स्वदेशी के प्रखर वक्ता, राजीव भाई की स्मृतियाँ...

Published: Wednesday, May 23,2012, 20:29 IST
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29 नवम्बर 2010 की मनहूस शाम को करीब 7:30 बजे किसी ने फ़ोन करके बताया कि राजीव भाई की तबियत ठीक नहीं है और उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया है.| वे उस समय छत्तीसगढ़ के प्रवास पर थे और उस दिन भिलाई में शाम को भारत स्वाभिमान की सभा को संबोधित करने वाले थे। जैसे ही सूचना मिली, तो मैंने तुरंत राजीव भाई के नंबर पर संपर्क करने की कोशिश की, तो दोनों नंबर बंद थे, सो संपर्क नहीं हो सका। हरिद्वार से छत्तीसगढ़ के साथियों का नंबर लेकर फ़ोन लगाया तो बात हुई, तब यह सुनिश्चित हुआ कि वास्तव में राजीव भाई की तबियत ठीक नहीं है और उन्हें अस्पताल में भर्ती किया गया है। मैंने तुरंत पूछा कि स्वामी जी को खबर की या नहीं, तो उन्होने बताया कि हाँ, स्वामी जी को सूचना कर दी है और वे खुद इस मामले में डॉक्टर से बात कर रहे है और यदि स्थिति ज्यादा ख़राब हुई, तो दिल्ली ले जाने की व्यवस्था भी हो रही है।  इसके बाद मैंने कई बार कोशिश की कि एक बार राजीव भाई से बात हो जाये लेकिन किसी भी तरह मेरी उनसे बात न हो सकी।  समय ख़राब न करके तुरंत गाडी से रायपुर के लिए निकल गया यह सोचकर, कि यदि संभव हुआ तो सेवाग्राम ले आएंगे और यही इलाज करना लेंगे।

In Eng : Indigenous Orator Bhai Rajiv Ji Dixit's memories

करीब 9:30 के आसपास नागपुर के आगे कहीं ढाबे पर ड्राईवर ने चाय पीने के लिए गाड़ी रोकी। तभी स्वामी जी का फ़ोन आया और उन्होंने जानकारी दी कि "मैं स्वयं इस मामले को लगातार देख रहा हूं पर राजीव भाई दवाई लेने से मना कर रहे है। वे बार-बार कह रहे हैं कि मुझे अंग्रेजी दवा नहीं लेनी है, मुझे तो आयुर्वेदिक या होम्योपैथी की दवा दी जाये, उसी से ठीक हो जाऊंगा। चिंता की कोई बात नहीं है। फिर भी डॉक्टर को आवश्यक इलाज के लिए बोल दिया है और संभव हुआ तो उन्हें दिल्ली ले जाने की तैयारी कर रहा हूं, वहां भी डॉक्टरों से संपर्क चालू है।  जैसे ही कुछ होगा तो तुरंत बताऊंगा।"

इसके बाद ड्राईवर ने चाय पीकर दोबारा से गाड़ी चालू की और मैं भिलाई में फ़ोन पर संपर्क करने की कोशिश करता रहा। अनूप भाई से बात हुई तो उन्होंने कहा कि आप जल्दी से जल्दी आईये, समय बहुत कम है। तब मैंने कहा कि दिल्ली ले जाने की बात हो रही है, आप दिल्ली लेकर निकलिए तो उन्होंने कहा कि उनकी हालत ऐसी नहीं है कि दिल्ली ले जाया जा सके। आप तो जल्दी से जल्दी पहंच जाईये। तब मुझे थोड़ा शक हुआ कि अभी तक मेरी बात नहीं हो पाई राजीव भाई से,, चक्कर क्या है।  राजीव भाई स्वामीजी से बात कर रहे हैं तो मुझसे क्यों नहीं कर पा रहे हैं या उनके आसपास के लोग मुझसे बात क्यों नहीं करवा रहे है !

