोटे-छोटे पड़ोसी देशों की मुद्रा तक अप्रभावित रही हो हमारी मुद्रा के ओंधे मुंह गिर रही है।
IBTL Columns
महंगाई के दुष्चक्र से क्या बड़े और क्या छोटे, सभी परेशान हैं। गर्मियों की छुट्टियॉ आधी बीत चुकी है परंतु टूर, टैवर्ल्स, होटल वाले मंदी की शिकायत कर रहे है। पिछले दिनों किये गए एक सर्वेक्षण के अनुसार आर्थिक मंदी और मंहगाई के कारण देश में कुपोषण बढ़ रहा है। पिछड़े क्षेत्रो की महिलाओं तथा बच्चों पर महंगाई का सर्वाधिक प्रभाव पड़ रहा है। यदि जल्द ही इस ओर ध्यान न दिया गया तो यहॉ भी स्थिति अफ्रीकी देशो जैसी हो सकती है। सरकारी प्रवक्ता इस सर्वेक्षण के बिल्कुल उल्ट 'सब हरा हरा है' जैसी गुलाबी तस्वीर प्रस्तुत कर रहे हैं।
पिछले बुछ वर्षों से सरकार जिस बढ़ती विकास दर पर फूली नहीं समाती थी इस बार तो वह भी धोखा दे रही है अर्थात् विकास दर में गिरावट की बात स्वयं वित्त मंत्री भी करते हैं। यह अर्थशास्त्र का छोटा सा विद्यार्थी भी जानता है कि जब भ्रष्टाचार और महंगाई विकास दर के प्रभाव को न केवल समाप्त कर देती है बल्कि नीचे की ओर ले आती है, इस तथ्य को यू.पी.ए. सरकार के नीति निर्माता समझने को तैयार नहीं है। एक किसान ने साधारण से उदाहरण से यह बात समझाते हुए बताया कि उसके बेटे का वेतन 10 प्रतिशत बढ़ गया पर महंगाई उससे भी अधिक तेजी से बढ़ने के कारण अब वह गांव में मनीआर्डर नहीं भेज पाता क्योंकि बढे हुए वेतन पर खर्चे भारी पढ़ने लगे।
एक अन्य किसान ने कृषि और गांव की अनदेखी के कारण अनाज उत्पादन को झटका लगने की बात कहीं क्योंकि छोटे किसान को खाद, बीज, सिंचाई के लिए किसी प्रकार की मदद नहीं मिलती, किसानो के कर्ज माफी की असलियत भी खुद सरकार के रिजर्व बैंक ने खुद बयान कर दी है। कर्ज माफी दिखावा साबित हुई है। यू.पी.ए. के सांझा कार्यक्रम में गांवो के विकास के लिए जिन उपायों की चर्चा की गई थी, वे पूरे नहीं हुआ। सरकार बहुराष्ट्रीय कम्पनियों और परमाणु करार के लिए तो बेकरार है पर गरीब किसानों की आत्महत्याओं को हल्कें से ले रही है। देश में कृषि भूमि लगातार कम हो रही है क्योंकि कहीं हजारो एकड़ जमीन पर 'सेज' स्थापित किए जा रहे है तो कहीं आवासीय कालोनियां। रासायानिक खादो के प्रयोग के कारण भूमि बेकार हो रही है तो कही सूखे और बाढ़ ने फसल को चौपट कर रही है। ऐसे में कृषि उत्पादन को बढाने के लिए क्या किया जा रहा है, इस पर सरकारें मौन हैं।
यदि उत्पादन गिरेगा तो महंगाई और अधिक विकराल रूप धारण कर सकती है, तब पहले से ही त्रस्त आम आदमी का क्या होगा? इस वर्ष गेहू की अच्छी फसल हुई है लेकिन अनाज के भंडारण की उचित व्यवस्था न होने के कारण आज तक अनाज खुले में पड़ा है जो आंध, तूफान, बरसात से नष्ट होना तय है। क्या यह सरकार की जिम्मेवारी नहीं कि किसान को उसके खून-पसीने को उचित मूल्य दिलाने की व्यवस्था करे तो दूसरी और आम आदमी को आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति उचित मूल्य पर सुनिश्चित करे। सत्ता के दलालों की धांधली पर चुप्पी तोड़ते हुए मनमानी पर नियंत्रण, मूल्य नियंत्रण प्रणाली जैसे कदमों से महंगाई के पर कतरे जा सकते है, परंतु जिस सरकार ने सार्वजनिक वितरण प्रणाली अर्थात सरकारी राशन की दुकानों को ए.पी.एल और बी.पी.एल की रेखाएं खिंचकर लगभग पंगु बना दिया हो, उनसें ज्यादा उम्मीद नहीं की जा सकती हैं। योजना आयोग बेशक 23 रुपये कमाने वाले को गरीबी रेखा के ऊपर बताये लेकिन उन्हें सोचना चाहिए कि क्या गरीबी रेखा का संबंध केवल आय से है या महंगाई से भी उसका कुछ लेना देना है?
