वाय दिस कोलावरी केजरीवाल बाबू?

Published: Tuesday, Aug 28,2012, 11:34 IST
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कहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाना-बहुत पुरानी कहावत है-लेकिन आज भी रंगरेजों पर उतनी ही सटीक बैठती है।

भ्रष्टाचार के विरुद्ध लड़ाई छेड़ने वाले केजरीवाल बाबू पर आज यही कहावत फिट बैठती दिख रही है। कोयला घोटाला हुआ कांग्रेसनीत यूपीए सरकार के प्रधानमन्त्री की सीधी देख-रेख में, लेकिन चूंकि "हम कांग्रेस के नहीं, भ्रष्टाचार के विरुद्ध हैं" का ढोल पीटना जरूरी है, इसलिए नितिन गडकरी के घर का भी घेराव करने का कार्यक्रम बना। पायोनियर दैनिक लिखता है कि किस तरह केजरीवाल के समर्थकों ने सरकारी बंगलों के बाहर लगे लैम्प पोस्ट तोड़े और पुलिस की गाड़ियों के टायर भी पंक्चर किये। भ्रष्टाचार के विरोध के नाम पर सरकारी संपत्ति को नुक्सान पहुंचाने का ये कार्यक्रम मुंबई के आज़ाद मैदान की याद दिलाता है-माना हिंसा और तोड़-फोड़ के स्तर में बहुत अंतर था, लेकिन स्तर का अंतर कहाँ मायने रखता है भला। तभी तो भाजपा और कांग्रेस को भ्रष्टाचार के तराजू में केजरीवाल जी बराबर बराबर तोलते हैं। तभी तो केजरीवाल जी ने बराबर बराबर १०-१० सवाल नितिन गडकरी और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से पूछ डाले।

अब सवाल तो सवाल हैं, उनमें सच झूठ क्या मायने रखता है। इसीलिए गडकरी जी से पहला सवाल पूछा गया अजय संचेती के बारे में जो नितिन गडकरी के करीबी माने जाते हैं और भाजपा के सांसद भी हैं। सवाल ये है कि कोयले की खदान में उनका भी हिस्सा है जो भाजपा ने भ्रष्टाचार से उन्हें दिया। अब ये ठीक वही आरोप है जो दिग्विजय सिंह (जी हाँ, वही ओसामा 'जी' वाले) ने अजय संचेती और नितिन गडकरी पर लगाया था। आम तौर पर कोई भी समझदार व्यक्ति दिग्विजय सिंह के आरोपों और सागरिका घोष की ट्वीट्स को गंभीरता से नहीं लेता है, लेकिन केजरीवाल जी ने तो वही आरोप प्रश्न बना के नितिन गडकरी से पूछ डाला। सच्चाई ये है कि अजय संचेती जिस दिन दिग्विजय ने आरोप लगाया, उसी दिन अपना पक्ष रख चुके थे कि उन्हें कोयले की खान नीलामी में सबसे अधिक मूल्य चुकाने पर आवंटित हुयी और वो भी तब जब नितिन गडकरी का राष्ट्रीय राजनीति से कुछ लेना देना नहीं था। देखा आपने, भाजपा सरकार नीलामी से आवंटित करे और कांग्रेस सरकार ऐसे ही आवंटित कर दे-ये दोनों बातें केजरीवाल जी को एक सामान नजर आती हैं-आखिर निष्पक्षता जो निभानी है।