करीब 12:15 पर स्वामीजी का फिर से फ़ोन आया। उन्होंने तुरंत गाडी रोकने के लिए कहा और फूट-फूटकर रोने लगे, लगातार 5-6 मिनट तक रोते रहे। मैं भी उनके साथ रोता रहा और आवाक होकर सुनता रहा। शुरू में मेरी समझ में कुछ नहीं आया, जब थोड़ी सांस मिली तो स्वामीजी ने कहा कि अब कुछ नहीं बचा, राजीव भाई हमको छोड़ कर चले गए... मैंने क्या-क्या नहीं सोचा था, सब कुछ ख़त्म हो गया, मेरे हाथ पैरों में ताक़त नहीं बची है।  मैंने अपने आपको संभालते हुए स्वामी जी से एक ही प्रार्थना की कि स्वामी जी, राजीव भाई के सपने को अधूरा नहीं छोड़ना है, किसी भी कीमत पर पूरा करना है।  भारत स्वाभिमान के रूप में उन्होंने जो सपना देखा है वह पूरा होना चाहिए, आप किसी भी कीमत पर यह लड़ाई नहीं रुकने देना... फिर उन्होंने पुछा कि आगे क्या करना है तो मैंने उनको कहा कि राजीव भाई वैधानिक रूप से भारत स्वाभिमान के राष्ट्रीय सचिव थे, इसीलिए उनका अंतिम संस्कार भारत स्वाभिमान के मुख्य कार्यालय हरिद्वार में ही होना चाहिए। आप तैयारी करवाइए, मैं उन्हें लेकर आता हूँ। उसके बाद स्वामी जी का फ़ोन कट गया, फ़ोन पर बात करते-करते उनकी आवाज़ एकदम निढाल हो गयी थी। मैं भी सुन्न हो गया था कुछ भी समझ नहीं आ रहा था, क्या करूं... शरीर और दिमाग दोनों को जैसे लकवा मार गया हो... काठ जैसा हो गया था।

मैंने जब से होश संभाला था, तब से राजीव भाई को सिर्फ भाई ही नहीं माँ-बाप मानकर उनके साथ और उनके सानिध्य में था। अब वो छोड़कर चले गए तो कैसे आगे बढ़ेंगे। उनकी हिम्मत से हम हिम्मत पते थे, उनके जोश से हमें जोश मिलता था, उनकी निडरता से हमें निडरता मिलती थी, जब वो दहाड़ लगाकर विदेशी कंपनियों के खिलाफ बोलते थे, तब हमारे अन्दर होंसला पैदा होता था। अब कहाँ से यह सब मिलेगा... पूरे रास्ते सभी को सूचना करता रहा कि जिससे भी संभव हो, तुरंत हरिद्वार पहुंचे। जो-जो राजीव भाई को अपना गुरु मानते थे, अपना सखा मानते थे, अपना भाई मानते थे, वे सब हरिद्वार पहुंचे। यह सन्देश सभी को पहुंचाने के लिए बोलता रहा।

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सुबह करीब 4 बजे भिलाई पंहुचा और सीधा अनूप भाई के साथ उस अस्पताल में पंहुचा जहाँ राजीव भाई चिरनिद्रा में लेटे थे। जब ICU में पहुंचा तो वे बिस्तर पर लेटे हुए थे। वेंटीलेटर चल रहा था। कृत्रिम सांस चालू थी। असली सांस बंद थी। आँखें आधी खुली हुई थी।  जैसे महात्मा बुद्ध की लेटी हुई प्रतिमा की आँखें खुली हुई हो, ठीक वैसी ही समाधि जैसी स्थिति थी। पता नहीं, किसका इंतज़ार करते हुए सांस निकली थी या पता नहीं क्या सोचते-सोचते सांस निकली, चेहरा एकदम शांत था। कोई तकलीफ या परेशानी जैसा कुछ नहीं लगा। चेहरे पर चमक बरक़रार थी। डॉक्टर ने आकर कुछ बताया, पता नहीं क्या कहा। बस इतना ही समझ आया कि राजीव भाई नहीं रहे, केवल वेंटीलेटर चालू है। वेंटीलेटर निकालने के लिए कहा और उनको शान्ति से सुला देने के लिए कहा, उनकी खुली हुई आँखें बंद की, और चरणों में प्रणाम किया, सिर्फ एक ही बात मन से निकली की इतनी जल्दी क्यों चले गए। अभी तो बहुत काम करना था। बहुत लड़ना था। अपने सपनो का स्वदेशी भारत बनाना था। यह सच है की अपनी अंतिम सांस तक राजीव भाई अपनी कर्मभूमि में डटें रहे। देश को स्वदेशी बनाने के अभियान को जन-जन तक पहुचाने में लगे रहे जैसे एक सैनिक लड़ाई के अंतिम दौर तक अपनी स्थिति नहीं छोड़ता, चाहे उसके प्राण ही क्यों न चले जाये, वैसे ही राजीव भाई अंतिम समय तक अपनी समरभूमि में ही थे।

