बाजारवाद का एक कुत्सित लेकिन कामयाब फार्मूला यह है कि पहले ‘दर्द’ तैयार करो फ़िर उसकी दवा बेचने भी निकल पडो. ब..
मध्य प्रदेश में समस्त सरकारी कामकाज हिंदी में होता है
हिंदी के मामले में म.प्र. सबसे आगे है| उसका लगभग सभी सरकारी
कामकाज हिंदी में होता है| यहां तक कि विधानसभा के मूल कानून
भी हिंदी में ही बनते हैं| म.प्र. में जो कुछ अहिंदी भाषी
राज्यपाल रहे हैं, उन्हें कुछ ही दिनों में अपने आप समझ में आ गया कि
यदि वे अंग्रेजी में भाषण देंगे तो उनकी खैर नहीं है|
लेकिन अब कुछ उद्योगपतियों ने भोपाल जाकर उपदेश झाड़ा है कि मप्र की
सरकार अपना काम-काज अंग्रेजी में शुरू करे| साधारण बाबुओं को भी अच्छी
अंग्रेजी सिखाए| इन्फोसिस जैसी भारतीय और माइक्रोसॉफ्ट जैसी विदेशी
कंपनियों के साथ पत्रचार अंग्रेजी में किया जाए| बेचारे मुख्यमंत्रीजी
क्या करते? क्या वे मेहमानों का अपमान करते? उन्होंने उनकी हॉ में हॉ
मिलाते हुए कह दिया कि ठीक है, अब अंग्रेजी को भी बढ़ावा दिया
जाएगा|
शिवराज चौहान यों तो बहुत विनम्र और मृदुभाषी व्यक्ति हैं लेकिन उनकी
तरह दबंग मुख्यमंत्री कितने हैं? ये वही शिवराज हैं,
जिन्होंने राष्ट्रमंडल खेलों की मशाल थामने से साफ़ मना कर
दिया था| गीता-पाठ व सूर्य प्रणाम का
प्रावधान करवाने की हिम्मत क्या किसी अन्य मुख्यमंत्री में है? ऐसे
मुख्यमंत्री से मैं आशा करता हूं कि वे म.प्र. के राजकाज में अंग्रेजी
के प्रयोग पर पूर्ण प्रतिबंध लगा देंगे| जैसे उन्होंने गोवध
पर प्रतिबंध लगाया, वैसे ही वे अंग्रेजी काम-काज और अंग्रेजी
की अनिवार्य पढ़ाई पर भी लगा दें| म.प्र. ऐसा राज्य बने कि देश के
सारे राज्य उसका अनुकरण करें| सब राज्यों में स्वभाषाऍं चलें|
उद्योगपतियों से शिवराज चौहान पूछे कि तुम्हें मुनाफा कमाना है या
नहीं? यदि हॉं तो तुम खुदको बदलो| अपनी गर्ज की खातिर उस भाषा में काम
करो, जिसके लोगों के बीच तुम्हें धंधा करना है| उद्योगपति तो पैसे के
गुलाम हैं| वे झक मारकर अपना काम हिंदी में करेंगे| कई बहुराष्ट्रीय
निगमों ने अपनी भाषा-नीति पहले से सुधार रखी है| हमारे गुलाम मानसिकता
वाले उद्योगपति इन निगमों से भी कुछ नहीं सीखते| उन्हें इतनी
साधारण-सी समझ भी नहीं है कि ग्राहक की भाषा में बेचेंगे तो माल
ज्यादा बिकेगा| भाषा के मामले में उल्टी गंगा बहाने के लिए उन्हें
क्या म.प्र. ही मिला है?
डा. वैद प्रताप वैदिक (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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