क्या विदेशी कंपनियों के आने से पूंजी आती है : राजीव दीक्षित

Published: Saturday, Feb 18,2012, 11:00 IST
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भारत में विदेशी कंपनियों द्वारा की जा रही लूट (भाग ०१) से आगे पढ़ें: विदेश व्यापार मंत्रालय, उद्योग मंत्रालय, वाणिज्य मंत्रालय एवं वित्त मंत्रालय के कुछ आंकड़े देखें जाए तो विदेशी कंपनी भारत में पूंजी ले कर नहीं आती अपितु ले कर जाती है, आप एक छोटी बात सोच कर देंखें की कोई कंपनी अपनी पूंजी भारत में क्योँ लाएगी ?

जब अमेरिका में पूंजी की अत्यधिक कमी है यूरोप में पूंजी की अत्यधिक कमी है एवं इसी कारण अमेरिका यूरोप के बड़े बड़े कारखाने बंद हो गए, कंपनियां बंद हो रही है, लेहमन ब्रदर्स, स्टैंडर्ड चार्टर्ड आदि ५६ बैंक पूंजी के आभाव में बंद हो गए | कारण यह है की पिछले ४० वर्षों में बैंको ने लोगों को अत्यधिक ऋण दिया एवं लोगों के पास बैंक का पैसा देने का सामर्थ्य नहीं रहा तो बैंको की पूंजी पूर्ण रूप से डूब गई, जब पूंजी डूब गई तो बैंक भी डूब गए बैंको में कंपनियों का पैसा रखा हुआ था जिसके कारण कंपनियां डूब गई | तो जिस अमेरिका में पूंजी की इतनी कमी हो वहाँ से कोई कंपनी पूंजी ले भारत में क्योँ आयेगी ? यदि विदेश की कोई कंपनी भारत में आयेगी तो जान लीजिए वह अपनी पूंजी ले कर नहीं आएंगे यहाँ से पूंजी विदेश ले जाने हेतु आयेंगे क्यूंकि इसी लिए वह बनाए गए है इसी हेतु से उनकी रचना की गई है |

५००० विदेशी कंपनियों का अध्यन के उपरांत यह बात समझ में आती है कि यदि मान लिया जाए की अमेरिका की एक कंपनी भारत में ५० रु का निवेश करती है, ठीक एक वर्ष उपरांत जब उस कंपनी की बैलेंसशीट देखते है तो पता चलता है की उसने प्रत्येक ५० रु. पर १५० रु. भारत से कमा कर अमेरिका को भेज दिया, ०१ डॉलर ले कर आये एवं ०३ डॉलर ले कर चले गए | १९५१-५२, १९५२-५३, १९५३-५४ ... आदि रिज़र्व बैंक के आंकड़े, एकत्रित कर यह जानने का प्रयास किया कि कितनी पूंजी आती- जाती है कभी २० सहस्त्र (हज़ार) करोड़ की पूंजी आई तो उसी वर्ष ६० सहस्त्र (हज़ार) करोड़ की पूंजी यहाँ से चली गई निवेश के अनुपात में परोक्ष रूप से की जाने वाली लूट भी बढ़ती चली गई २५ सहस्त्र करोड़ आये तो ७५ सहस्त्र करोड़... ३० सहस्त्र करोड़ आये तो ९० सहस्त्र करोड़ यहाँ से चले गए | अर्थात अधिक पूंजी हमारे देश में आती नहीं है अपितु अधिक पूंजी तो हमारे देश से चली जाती है |

पहले एक वर्ष के आंकड़े निकाले उसके पश्चात १५-१६ वर्ष के  आंकड़े निकाले तो पता चला कि १ डॉलर यहाँ आ रहा है तो ३-४ डॉलर यहाँ से जा रहा है, कभी कभी तो प्रति वर्ष ५ डॉलर तक जा रहा है | अब इसमें एक और महत्वपूर्ण बात है कि वह अपनी पूंजी लगाते है, एक वर्ष में उसका तीन गुना अर्जित कर लेते है एवं उसके पश्चात कई-कई वर्षों तक जैसे १० वर्ष, १५ वर्ष, २० वर्ष... तक बिना किसी पूंजी निवेश के वे यहाँ से करोड़ो डॉलर लूटते रहते है | सरल रूप से समझे तो ५० रु लगा के उन्होंने व्यापार प्रारंभ किया एवं पहले वर्ष ही १५० रु. अर्जित कर लिए तो तीन गुना तो वे ले ही गए अब दूसरे वर्ष में २०० रु., तीसरे वर्ष में ३०० रु. इसी क्रम में प्रति वर्ष जो पूंजी जायेगी एक वर्ष उपरांत वह यहाँ से पूंजी की लूट है ना की पूंजी का भारत में प्रवेश यह बहुत महत्व की एवं समझने की बात है |

# फुटपाथ पर जीने वाले लोगों की संख्या, विदेशी कंपनियों के कारण बढ़ रही है
# मेरी शिक्षा मातृभाषा में हुई, इसलिए ऊँचा वैज्ञानिक बन सका - अब्दुल कलाम