उस समय लगभग 5 बज रहे थे। उनका शरीर सुबह 9-10 बजे तक फ्रीज़र में रखा गया। उस समय स्वामी जी का शिविर शिकोहाबाद में चल रहा था वहीँ से उन्होंने राष्ट्र को राजीव भाई के जाने का सन्देश दिया, पूरे देश में राजीव भाई को जानने वाले और चाहने वालों के लिए यह शोकाकुल सन्देश सदमा पहुचाने वाला था।  उनके अंतिम संस्कार की खबर दी गयी कि वह हरिद्वार में होगा।  दूर-दूर से लोग हरिद्वार पहुचने के लिए निकल पड़े।  

सुबह 9 बजे अस्पताल के नीचे वाले हिस्से में ही उन्हें अंतिम दर्शन के लिए रखा गया, जहाँ भिलाई शहर के हजारो स्वदेशी प्रेमी भाइयो-बहनों ने उनके दर्शन किये। लोगो के आंसू रुक नहीं रहे थे।  मेरे तो आंसू ही सूख गए थे। आँखें पत्थर हो गयी थी, करीब 11 बजे उनको रायपुर लेकर गये, वहां भी उनको अंतिम दर्शन के लिए रखा गया। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ. रमण सिंह जी अपनी श्रद्धांजलि देने आये और उसके बाद उन्हें एअरपोर्ट लेकर आये, जहाँ भारत स्वाभिमान के हजारों कार्यकर्ता उनको अंतिम विदाई देने के लिए खड़े थे। जैसे ही राजीव भाई वहां पहुंचे, वैसे ही उनके दर्शन के लिए लोगो में अफरातफरी मच गई।  सब अपने प्रिय राजीव भाई को अंतिम बार एक नज़र देख लेना चाहते थे।  फिर तो दोबारा मिलना नहीं होगा, सिर्फ यादें रह जाएँगी। वहां अंतिम दर्शन के बाद एक छोटे हवाई जहाज़ से उनको लेकर हम हरिद्वार के लिए निकल पड़े।  

रायपुर से हरिद्वार का सफ़र कोई साढ़े तीन घंटे का था। हमारा हवाई जहाज़ उड़ा। हवाई जहाज़ में कुल चार सीटें थी। एक पर मैं था और दो पर छत्तीसगढ़ के दो भाई। राजीव भाई मेरे बगल में लेटे हुए थे। एक 8 फुट के बक्से में उनका शरीर बंद था। सफ़ेद-सफ़ेद बादलों के बीच में जब हम जा रहे थे तब बार-बार ऐसा लग रहा था कि राजीव भाई की आत्मा भी यहीं-कहीं बादलों के बीच में होगी, वह हमारे साथ ही चल रही होगी।  वह तीन घंटे मेरे जीवन में नया मोड़ लेकर आये। सबसे पहले तो बार-बार यही बात मन में आ रही थी कि अब क्या करें? कैसे करें? इस लड़ाई को कैसे आगे बढ़ाये, कैसे राजीव भाई के सपनो को पूरा करें। राजीव भाई के अन्दर भारत को विदेशी संस्कृति और शोषण से मुक्त कराने की और भारत को स्वदेशी, स्वावलंबी और स्वाभिमानी बनाने की जो तड़प थी, उसको कैसे बरक़रार रखा जाये। उनकी यह तड़प सभी भारतीयों में कैसे प्रदीप्त की जायें।