हम झूठों की बात कर रहे थे। केजरीवाल का चौथा सवाल फिर वही बात दोहराता है कि रमण सिंह की छत्तीसगढ़ सरकार ने आवंटन कैसे किया और किसे किया। क्या आप नहीं जानते कि छत्तीसगढ़ सरकार ने नीलामी के जरिये आवंटन किये। सरकारी आवंटन होते हैं तो निविदा निकलती है-ऐसे ही तो आवंटन हो नहीं जाते-और आवंटन किसे हुए, ये आपको छत्तीसगढ़ सरकार बताएगी या नितिन गडकरी आपके क्लर्क हैं जो आपके लिए जवाब निकाल कर लाएँगें? आरटीआई के क़ानून के श्रेय लेने वाले केजरीवाल जी, ये तो आप उसी क़ानून का उपयोग कर के बड़ी सरलता से जान सकते थे। लेकिन, १० सवाल मनमोहन सिंह के लिए थे, तो यहाँ भी कैसे न कैसे कर के गिनती १० करनी जो थी। वही-निष्पक्षता ! और फिर, एक और मुफ्त का सवाल! "क्या आपको नहीं लगता कि बिना नीलामी के आवंटन रद्द कर देने चाहिए"-ये मांग तो भाजपा ने स्वयं रखी है-इसमें सवाल कैसा?

और अब सबसे बड़ा झूठ-भाजपा की सरकार ने कांग्रेस के बोफोर्स घोटाले की जांच नहीं करवाई क्योंकि उनकी मिलीभगत है।

केजरीवाल जी, जो जनता आप पर विश्वास कर के आपके साथ भरी धूप में अनशन करती है, उसी से झूठ बोलते हुए आपको चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए। क्या ये सच नहीं है कि १० साल से अधिक बीत जाने पर भी बोफोर्स घोटाले में चार्जशीट तक दाखिल नहीं हुयी थी। पहली बार सीबीआई ने चार्जशीट दाखिल की १९९९ में जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी। और यही नहीं, उस चार्जशीट में राजीव गाँधी को भी अभियुक्त बनाया गया-उनके दिवंगत होने का बहाना बना के उन्हें छोड़ा नहीं गया। दिल्ली उच्च न्यायालय में सीबीआई मुकदमा हार गयी लेकिन फिर भी उसने सर्वोच्च न्यायालय में अपील की और सर्वोच्च न्यायालय ने दिल्ली उच्च न्यायालय का निर्णय उलट दिया। ये सब भाजपा की सरकार के कार्यकाल के दौरान ही हुआ। उसके बाद यूपीए की सरकार आई और अपने करीबी क्वात्रोची को बचाने के लिए सोनिया गाँधी के निर्देशों पर कैसे कैसे क्वात्रोची के बैंक अकाउंट डीफ्रीज़ हुए, अर्जेंटीना में अनुवाद को लेकर जो नाटक हुआ-वो सब हर कोई जानकार व्यक्ति जानता है-लेकिन आप सवाल पूछते हैं नितिन गडकरी से।

और क्यों न हो। आखिर आपने बाबा रामदेव के विरुद्ध वक्तव्य दिए हैं। संघ और नरेन्द्र मोदी के लिए आपने हृदय में घृणा का कैसा सागर उमड़ता है, इसका प्रमाण आप अपनी वाणी से विष-वमन कर के अनेक बार दे चुके हैं। यहाँ तक कि आपको संघ, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् के लोगों के भी अपने आन्दोलन में शामिल होने में आपत्ति थी, जैसे वो भारत के नागरिक ही नहीं। भारत से याद आया, भारत माता का चित्र सांप्रदायिक कह कर हटा दिया गया, और आप अपने सेकुलरिज्म के ढोंग में संघ को ही गालियाँ देते रह गए। बात वही समाप्त नहीं हुई। वन्दे मातरम के नारों पर जब इमाम बुखारी के पेट में दर्द हुआ, तो आप दौड़े दौड़े उनके पास भी चले गए। आखिर, हिन्दू संगठनों को गरिया कर, नरेन्द्र मोदी को मोटी मोटी गालियाँ देकर और इमाम बुखारी के तलुए चाटे बिना सेकुलरिस्म कैसे सधता।

