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अमर शहीद लांस नायक हेमराज और लांस नायक सुधाकर सिंह को आंसुओं के साथ समर्पित-
अमन, भाईचारा, मानवाधिकार, अभिव्यक्ति की आज़ादी... ये कुछ ऐसे शब्द हैं जिनका हमारे देश मे खतरनाक तरीके से मनमाने ढंग से प्रयोग होता है। स्वघोषित बुद्धिजीवियों की फौज इन शब्दों की ठेकेदारी करती है। बहादुर सैनिकों के पवित्र रक्तिम शरीरों का ‘रेड कार्पेट’ बिछाया जाता है, और इस तमाशे को नाम दिया जाता है- ‘अमन की आशा’।
सीजफायर के नियम तो बनाए ही इसलिए हैं कि हम उनका पालन करें, आप उन्हे तोड़कर हमारे सीने पर गोलियां चलाओ। अमर शहीद लांस नायक हेमराज और लांस नायक सुधाकर सिंह जैसे हमारे बहादुर बेटों पर पीछे से वार करो, उनके सर काटकर ले जाओ, या कारगिल युद्ध के शहीद कैप्टन सौरभ कालिया की तरह यातना देकर मार डालो; हम उफ़्फ़ तक नहीं करेंगे।
वीरांगनाओं की मांग सूनी हो या उनके माँ-बाप की ज़िंदगी शहीदों को न्याय दिलाने की कोशिशों मे घिस जाए… हमे क्या? हम तो इन शहीदों के नन्हें बच्चों की तरफ भी देखेंगे तक नहीं। पिता की गोद के लिए रोते हैं तो रोएँ, उनके प्यार के लिए तरसें सारी ज़िंदगी हमारी बला से! हमने कोई ठेका थोड़ी ले रखा है हर एक के आंसुओं का? भई हमे सोहराबुद्दीन, कसाब और अफजल गूरू जैसे ‘मासूमों’ के लिए भी तो टसुए बहाने हैं या नहीं?
सैनिक अधिकारों की बात करने वाले अज्ञानियों… यह बुद्ध, महावीर और गांधी का देश है। हम कट्टर अहिंसावादी हैं। अब देखो, भारतीय सेना कड़ी बौद्धिक और शारीरिक परीक्षाओं द्वारा पूरे देश के नायाब हीरे चुनकर जवानों की भर्ती करती है। कहते हैं कि भारतीय जवानों की शक्ति और कौशल के आगे दुनिया की हर सेना फीकी है! इसलिए तो हम इन जवानों के हाथ कथित ‘मानवाधिकारों’ की रस्सी से बांधने के बाद ही उन्हे एके 56 और आधुनिक हथियारों से लैस आतंकवादियों से लोहा लेने भेजते हैं। सेना को खुली छूट देंगे तो एक ही दिन मे सारे आतंकवादियों समेत पूरे पाकिस्तान का सफाया नहीं करके आ जाएगी?
सैनिकों को हम भले ही उनके बुढ़ापे मे भी पेंशन के लिए सरकारी दफ्तरों के चक्कर कटवाएँ मगर आतंकवादियों को हम आईएएस ज़रूर बना देते हैं। अरे भई वो आतंकी भी तो ‘बेचारे गुमराह बच्चे’ हैं ना?
हम दान की महिमा मे भी बहुत विश्वास रखते हैं! तो लीजिये, हमने अपना दो-तिहाई कश्मीर दान कर दिया पाकिस्तान के नाम ताकि वहाँ आतंकवाद की बड़ी-बड़ी फैक्ट्रियाँ बनाई जा सकें। और फिर उन फैक्ट्रियों मे तैयार आतंकवाद के परीक्षण के लिए भारत के सवा अरब आम आदमी तो है ही ! जब जी चाहो बम रखो, 100-200 भारतीयों को मार डालो। हमारी सरकार ने हमे प्रयोगशाला के चूहे मान रखा है शायद! जो चाहे आए, हमे मारे और चला जाए। ऊपर से तुर्रा और कि ये “कश्मीर का, या अमुक दंगों का बदला है”। यहाँ तक कि 11/9 के बाद अमेरिकन कार्रवाई का बदला भी हमने ही चुकाया। मतलब आतंक का शिकार होकर भी गलती हमारी ही तो है!
हाँ हमारी सरकार ज़रूर पाकिस्तान के विरुद्ध कड़े कदम उठा रही है। क्या आपको पता नहीं, भारत सरकार ने पाकिस्तान को ‘कड़ी कार्रवाई’ की चेतावनी देते हुए कहा है- “अगर यही हरकतें जारी रखोगे तो हम बात नहीं करेंगे आपसे!” अरे बाप रे! इतनी ‘बड़ी’ चेतावनी? मानो भारत सरकार पाकिस्तान की महबूबा हो और वह बात ना करे तो पाकिस्तान जुदाई के ग़म मे मर जाएगा।
अजी हमने तो अमन की आशा मे भूपेन्द्र चौबे जैसे ‘प्रबुद्ध’ लोग भी पाल रखे हैं जो किसी साधारण भारतीय के पाकिस्तान पर उंगली उठाते ही यह कहते हुए काट खाने को दौड़ते हैं कि – “इस बार भारत ने पहले सीमा उल्लंघन किया?” फिर टाइम्स ऑफ इंडिया तो अमन के कबूतर उड़ा ही रहा है और पाकिस्तानी फौज बड़े मजे से इन कबूतरों को भून-भुना कर चबा रही है।
यहाँ एक माँ रो-रो कर गुहार लगाती है कि भारत की मुर्दा सरकार उसके शेर बेटे का सर तो ले आए! पर हम तो मौन ही मौन सिंह हैं! आखिर ‘अमन’ को कायम जो रखना है!
इस सबके बीच, मैं सर झुकाए बैठी हूँ। उठाऊँ कैसे? अमन के चक्कर मे भारतीय सैनिकों को ‘बर्बर दानव’ तक कह डालने के बावजूद वे हमारी रक्षा के लिए माइनस 40 डिग्री की ठंड मे भी डटे हैं। देश के लिए शहीद हुए वीरों की ओज भरी आँखें हमें देखकर व्यंग्य से हंस रही हैं। लगता है जैसे हवा भी चीख-चीख कर कह रही हो- “तुमलोग कायर हो… कायर! बिलकुल कायर।” कई शताब्दियों दूर खड़े औघड़ संत कबीर की धिक्कार भरी आवाज़ आज भी हृदय को चीरती जा रही है... गा रही है- “साधो! ये मुरदों का गाँव ”
क्या सचमुच?
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