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राजीव भाई का पूरा जीवन आँखों के सामने घूम गया। कैसे २० साल का एक नौजवान, जो इलाहाबाद में इंजीनियर बनने आया, घरवालो नें IAS, PCS, के ख्वाब देखकर इलाहाबाद भेजा, देश की ग़रीबी, भुखमरी और शोषण व अन्याय की लड़ाई में शामिल हो गया, शायद राजीव भाई मं क्रांतिकारियों का ही खून था, जो उन्हें इस क्षेत्र में लेकर आया। उनके जीवन के सभी उतार-चढाव आँखों के सामने घूम गए और अंत मं तमाम विरोध के बावजूद भारत स्वाभिमान के रूप में देश प्रेम को परवान चढाने का समय भी देखा। लेकिन अचानक से यह झटका लगा कि सबकुछ शीशे की तरह टूटा। उनके चरणों पर हाथ रखकर संकल्प लिया कि मैं जीवन भर राजीव भाई के सपनो को पूरा करने का वचन निभाऊंगा, जिस तरह राजीव भाई अंतिम सांस तक देश को स्वदेशी बनाने की लड़ाई लड़ते रहे, उसी तरह मैं भी उनकी इस परंपरा को आगे बढाते हुए ही अपना पूरा जीवन इसी लड़ाई के लिए समर्पित कर दूंगा। मन में यह संकल्प लिए और मन को मज़बूत बनाया, आंसुओं को पोंछा और कठोर हृदय करके इस इस लड़ाई को अपने कंधो पर ले लिया। जब तक भारत को पूर्ण स्वदेशी, पूर्ण स्वावलंबी और स्वाभिमानी नहीं बना लेंगे तब तक चैन की सांस नहीं लेनी है, बहुत सारे लोगो ने कहा की राजीव भाई दोबारा आएंगे... इस अधूरी लड़ाई को पूरा करने के लिए। यदि ऐसा होता भी है, तो भी जब तक वे आयें तब तक इसको जिंदा रखना और चलाये रखने की ज़िम्मेदारी अपने कंधो पर उठा ली है। स्वामी जी का आशीर्वाद है ही, और राजीव भाई के मानने वाले और चाहने वालो का आशीर्वाद भी रहेगा ही।  

करीब 5-6 बजे के आसपास हरिद्वार आ गया, वहाँ आचार्य बालकृष्ण जी राजीव भाई को लेने आये थे।  राजीव भाई को लेकर सीधे भारत स्वाभिमान के कार्यालय में गए। वह राजीव भाई के अंतिम दर्शन करने वालो का तांता लगना शुरू हो गया। ‘राजीव भाई अमर रहे’ के नारों के साथ उनका पार्थिव शारीर श्रद्धालयम के उसी विशाल हॉल में रखा गया जहाँ उन्होंने कई ऐतिहासिक व्याख्यान दिए थे। सामने वही मंच था, जहाँ राजीव भाई नें स्वामीजी के सानिध्य में देश के नौजवानों को ललकारा था और उनकी आवाज़ पर सैंकड़ो जीवनदानी अपना सबकुछ छोड़कर भारत स्वाभिमान की इस लड़ाई में कूदे थे। उनमे से काफी जीवनदानी भाई भी वहां थे। वे सभी हतप्रभ थे, उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें? राजीव भाई को बर्फ की सिल्लियो पर लिटाया गया, उनको गर्मी बहुत लगती थी इसीलिए शायद अपने अंतिम समय में वे बर्फ पर लेटे थे। तब तक माँ-पिताजी भी आ गए। उनको अभी तक नहीं बताया गया था कि राजीव भाई नहीं रहे। हरिद्वार में हॉल में प्रवेश से पहले ही उन्हें बताया गया था कि राजीव भाई नहीं रहे।  हॉल में प्रवेश से पहले ही पिताजी ने विलाप करते हुए पूछा कि भैया को कहाँ छोड़ कर आये, मैं क्या जवाब देता.. मेरे पास कोई उत्तर नहीं था..एक बाप अपने बेटे के अंतिम दर्शन के लिए आया था। वह बेटा, जिसने देश सेवा का व्रत लेकर भारत माँ को विदेशी कंपनियों से मुक्त करने और खुशहाल बनाने की लड़ाई छेड़ी थी, उसके अंतिम दर्शन के लिए आये थे। माँ बार-बार राजीव भाई के चेहरे को प्यार से छू-छूकर बोल रही थी कि आज तो तेरा जन्मदिन था। एक बार तो उठ जा, लेकिन राजीव भाई तो शान्ति से सो रहे थे।  स्वामीजी ने सभी को ढान्ढस बंधाया और कहा कि हम सब आपके बेटे है। आप तो हज़ार बेटो वाली माँ हो। दूर-दूर से सभी साथियो का आना जारी था। पुराने-पुराने साथी आ रहे थे अंतिम दर्शन के लिए। रात भर यह सब चलता रहा।      
 