और आपका सेकुलरिस्म तो आपके विजन का अंग है। आपने जिस स्वराज का सपना दिखाया है, वैसा स्वराज तो गाँधी जी भी चाहते थे। गाँधी जी के पास व्यापक जनसमर्थन था। वो लोगों को साथ लेकर चल सकते थे, पर फिर भी वो स्वराज नहीं ला पाए। आप अपनी टीम के ४ लोगों को साथ लेकर चल नहीं सकते और स्वराज की बातें ! स्वराज-विद-सेकुलरिस्म ! आपका विजन सेकुलरिस्म नामक बिंदु के अंतर्गत कहता है "Recognition and respect for ... special needs of minority community" अर्थात अल्पसंख्यक तुष्टिकरण कांग्रेस और बाकी सेकुलर पार्टियों के लिए तो केवल चुनाव जीतने का यन्त्र है, लेकिन ये आपके तो विजन का एक भाग है। अल्पसंख्यकों की "विशेष आवश्यकताओं" के प्रति सम्मान। यानी कि केजरीवाल जी, सामान नागरिक संहिता तो छोडिये, हिन्दू मुसलमान के लिए एक सामान कानून की मांग करने वाली भाजपा तो जन्मजात सांप्रदायिक है ही, परन्तु आप सत्ता में आये तो आप तो मुस्लिम समाज की विशेष जरूरतों के लिए अवैध रूप से चल रही शरिया अदालतों को वैधानिक बना देंगे। सुप्रीम कोर्ट, हाई कोर्ट गए भाड़ में, अल्पसंख्यकों की विशेष जरूरतें हैं, तो वो शरिया कोर्ट में अपने विवाद निपटा सकते हैं। क्यों, सही है न?

पहले दिन से टीम अन्ना के सदस्यों के आचरण पर प्रश्नचिह्न लगते आ रहे थे। कभी कश्मीर पर उलटे बयान, कभी भारतीय सेना का विरोध, कभी नक्सलियों का समर्थन, कभी अमरनाथ यात्रा को ढकोसला कहना ! लेकिन अब तो सब कुछ खुल्लम-खुल्ला है। जो सच में देश-भक्त थे, अन्ना हजारे और किरण बेदी, वो समय रहते अलग हो गए। फोर्ड फाउन्देशन से २ लाख डॉलर का अनुदान केवल एक साल में लेनी वाली कबीर एनजीओ के मालिक केजरीवाल जो इस बात से भी तब तक मुकरते रहे जब तक स्वयं फोर्ड ने अपनी वेबसाइट पर इसका खुलासा नहीं कर दिया, अब साफ़ साफ़ कांग्रेस -विरोधी वोटों के बंटवारे की व्यवस्था करने में जुटे हैं। आखिर, टीम केजरीवाल के ही हर्ष मंदर सोनिया गाँधी के साथ बैठ कर नेशनल एडवाईजरी कौंसिल में राष्ट्र-विरोधी बिल बनाते हैं। आश्चर्य नहीं, कि बाबा रामदेव को जड़-मूल से मिटाने में सीबीआई, ईडी आदि को छोड़ कर आकाश-पाताल एक कर देने वाली कांग्रेस अरविन्द केजरीवाल को छूना भी नहीं चाहती और फिर, बाबा रामदेव, संघ, नरेन्द्र मोदी और तमाम कांग्रेस विरोधी शक्तियों के विरुद्ध जहर उगलने वाले केजरीवाल भी तो केवल यूपीए के मंत्रियों के ही विरुद्ध बोले हैं, यूपीए की कर्ता-धर्ता सोनिया गाँधी के विरुद्ध तो इतने महीनों में उनके मुखार-विंद से विरोध का एक स्वर तक नहीं फूटा।

कांग्रेस-विरोधी मतदाता को उलझा कर, भ्रमित कर के, झूठ बोल के उसका विश्वास जीत कर भाजपा को नुक्सान पहुंचाने की योजना तो बहुत अच्छी है केजरीवाल बाबू, लेकिन कहीं भारत के पश्चिम से आने वाली तूफानी हवा आपकी इस योजना को तिनके की तरह न उड़ा दे। थोड़ा ध्यान रखियेगा-अपना और अपने संरक्षकों का।


यह लेखक की व्यक्तिगत राय है, लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।
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