एक बार फिर हमारी तथाकथित ‘धर्मनिरपेक्ष’ न्याय व शासन प्रणाली की कड़वी सच्चाई सामने आई है जो धर्मनिरपेक्षता की..
होली, स्वास्थ्य एवं विज्ञान : होलिकोत्सव पर विशेष
भारतीय संस्कृति त्योहारों की संस्कृति है जो की विश्व की प्राचीन
संस्कृति मानी जाती है| अपनी संस्कृति में सिर्फ मानव जीवन को ही नहीं
बल्कि पेड़-पौधे, जीव जंतु सभी को सम्मान दिया गया है, जिसका उदाहरण
भारत में गाय को ‘गौमाता’ एवं तुलसी के पौधे को “तुलसीमाता” के रूप
में पूजा जाना दर्शाता है|
इसी प्रकार भारतीय संस्कृति में जीवनशैली को भी उच्चतम जीवनशैली बनाने
हेतु एवं स्वस्थ जीवन के निर्वाह हेतु त्योहारों को भी वैज्ञानिक रूप
से सजोया गया है| हमारे देश का रंगों से भरा एक बड़ा त्यौहार
होली, जो कि देश के सभी राज्यों में किसी ना किसी रूप में जरूर मनाया
जाता है, भी वैज्ञानिक तौर पर काफी खास है|
होली का समय दो ऋतुओं के संक्रमण काल का समय होता है, जिससे मानव शरीर
रोग और बीमारियों से ग्रसित हो जाता है। शिशिर ऋतु में शीत के प्रभाव
से शरीर में कफ की अधिकता हो जाती है और बसंत ऋतु में तापमान बढऩे पर
कफ के शरीर से बाहर निकलने की क्रिया में कफ दोष पैदा होता है, जिसके
कारण सर्दी, खांसी, सांस की बीमारियों के साथ ही गंभीर रोग जैसे खसरा,
चेचक आदि होते हैं। इनका बच्चों पर प्रकोप अधिक दिखाई
देता है। इसके अलावा बसंत के मौसम का मध्यम तापमान तन के साथ मन को भी
प्रभावित करता है। यह मन में आलस्य भी पैदा करता है।
इसलिए स्वास्थ्य की दृष्टि से होलिकोत्सव के विधानों में आग जलाना,
अग्नि परिक्रमा, नाचना, गाना, खेलना आदि शामिल किए गए। अग्नि का ताप
जहां रोगाणुओं को नष्ट करता है, वहीं खेलकूद की अन्य क्रियाएं शरीर
में जड़ता नहीं आने देती और कफ दोष दूर हो जाता है। शरीर की ऊर्जा और
स्फूर्ति कायम रहती है। शरीर स्वस्थ रहता है। स्वस्थ शरीर होने पर मन
के भाव भी बदलते हैं। मन उमंग से भर जाता है और नई कामनाएं पैदा करता
है। इसलिए बसंत ऋतु को मोहक, मादक और काम प्रधान ऋतु माना जाता
है।
यह त्योहार अपने में अनेक विचित्रताएं समेटे हुए है। जहां एक ओर इसके
प्रारम्भ में होलिका दहन यानि नवसस्येष्टी यज्ञ के द्वारा अग्नि को
सभी कुछ समर्पण कर “इदन्नमम” यानि “यह मेरा नहीं है” का भाव जाग्रत
होता है तो वहीं इस त्यौहार के समापन में दुश्मन को भी गले लगा लेने
का भाव स्पष्ट दिखाई देता है। जिस प्रकार अग्नि हर कूड़ा-करकट व गंदगी
को स्वाह कर वातावरण में ऊष्मा व ताजगी भर देती है, उसी प्रकार होली
का त्योहार आपसी मनमुटाव व राग-द्वेष भुलाकर एक रंग करने में सहायक
होता है। अनेक शत्रु भी इस दिन गले लग कर 'बुरा न मानो होली है' का
जयघोष करते हैं। बड़ी से बड़ी शत्रुता भी होली के रंगों में स्वाहा
होती देखी गई है। यह त्योहार रंग व उल्लास के साथ प्रेम और भाईचारे का
संदेश देता है।
IBTL परिवार की ओर से होली की शुभकामनाएं एवं सभी पाठक गणों से
विनती करता है कि “ मन से समस्त बुरे विचार जलाकर एवं प्रेम रुपी
रंगों को ना सिर्फ अपने जीवन में बल्कि सम्पूर्ण समाज में उत्साह
पूर्वक स्थान दीजिए ”
साभार : वन्दे मातृ संस्कृति | facebook.com/VandeMatraSanskrati
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