17 मई, 2012 को कोटा (राजस्थान) के घोड़े वाले बाबा चैराहा स्थित टीलेश्वर महादेव मंदिर के सभागार में राष्ट्रीय स्वाभिमान आ..

अथः श्री थोरियम घोटाला कथा और राम सेतु से आगे ...
पूर्व लेख में मुख्यतः इस घोटाले की 'परिकल्पना' बतायी गयी थी, पृष्ठभूमि समझाई गयी थी, बताया गया की कैसे अत्यधिक सुनियोजित, सामरिक रूप से अत्यंत संवेदनशील एवं राष्ट्र-कल्याणकारी योजना अंतराष्ट्रीय षड्यंत्रों का शिकार बनी। अब इस षडयंत्र को कैसे क्रियांवित किया आया गया इसकी बात करते हैं। किंतु उसके पूर्व इस घोटाले के अर्थशास्त्र पर पुनः दृष्टि डालते हैं- ४८ लाख करोड़ की हानि का जो आकलन अभी तक किया जाता रहा है वह थोरियम के १००$ प्रति टन के अनुमानित मूल्य पर आधारित है।
'दी स्टेटमेंट समाचारपत्र' ने (The Great Thorium Robbery) सबसे पूर्व इस हानि का आर्थिक आंकलन किया था, वह उसने विशेषज्ञों के अनुमान के आधार पर बताया था। किंतु १००$ प्रति टन यह तो वह मूल्य है जिस पर की *आई.आर.ई.एल.(IREL) दूसरी भारतीय सरकारी एजेंसियों जैसे *एन.पी.सी.आई.एल. (NPCIL) आदि को भारत के अंदर ही भारतीय परमाणु योजना के अंतर्गत विक्रय करता है।
इसका अंतराष्ट्रीय मूल्य यु.एस.ऐ. के जिओग्रफिकल सर्वे के आकड़ों ( minerals.usgs.gov/minerals... ) को देख ज्ञात होता है। उपरोक्त भौगोलिक सर्वेक्षण अमेरिका (जिओग्रफिकल सर्वे ऑफ़ अमेरिका) के पृष्ठ संख्या 2 पर 'मूल्य' (price) - अनुच्छेद में 99.9% शुद्ध थोरियम का मूल्य 300$ प्रति किलोग्राम अनुमानित करता है। भारत से निकलने वाला थोरियम 99.92-99.96% तक शुद्ध होता है, इसके अनुसार घोटाले करके बाहर भेजे गए थोरियम का कुल मूल्य 150,000,000000,00000000 रु० आती है - एक सौ पचास सहस्त्र लाख करोड़ ‼
ये आंकड़े इसलिए भी विश्वसनीय है क्यूंकि अमेरिका स्वयं अपना जो भी थोडा-बहुत थोरियम बाहर निर्यात करता है वह इसी मूल्य अथवा इससे अधिक पर करता है। इसी आलेख के अगले पृष्ठ पर विदेशी व्यापर (फॉरेन ट्रेड) अनुच्छेद में सन 2010 के थोरियम निर्यात के आकड़ें मिल जायेंगे।
जिनके अनुसार कुल 1500 किलोग्राम थोरियम अमेरिका ने 2010 में निर्यात किया जिसका मूल्य 60500$ था अर्थात 403.33$ प्रति किलोग्राम ‼ स्पष्ट है की अंतराष्ट्रीय बाज़ार में थोरियम का मूल्य कम से कम 300$ प्रति कि.ग्रा. प्रचलित एवं मान्यता-प्राप्त है।
यह जानना और भी दिलचस्प होगा कि कैसे इस इतने बड़े घोटाले को अंजाम दिया गया और फिर भी बरसों तक चुप्पी बनी रही, किसी को कोई खबर तक नहीं लगी। कहानी बड़ी है तो थोडा पीछे चलते हैं। भारत में 1960 के दशक में जब थोरियम के निर्यात पर प्रतिबन्ध लगा तो देश के तटवर्ती भागों में पाए जाने वाली रेत जो न केवल थोरियम बल्कि कई और दुर्लभ मृदा तत्वों (rare earth metals) जैसे TITANIUM और SILLIMANITE जैसे अयस्कों से लैस थी, जिसके पूरे प्रबंधन कि जिम्मेवारी एक सरकारी उपक्रम (IREL) के हाथों में दे दी गयी ताकि निर्यात-प्रतिबंध प्रभावी तरीके से लागू किया जा सके एवं इन संवेदनशील तत्वों पर पूरी तरह से सरकारी नियंत्रण रहे।
