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मातृभूमि के लिए समर्पित थे भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेन्द्र प्रसाद
डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद भारत के प्रथम राष्ट्रपति थे। (जन्म- 3
दिसम्बर, 1884, जीरादेयू, बिहार, मृत्यु- 28 फ़रवरी, 1963, सदाकत
आश्रम, पटना)। राजेन्द्र प्रसाद प्रतिभाशाली और विद्वान व्यक्ति
थे।
मातृभूमि के लिए समर्पित : राजेन्द्र प्रसाद प्रतिभाशाली और विद्वान
थे और कलकत्ता के एक योग्य वकील के यहाँ काम सीख रहे थे। राजेन्द्र
प्रसाद का भविष्य एक सुंदर सपने की तरह था। राजेन्द्र प्रसाद का
परिवार उनसे कई आशायें लगाये बैठा था। वास्तव में राजेन्द्र प्रसाद के
परिवार को उन पर गर्व था। लेकिन राजेन्द्र प्रसाद का मन इन सब में
नहीं था। राजेन्द्र प्रसाद केवल धन और सुविधायें पाने के लिए आगे
पढ़ना नहीं चाहते थे। एकाएक राजेन्द्र प्रसाद की दृष्टि में इन चीज़ों
का कोई मूल्य नहीं रह गया था।
राजेन्द्र प्रसाद की मातृभूमि विदेशी शासन में जकड़ी हुई थी।
राजेन्द्र प्रसाद उसकी पुकार को कैसे अनसुनी कर सकते थे। लेकिन
राजेन्द्र प्रसाद यह भी जानते थे कि एक तरफ देश और दूसरी ओर परिवार की
निष्ठा उन्हें भिन्न-भिन्न दिशाओं में खींच रही थी। राजेन्द्र प्रसाद
का परिवार यह नहीं चाहता था कि वह अपना कार्य छोड़कर 'राष्ट्रीय
आंदोलन' में भाग लें क्योंकि उसके लिए पूरे समर्पण की आवश्यकता होती
है। राजेन्द्र प्रसाद को अपना रास्ता स्वयं चुनना पड़ेगा। यह उलझन
मानों उनकी आत्मा को झकझोर रही थी।
राजेन्द्र प्रसाद ने रात खत्म होते-होते उन्होंने मन ही मन कुछ तय कर
लिया था। राजेन्द्र प्रसाद स्वार्थी बनकर अपने परिवार को सम्भालने का
पूरा भार अपने बड़े भाई पर नहीं डाल सकते थे। राजेन्द्र प्रसाद के
पिता का देहान्त हो चुका था। राजेन्द्र प्रसाद के बड़े भाई ने पिता का
स्थान लेकर उनका मार्गदर्शन किया था और उच्च आदर्शों की प्रेरणा दी
थी। राजेन्द्र प्रसाद उन्हें अकेला कैसे छोड़ सकते थे? अगले दिन ही
उन्होंने अपने भाई को पत्र लिखा, "मैंने सदा आपका कहना माना है-और यदि
ईश्वर ने चाहा तो सदा ऐसा ही होगा।" दिल में यह शपथ लेते हुए कि अपने
परिवार को और दुख नहीं देंगे उन्होंने लिखा, "मैं जितना कर सकता हूँ
करूँगा और सब को प्रसन्न देख कर प्रसन्नता का अनुभव करूँगा।"
लेकिन उनके दिल में उथल-पुथल मची रही। एक दिन वह अपनी आत्मा की पुकार
सुनेंगे और स्वयं को पूर्णतया अपनी मातृभूमि के लिए समर्पित कर देंगे।
यह युवक राजेन्द्र थे जो चार दशक पश्चात 'स्वतंत्र भारत के प्रथम
राष्ट्रपति' बने।
स्वदेशी आंदोलन : राजेन्द्र प्रसाद भी नये आंदोलन की
ओर आकर्षित हुए। अब पहली बार राजेन्द्र प्रसाद ने पुस्तकों की तरफ कम
ध्यान देना शुरू किया। स्वदेशी और बहिष्कार आंदोलन ने राजेन्द्र
प्रसाद के छात्रालय के छात्रों को बहुत प्रभावित किया। उन्होंने सब
विदेशी कपड़ों को जलाने की क़सम खाई। एक दिन सबके बक्से खोल कर विदेशी
कपड़े निकाले गये और उनकी होली जला दी गई। जब राजेन्द्र प्रसाद का
बक्सा खोला गया तो एक भी कपड़ा विदेशी नहीं निकला। यह उनके देहाती
पालन-पोषण के कारण नहीं था। बल्कि स्वतः ही उनका झुकाव देशी चीज़ों की
ओर था। गोपाल कृष्ण गोखले ने सन 1905 में 'सर्वेन्ट्स ऑफ़ इंडिया
सोसाइटी' आरम्भ की थी। उनका ध्येय था ऐसे राष्ट्रीय स्वयं सेवक तैयार
करना जो भारत में संवैधानिक सुधार करें। इस योग्य युवा छात्र से वह
बहुत प्रभावित थे और उन्होंने राजेन्द्र प्रसाद को इस सोसाइटी में
शामिल होने के लिये प्रेरित किया। लेकिन परिवार की ओर से अपने कर्तव्य
के कारण राजेन्द्र प्रसाद ने गोखले की पुकार को उस समय अनसुना कर
दिया। लेकिन वह याद करते हैं,- 'मैं बहुत दुखी था।' और जीवन में पहली
बार बी. एल. की परीक्षा में कठिनाई से पास हुए थे।
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