भ्रष्टाचार के विरुद्ध युद्ध लड़ रहे सुब्रमनियन स्वामी ने अपनी जनता पार्टी को एनडीए में अंततः शामिल कर लिया है | ट्विटर पर..
रामसेतु सिर्फ हिन्दुओं की आस्था का प्रतीक नहीं अपितु भारत की सांकृतिक धरोहर है
हिन्दुओं की आस्था के साथ खिलवाड आज कोई नयी बात है, अयोध्या के
राम-मंदिर का मुद्दा हो या अमरनाथ यात्रा को लेकर जमीनी विवाद,
मथुरा-काशी के मंदिरों का वर्षों पुराना विवाद हो या हाल ही में
हैदराबाद में जारी हुआ राम नवमी यात्रा के विरोध में तुगलगी फरमान,
समय समय पर हिन्दू आस्था और विश्वास को ठेस पहुंचता रहा है एवं उसके
पीछे एक सीधा-सरल कारण है सत्ताधारी दलों का अलपसंख्यक समुदाय को अपनी
ओर रिझाना।
“सेतुसमुद्रम” नामक परियोजना से ये पूरा विवाद शुरू हुआ, इस परियोजना
के तहत जलयानों के लिए रामसेतु के आरपार आने-जाने का एक रास्ता बनाया
जाना है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के पश्चात यह काम रोक दिया
गया। २००७ में विश्व हिंदू परिषद, संघ एवं अन्य हिन्दुत्वादी संगठनो
ने इस मुद्दे को एक बड़े आन्दोलन का रूप दिया फलस्वरूप सुप्रीम कोर्ट
ने केंद्र सरकार के फैसले पर रोक लगा दी, तब से ये मामला सुप्रीम
कोर्ट में लंबित है।
भारत एक सांस्कृतिक देश है; जहाँ राम-कृष्ण आस्था एवं विश्वास के सबसे
बड़े केंद्र है, आज भी किसी शुभ कार्य को करने से पूर्व व्यक्ति प्रभु
राम-कृष्ण को याद कर ही सफल कार्य की आशा करता है परन्तु भारत में
भारत के लोगों द्वारा चुनी गयी भारतीय सरकार ८५% लोगों के विश्वास को
तोड़ने के लिए आगे आती है और साथ में तर्क भी देती है कि राम का कोई
अस्तिव ही नहीं है, वह सिर्फ एक किताबी व्यक्तिव है देखा जाए तो यह
वही सरकार है जो दशहरे पर दिल्ली के रामलीला मैदान में श्री राम के
अस्तित्व को मानते हुए रावण वध में हिस्सा लेती है, राम-लक्ष्मण का
राज तिलक करती है, परन्तु जब बात आती है जनता की आस्था की तब अपने ही
विचारों को ताक पर रख देती है।
तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री एम. करुणानिधि तो राम सेतु को तोड़कर
पुनः कार्य शुरू करने के लिए भूख हड़ताल पर ही चले गए थे और श्री राम
के ही अस्तित्व पर सवाल कर रहे थे, वही सीपीएम नेता सीताराम येचुरी भी
इस को आस्था ना मान कर हिंदू और सांस्कृतिक संगठनो की जिद मान रहे थे
और इसको एक वैज्ञानिक उपलब्धि का नाम दे कर संगठनो पर सांप्रदायिक रंग
देने का इल्जाम लगा रहे थे। वही एक ओर अपने को " देश के लिए खाने वाले
" एक पत्रकार ने इस आस्था को ' पाँव की बेड़ी ' बताते हुए इसे देश के
विकास के लिए अवरोध बताया, वैसे वह विभिन्न राज्यों में, गौ-मांस एवं
सूअर का मांस खाते देखे गए हैं जो हिन्दू धर्म एवं इस्लाम के अनुसार
घिनौना कृत्य है, अर्थात यह पत्रकार महोदय वाकई में धारण-निरपेक्ष
हैं।
०५ वर्ष से विवाद में फसें इस भारतीय सांस्कृतिक की धरोहर को बचाने के लिए जनता पार्टी
अध्यक्ष 'डॉ. सुब्रमण्यम स्वामी' आगे आये और हाल ही में कोर्ट की
सुनवाई में महत्वपूर्ण तर्कों के साथ सरकार को घेर रहे है, कोर्ट में
एक सवाल किया कि, " राम सेतु कैसे आस्था का केंद्र हो सकता है वहां तो
कोई पूजा करने भी नहीं जाता " स्वामी जी ने सुन्दर तर्क देते हुए कहा
कि आस्था का केंद्र तो सूर्य भी है उसे भी जल अर्पित किया जाता है
परन्तु वहा कोई नहीं जाता।
२६ मार्च को हुई सुनवाई के अनुसार सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को अपना
पक्ष रखने के लिए कहा कि साफ़ बताये आपके अनुसार रामसेतु हिन्दुओ की
आस्था का केंद्र है कि नहीं, केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था
कि रामसेतु को राष्ट्रीय स्मारक का दर्जा देने या न देने के मुद्दे पर
फैसले के लिए उसे और समय की आवश्यकता है। अडिशनल सॉलिसिटर जनरल हरेन
रावल ने कोर्ट को कहा कि इस मुद्दे पर सक्षम अधिकारी के साथ राय कि
आवश्यकता है। उन्होंने इस मामले में हलफनामा दायर करने के लिए एवं समय
जाने की मांग की। इस पर केंद्र सरकार को दो हफ्ते कि मोहलत दे दी
मामले की अगली सुनवाई 19 अप्रैल को होगी।
बार बार इस विषय में टालमटोल कर रही केंद्र सरकार कभी कहती है राम थे
ही नहीं, कभी कहती है यह एक प्राकर्तिक सेतु है इसका राम से कुछ लेना
देना नहीं, कभी कहती है राम ने खुद ही सेतु लंका से वापिस आते
में तोड़ दिया था। इन सब बयानों से साफ़ है कि केंद्र सरकार कि मंशा इस
मुद्दे पर कभी भी साफ़ नहीं रही और अब ये मुद्दा ना सरकार से निगला ना
जरा ना उगला जा रहा।
सभी भारतीय भाइयों से विनम्र निवेदन है कि क्यों ना आप किसी भी धर्म,
मजहब से हो परन्तु ये राम सेतु सिर्फ हिन्दुओ कि आस्था नहीं बल्कि
सम्पूर्ण भारत के सांस्कृतिक इतिहास का प्रतीक है, और अगर तथ्यों को
लेकर सोचें तो, प्राचीन काल में न जाने कितने राष्ट्र भारत वर्ष में
ही सम्मिलित थे, इसे एक सांप्रदायिक विषय ना समझ सांस्कृतिक भारत की
धरोहर समझ कर इस बचाने का प्रयास करे।
# राम सेतु पर डा. स्वामी की याचिका : वैकल्पिक नौवहन मार्ग पर
न्यायालय ने मांगी रिपोर्ट
# भारतीय संस्कृति का प्रतीक 'नमस्कार' एवं इसके आध्यात्मिक
लाभ
तरुण अग्रवाल (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं) जुडें - facebook.com/tarunaggarwal8
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