ये व्यवस्था पूरी मुस्तैदी के साथ करीबन 40 सालों तक बनी रही। IREL को इस बात के लिए विशेष रूप से अधिकृत किया गया कि थोरियम सम्बंधित समस्त प्रक्रियाएं सिर्फ और सिर्फ इसी के जरिये हो। 2005 तक ये व्यवस्था भी बड़ी मुस्तैदी के साथ चलती रही। इतने वर्षों तक भारत के पूरे तटवर्ती भाग में समस्त खनन क्रियाएं DAE (Department of Atomic Energy ) के अनुमति और संज्ञान में इसी IREL के द्वारा ही हुई।
IREL अपना व्यवसाय रेत में उपलब्ध दूसरे दुर्लभ मृदा तत्वों एवं अयस्को (rare earth metals and ores ) जैसे LEUCOXENE, GARNET, RUTILE इत्यादी को निर्यात कर चलाता था जबकि इस प्रक्रिया में निकले थोरियम को DAE (Department of Atomic Energy) या उससे जुडी एजेंसियों को बेच देता था जो कुछ समय तक तो भविष्य के लिए संरक्षित की जाती रही, फिर देश में थोरियम रिएक्टर बनने के बाद उसमे आपूर्ति कि जाने लगी। ये व्यवस्था सालों तक कायम रही।
सन 2005 तक परिस्थितियाँ बदलने लगीं सबसे पहले भारत सरकार ने एक अधिसूचना (SO 61-E dated 20 Jan, 2005) जारी कर थ्रोरियम-बहुल मृदा को परमाणु उर्जा अधिनियम 1962 के उस 'Prescribed Elements' की सूची से बाहर कर दिया जिसमे रखकर थोरियम के निर्यात को बंद करना सुनिश्चित किया जा सका था। फिर तुरंत परमाणु आणविक उर्जा विभाग ने भी अपनी निर्यात-निति (Guidelines for Nuclear Transfers) में उस नवीन सूची के अनुसार ऐसी तबदीली कर दी जिससे IREL के वह सारे एकाधिकार एक प्रकार से ध्वस्त हो गए। निर्यात-निति के नए प्रावधानों के अनुसार अब तटवर्त रेत के दोहन में IREL के अलावा अन्य व्यावसायिक उपक्रम भी आ सकते है और उन्हें निर्यात भी कर सकते है।
लगभग उसी समय भारतीय खनन ब्यूरो ने उन तटवर्ती क्षेत्रों में पाए जाने वाले rare-earth-metals के दोहन के लिए लाईसेंस देना शुरू किया जो परमाणु आणविक उर्जा विभाग के नए निर्यात-निति के अनुसार अब संभव था। बड़े आश्चर्यजनक रूप से तक़रीबन सारे मेटल्स के सारे लाईसेंस एक ही कंपनी (वी वी मिनरल्स लिमिटेड) को दे दिए गए। यह कंपनी अपने वेबसाइट (V.V. Mineral) पर इस बात की बड़े गर्व से घोषणा भी करती है ये भारत की पहली और एकमात्र कंपनी है जिसे ऐसे लाईसेंस मिले है। खनन ब्यूरो ने ऐसा क्यूँ किया ये एक अलग गाथा है। अब इस कंपनी के द्वारा बाकी पदार्थों के दोहन की प्रक्रिया में जो थोरियम निकलेगा उसका क्या होगा-इस बारे में लाईसेंस के प्रावधानों में चुप्पी साध ली गयी।
अब आते हैं इस कंपनी पर- वी वी मिनरल्स लिमिटेड इस कंपनी का व्यावहारिक मुख्यालय है तिरूनेवेली में २००६ में पहली बार इसे रेत-दोहन के लाईसेंस मिले, इस आलोक में ये तथ्य बड़ा रोचक है की उसी वर्ष इस कंपनी ने अपने भारी भरकम और वर्षों से इस व्यवसाय में लगे प्रतिद्वंदी IREL को पीछे छोड़ते हुए बेस्ट एक्सपोर्टर अवार्ड हासिल कर लिया। जबकि सालों से ये अवार्ड इससे पहले IREL (IREL.gov.in) को मिलता रहा था।
यह बड़ा आश्चर्य है की किसी व्यवसाय में सालों से लगे, सरकारी विश्वसनीयता और एकाधिकार प्राप्त,बरसों के ग्राहक-सम्बन्ध, व्यावसायिक पहचान वाले उपक्रम को एक ऐसा प्रतिद्वंदी महज़ 6 महीनों में पछाड़ दे जो व्यवसाय में बिलकुल अभी आया है, जिसे अंतर-राष्ट्रीय बाज़ार पर अभी ग्राहक ढूंढने हो एवं अंतर-राष्ट्रीय बाज़ार की बेहद उच्च दर्जे की प्रतिद्वंदिता के बीच अपनी विश्वसनीयता भी कायम करनी हो !!