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सुबह 8 बजे कनखल के घाट पर अंतिम संस्कार के लिए ले जाने की तैयारी शुरू हो गयी। अंतिम संस्कार के लिए ठठरी पर लिटाने से पूर्व राजीव भाई को स्नान कराया गया।  सभी प्रेमी साथियो ने अपने हाथो से निहलाया, घी चन्दन लगाया और खादी के कपडे में लपेट कर उन्हें ठठरी पर लिटाया गया, उसके बात वन्दे मातरम के नारों के साथ राजीव भाई को स्वर्ग रथ में बिठाया गया। 'वन्दे मातरम' और 'राजीव भाई अमर रहे' के नारों के साथ राजीव भाई को कनखल आश्रम में अंतिम दर्शन के लिए रखा गया। स्वामीजी की माताजी के आंसू रुक ही नहीं रहे थे। वह पर हरिद्वार के हजारों लोगो ने राजीव भाई के दर्शन किये। वहाँ से घाट तक राजीव भाई को कंधे पर ले जाया गया। कनखल घाट पर उनकी चिता सजाई गयी। मैंने स्वामी जी से आग्रह किया की स्वामी जी, आप राजीव भाई को वर्धा से गंडा बांधकर लाये थे और अपने शिष्य के रूप में स्वीकार किया था, इसीलिए आप अपनी सन्यास परंपरा को छोड़कर मुखाग्नि अवश्य दें। स्वामी जी ने, आचार्य जी ने और मैंने, तीनो ने मिलर मुखाग्नि दी। सभी उपस्थित कार्यकर्ताओ ने सामग्री डाली और राजीव भाई पंचतत्व में विलीन हो गए।

उनका शरीर अब हमारे साथ नहीं है, लेकिन उनके विचार, उनके संकल्प हमारे साथ है... उन्हें पूरा करना है। गंगा में उनकी अस्थियो को इस संकल्प के साथ प्रवाहित किया कि राजीव भाई के विचार को पूरे देश में फैलाना है। गंगा जहाँ-जहाँ जाती है, वहां-वहां राजीव भाई के विचार फैलेंगे और उन्ही किनारों पर फिर से वे पैदा होंगे। राजीव भाई की जन्मभूमि गंगा किनारे ही रही और वे फिर से उन्ही किनारों पर पैदा होंगे। स्वदेशी के प्रति राजीव भाई की अगाध श्रद्धा और तड़प को शत:शत नमन, इसी तड़प और श्रद्धा को लेकर हम सब इस लड़ाई को जारी रखेंगे,

- प्रदीप दीक्षित (सेवाग्राम, वर्धा) प्रदीप दीक्षित जी से जुडें : fb.com/pradeepdixitsbp
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