आज कुछ कर दिखाने की बेला है क्योकि 'कुछ कर दिखाने' की जिम्मेवारी जल्द ही (चुनावों में?) महंगाई से परेशान जनता के पास भी आने ही वाली है। महंगाई को किसी संकीर्ण दृष्टिकोण से देखने की बजाय 'बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय' काबू में करना प्रथम कर्तव्य है। इसके लिए हर संभव कारगर कदम उठाना चाहिए क्योकि भूख और बेबसी का अर्थशास्त्र अलग होता है, जिसका एक रास्ता अराजकता की ओर भी जाता है।
Share Your View via Facebook
top trend
-
जब अपने मंच पर चार-पांच ईमानदार भी नहीं जमा कर पाए अन्ना, तो भ्रष्टाचार से क्या खाक लड़ेंगे?
-
फेसबुक ने दिया धोखा लॉग आउट होने के बाद भी चलता रहता था अकाउंट
न्यूयॉर्क, एजेंसी : आपकी चहेती सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक आपको निजता और सुरक्षा देने के लिए लगातार नई-नई एप्लीकेशन और प्र..
-
अन्ना-आंदोलन कोरा गुब्बारा तो नहीं
अन्ना टीम के लोगों ने जब से हिसार पर मुंह खोलना शुरू किया है, कई तात्कालिक और मूलभूत सवाल उठ खड़े हुए हैं। जैसे यह कि हिसा..
-
२जी घोटाले में धारा-४०९ के तहत (१४ वर्ष) उम्रकेद की सम्भावना, आरोप तय
यु.पी.ए - II अब भ्रस्टाचार के आरोपों में घिरती दिखाई दे रही है, अब सरकार के लिए साख बचाए रखना भी मुश्किल हो रहा है, दूसरी ..
-
कश्मीर पर प्रशांत भूषण के विवादास्पद बयान के चलते उनकी पिटाई
टीम अन्ना के सदस्य प्रशांत भूषण पर आज एक युवक ने सुप्रीम कोर्ट के सामने मौजूद उनके चैंबर में ही हमला कर दिया। हमला करने वा..
what next
-
-
सुनहरे भारत का निर्माण करेंगे आने वाले लोक सभा चुनाव
-
वोट बैंक की राजनीति का जेहादी अवतार...
-
आध्यात्म से राजनीती तक... लेकिन भा.ज.पा ही क्यूँ?
-
अयोध्या की 84 कोसी परिक्रमा ...
-
सिद्धांत, शिष्टाचार और अवसरवादी-राजनीति
-
नक्सली हिंसा का प्रतिकार विकास से हो...
-
न्याय पाने की भाषायी आज़ादी
-
पाकिस्तानी हिन्दुओं पर मानवाधिकार मौन...
-
वैकल्पिक राजनिति की दिशा क्या हो?
-
जस्टिस आफताब आलम, तीस्ता जावेद सीतलवाड, 'सेमुअल' राजशेखर रेड्डी और NGOs के आपसी आर्थिक हित-सम्बन्ध
-
-
-
उफ़ ये बुद्धिजीवी !
-
कोई आ रहा है, वो दशकों से गोबर के ऊपर बिछाये कालीन को उठा रहा है...
-
मुज़फ्फरनगर और 'धर्मनिरपेक्षता' का ताज...
-
भारत निर्माण या भारत निर्वाण?
-
२५ मई का स्याह दिन... खून, बर्बरता और मौत का जश्न...
-
वन्देमातरम का तिरस्कार... यह हमारे स्वाभिमान पर करारा तमाचा है
-
चिट-फण्ड घोटाले पर मीडिया का पक्षपातपूर्ण रवैया
-
समय है कि भारत मिमियाने की नेहरूवादी नीति छोड चाणक्य का अनुसरण करे : चीनी घुसपैठ
-
विदेश नीति को वफादारी का औज़ार न बनाइये...
-
सेकुलरिस्म किसका? नरेन्द्र मोदी का या मनमोहन-मुलायम का?
-
Comments (Leave a Reply)