ऐसा कैसे संभव है की कोई कंपनी इतने कम समय में अंतर-राष्ट्रीय बाज़ार में तुरंत अपने ग्राहक खोज ले। साल भर के भीतर इतनी विशाल मात्रा में रेत का निर्यात कर दे। ऐसा लगता है की वी.वी. मिनरल्स के अंतर-राष्ट्रीय ग्राहक पहले से इनसे रेत खरीदने को तैयार बैठे हो और लाईसेंस मिलने का बस रस्म-अदायगी के तौर पर इंतज़ार कर रहे हो। साथ ही इनके रेत में ऐसा क्या था कि अमेरिका, सउदी और यूरोप के लोग इनसे रेत लेने को इतने उतावले हो गए और इतनी बड़ी मात्रा में रेत का ऑर्डर दे डाला।
आरोप यह भी है की इस कंपनी ने न केवल वहाँ थोरियम को चोरी-छिपे निकाल के बेचा जहाँ इन्हें लाईसेंस मिला है अपितु इन्होनें थोरियम के लिए वहाँ भी रेत का अवैध खनन किया जो इनके लाईसेंस क्षेत्र के बाहर था। जबकि इस तरह के अवैध-उत्खनन का क्षेत्र इनके लाईसेंसी क्षेत्र से ज्यादा बड़े हैं। हद तो तब हुई जब यह चर्चित कदोकदन परमाणु प्लांट के नजदीक में ही इस तरह का अवैध-खनन करने लगे जो न केवल इनके लाईसेंस क्षेत्र से बाहर है बल्कि भारत सरकार द्वारा 'प्रतिबंधित-खनन क्षेत्र-No Mines Land' घोषित है। चुकी मामला परमाणु प्लांट से जुड़ा था एवं वहाँ उस न्युक्लेयर प्लांट के प्रचंड विरोध के कारण पूरे देश की मीडिया और एन.जी.ओ. इकट्ठा थे तो ये मामला प्रकाश में आ गया एवं अभी पिछले सप्ताह ही मद्रास हाई कोर्ट के मदुरै बेंच ने इस कंपनी को कड़ी फटकार (HC notice on quarries near Kudankulam nuclear plant) लगाते हुए वहाँ इनके द्वारा की जा रही माईनिंग का काम रोक दिया है। लेकिन अभी भी इनका ऐसा खेल कई सुदूर तट-भागों जैसे तिसैन्यविलाई, नवलादी, कोलाचेल जैसे कई भागों में निर्बाधित रूप से जारी है न तो यहाँ से निकाली गई रेत का, नाही थोरियम का ही कोई रिकॉर्ड है।
अब जानते है इस कंपनी के मालिक के बारे में, एस. वैकुण्डराज्नम जयललिता के करीबी माने जाते है। जया टीवी में उनकी अच्छी खासी हिस्सेदारी है। करूणानिधि से इनके सम्बन्ध बनते-बिगड़ते रहे है। संबंधो के खराब रहने के ऐसे ही एक दौर में तमिलनाडु में करूणानिधि सरकार के समय तमिलनाडु पुलिस ने इसी अवैध-थोरियम-निर्यात मामले में छापेमारी भी की थी। 19 अगस्त, 2007 को यह छापे (Vaikundarajan’s office premises raided) मारे गए 23 अगस्त, 2007 को इन्होने करूणानिधि की तरफ सार्वजनिक रूप से दोस्ती का हाथ (I am not an enemy of DMK: Vaikundarajan) बढाया। उसके बाद तमिलनाडु पुलिस को न उन छापों की याद रही, न उस केस की तो ये है एस वैकुण्डराज्नम का तमिलनाडु के स्थानीय राजनीति (और शायद देश के केंद्रीय राजनीति में भी) में प्रभाव।
#परमाणु ऊर्जा विभाग का उत्तर पढ़ें ... "DAE's reply on Thorium loot full of loopholes"
*आई.आर.ई.एल. (IREL) India Rare Earth लिमिटेड भारत सरकार का वो उपक्रम जिसे भारत के रेत से या किसी भी अन्य पदार्थ से थोरियम को निकलने का एकाधिकार प्राप्त है यानि कोई एवं संस्था-सरकारी या निजी थोरियम को उत्कार्षित नहीं कर सकता सिवाय IREL के
*एन.पी.सी.आई.एल.(NPCIL) (Nuclear Power Corporation of India Limited)
- अभिनव शंकर
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