बदलता बिहार एवं बदलता बिहारी युवा

Published: Tuesday, May 08,2012, 12:56 IST
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एमबीए की शिक्षा लेने वाले ज्यादातर युवाओं का लक्ष्य बहुराष्ट्रीय कम्पनियों में अच्छी नौकरी और मोटा वेतन पाना होता है। लेकिन एमबीए की पढ़ाई कर चुका कोई युवा यदि पेशे के तौर पर खेती को चुने तो थोड़ी हैरानी होगी। ऐसे ही युवा हैं बिहार के शेखपुरा जिले के अभिनव वशिष्ठ, जिन्होंने एमबीए की पढ़ाई के बाद औषधीय खेती को अपना पेशा बनाया है।

शेखपुरा जिले के केवटी निवासी अभिनव वशिष्ठ ने आइएमटी, गाजियाबाद से एमबीए की पढ़ाई पूरी करने के बाद नौकरी के लिए प्रयास नहीं किया। पढ़ाई के बाद वह अपने गांव आ गए और पुश्तैनी जमीन को अपना भविष्य संवारने का आधार बनाया।

वशिष्ठ ने बताया, "पढ़ाई पूरी करने के बाद वर्ष 2004 में पांच एकड़ जमीन पर मैंने सुगंधित और औषधीय पौधों की खेती करनी शुरू की, और आज खेती का दायरा बढ़कर 20 एकड़ से ज्यादा हो गया है।"

31 वर्षीय वशिष्ठ ने बताया कि प्रारम्भ से ही उनकी नौकरी में रुचि में नहीं थी। आज उन्हें गर्व है कि बिहार और उसके आसपास के करीब 200 किसान इस तरह की खेती से जुड़ गए हैं, और अच्छी कमाई कर रहे हैं।

बिहार औषधीय पादप बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में कार्य कर रहे वशिष्ठ पंचानन हर्बल उद्योग के जरिए विपणन एवं परामर्श का भी कार्य देख रहे हैं। उन्होंने बताया, "पढ़ाई के दौरान उन्हें एक प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान देहरादून जाने का मौका मिला और वहीं उन्हें औषधीय पौधों के बारे में जानकारी प्राप्त हुई।"

वशिष्ठ के इस प्रयास की सराहना राष्ट्रपति प्रतिभा पाटील, पूर्व राष्ट्रपति ए़ पी़ ज़े अब्दुल कलाम और बिहार के राज्यपाल देवानंद कुंवर भी कर चुके हैं। बिहार सरकार ने वशिष्ठ को 2007 में सर्वश्रेष्ठ किसान के रूप में 'किसान श्री' का पुरस्कार दिया।

वशिष्ठ ने बताया कि उन्होंने तीन लाख रुपये से औषधीय खेती की शुरुआत की थी और इस खेती से प्रतिवर्ष उनकी आमदनी 20 लाख रुपए तक जा पहुंची है। वशिष्ठ का दावा है कि आज जो भी किसान औषधीय खेती से जुड़े हैं, उनकी आमदनी बढ़ी है। वशिष्ठ मुख्य रूप से तुलसी और लेमन ग्रास की खेती करते हैं।
बदलते परिवेश और कृषि के प्रति सरकार की योजनाओं के कारण भी कई लोग औषधीय खेती की ओर मुड़ गए हैं।

पूर्णिया के न्यायालय में वकील के रूप में कार्य कर रहे विक्रम लाल शाह भी औषधीय खेती करते हैं। शाह ने बताया कि पहले उन्हें औषधीय खेती की जानकारी नहीं थी, लेकिन जब जानकारी हुई तो उन्होंने 40 हजार रुपए की लागत से तीन एकड़ भूमि में लेमनग्रास की खेती प्रारंभ की और आज वह 15 एकड़ में औषधीय पौधों की खेती कर रहे हैं।

औषधीय खेती गांव तक ही सीमित नहीं है। पटना में बिल्डर का काम कर रहे राजीव सिंह भी 10 एकड़ भूमि पर औषधीय पौधों की खेती कर रहे हैं। पटना के ही जी़ एऩ शर्मा भी औषधीय खेती से अच्छी कमाई कर रहे हैं।

औषधीय और सुगंधित पौध उत्पादन संघ की बिहार इकाई के सचिव गिरेन्द्र नारायण शर्मा ने बताया, "किसानों की आर्थिक तंगी व्यावसायिक किस्म की खेती से दूर की जा सकती है। कई किसानों में जागरूकता का अभाव है, जिस कारण अधिकांश किसान व्यावसायिक खेती और उसके उत्पाद की बिक्री से अनभिज्ञ हैं। राज्य में औषधीय एवं सुगंधित पौधों की खेती में विस्तार की असीम सम्भावनाएं हैं।"

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