एक और महत्वपूर्ण जानकारी यह है की जब भी कोई विदेशी कंपनी भारत में पूंजी लाती है तो, आपको जान आश्चर्य होगा की वह अपने साथ बहुत थोड़ी सी पूंजी ले कर आती है ... बहुत थोड़ी एवं बाकी सारी पूंजी वे व्यापार के लिए भारत से ही एकत्रित करते है | हमारे देश में जो बड़ी बड़ी विदेशी कंपनियों की चर्चा की जाती है उसमें सबसे बढ़ी कंपनी है " हिंदुस्तान लीवर लिमिटेड " आपको नाम से भ्रम होगा किंतु इसका वास्तविक नाम यूनिलीवर है | यह ब्रिटेन एवं हॉलेंड के संयुक्त उपक्रम की कंपनी है | यह जब सबसे पहले सन १९३३ में भारत में व्यापार करने आई तो इस कंपनी ने मात्र १५ लाख रु. का पूंजी निवेश किया जिसे शुरुआती चुक्ता पूंजी (इनिशिअल पेडअप कैपिटल) कहते है | यही पूंजी महत्व की होती है क्यूंकि इसके निवेश उपरांत जो लाभ होता है, उसी लाभांश का प्रयोग पुनः पूंजी के निवेश में वे लोग करते है | अब यह लाभ तो यहाँ उत्पन्न हुआ है यह तो स्वदेश से आया है | व्यापार के ६-८ माह उपरांत इन्होंने थोड़ा और निवेश किया कूल पहले वर्ष इन्होंने ३३ लाख रूपये का निवेश किया |


अब यह " हिंदुस्तान लीवर लिमिटेड " भारत से जो लाभ अर्जित कर रही है एक वर्ष में वह १४ सहस्त्र (हज़ार) ७ सौ ४० करोड़ रु. आधिकारिक है जो वह अपनी बैलेंसशीट में दिखाते है जिसमें से २१७ करोड़ तो शुद्ध रूप से विदेश ले जाते है | मात्र थोड़ी सी पूंजी लगा कर विगत वर्षों में यह सहस्त्रों (हजारों) करोड़ ले गए | ऐसे ही एक और कंपनी है अमेरिका की " कोलगेट पॉमोलिव " मात्र १३ लाख रु. लगा कर प्रति वर्ष २१३ करोड़ रु विदेश ले जा रही है | नोवार्टिस, फिलिप्स, गुड ईयर, ग्लेक्सो, फाईज़र, एबोर्ट इंडिया लिमिटेड ... ऐसी न जाने कितनी कंपनियां है जिन्होंने बहुत थोड़ी पूंजी लगा कर कई-कई करोड़ भारत से लूट लिया एवं “ प्रति वर्ष ” लूट रहे है ...

उदाहरण से समझिए ब्रिटिश कंपनी ग्लेक्सो की शुरुआती चुक्ता पूंजी मात्र ८ करोड़ ४० लाख रु (लगभग) है जिसे लगा कर प्रति वर्ष ५३७ करोड़ ६६ लाख विदेश ले जा रही है दो वर्ष में १००० करोड़ से अधिक तीन वर्ष में १५०० करोड़ से अधिक, यह कंपनी भारत में पिछले ३० वर्षों से है | एक और बड़ी कंपनी है जो सबसे अधिक सिगरेट बेचती है भारत में आई.टी.सी. " इंडियन टोबेको कंपनी " के भ्रामक नाम से, इसका वास्तविक नाम " अमेरिकेन टोबेको कंपनी " है शुरुआती चुक्ता पूंजी मात्र ३७ करोड़ रु लगा प्रति वर्ष ३१२० करोड़ रु विदेश ले जा रही है | औसतन ५०० सिगरेट, उन्हें रखने हेतु डिबियाँ, उन्हें को रखने हेतु बड़े खोखे अदि के निर्माण में जितना कागज लगता है उसके कारण एक पेड़ कट जाता है | इस कंपनी की इस देश में प्रति वर्ष २० अरब से अधिक सिगरेट बिकती है अर्थात लगभग चौदह करोड़ पेड़ यह कंपनी प्रति वर्ष कटवा देती है |

हम भारतीय अपने स्वभाव एवं संस्कार से पेड़ लगाते है, सरकर हमे कहती है पेड़ लगाओ और इस देश की विचित्र स्थिति क्या है की आई.टी.सी चौदह करोड़ पेड़ कटती है तो वह भारत सरकार की दृष्टि में अपराध नहीं है किंतु यदि गाँव का कोई साधारण व्यक्ति जंगल में जा पेड़ काट लकड़ी ले आता है तो उसे दण्डित किया जाता है | अब तो ऐसी हास्यास्पद स्थित है की जो पेड़ आपने लगाया, मैंने लगाया अपने खेत में लगाया उसे भी आप नहीं काट सकते न्यायिक दृष्टि से अपराध माना जाता है हमारे देश में सहस्त्रों वनवासी, आदिवासी भाई बहनों पर अभियोग चल रहा है की उन्होंने अपने घर में रोटी बनाने हेतु किसी पेड़ से, जंगल से लकड़ी काटी | रोटी बनाने के लिए लकड़ी काटी तो अपराध है एवं सिगरेट निर्माण हेतु करोड़ो पेड़ कट गए तो उसे सरकार अपराध मानती ही नहीं है | स्पष्ट है की विदेशी कंपनियों के कारण भारत से पूंजी जा रही है एवं जो दुष्परिणाम हो रहे है वह अलग हैं ... अगला भाग आगे पढ़ें ... क्या विदेशी कंपनियों के आने से भारत का निर्यात बढ़ता है ..

- भाई राजीव दीक्षित | अन्य लेखों के लिए राजीव भारत खंड पढ़ें

 

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