हिंदी साहित्य में वीर महाराणा प्रताप

Published: Thursday, Jan 19,2012, 18:42 IST
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प्रातः स्‍मरणीय महाराणा प्रताप के विषय में बहुत कुछ लिखा जा चुका है, बहुत कुछ लिखा जा रहा है। हिन्‍दी साहित्‍य के मूर्धन्‍य साहित्‍यकारों ने, राजनेताओं ने तथा अनेकों विशिष्ट व्‍यक्‍तित्‍वों ने प्रताप के लिये शाब्‍दिक श्रद्धा सुमन चुने हैं।

प्रख्‍यात गांधीवादी कवि श्री सोहनलाल द्विवेदी ने निम्‍न शब्‍दों में प्रताप का ‘आह्वान' किया है--

माणिक, मणिमय, सिंहासन  को,
कंकड़ पत्‍थर के कोनों पर।
सोने चांदी के पात्रों को पत्‍तों के पीले
दोनों पर।
वैभव से विहल महलों को कांटों की कटु
झौंपड़ियों पर।
मधु से मतवाली बेलाएं, भूखी बिलखती
घड़ियों पर।
‘रानी', ‘कुमार'सी निधियों को, मां
के आंसू की लड़ियों पर।
तुमने अपने को लुटा दिया, आजादी की
फुलझड़ियों पर।

लोचन प्रसाद पाण्‍डे ने अपनी लेखनी को यह लिखकर अमर दिया-

स्‍वातन्‍त्रय के प्रिय उपासक कर्म वीर।
हिन्‍दुत्‍व गौरव प्रभाकर धर्मवीर।
देशाभिमान परिपूरित धैर्य धाम।
राणा प्रताप, तब श्रीपद में प्रणाम।
वीरत्‍व देख मन में,रिपु भी लजाते।
हे हर्ष युक्‍त जिनके गुण गान गाते।
है युद्ध नीति जिनकी छल छिद्रहीन।
वह श्री प्रताप हमको बल दे नवीन।

श्री श्‍याम नारायण पाण्‍डे ने अपने काव्‍य हल्‍दीघाटी में इस वीर शिरोमणि का वर्णन निम्‍न ढंग से किया--

चढ़ चेतक पर तलवार उठा
रखता था भूतल पानी को
राणा प्रताप सिर काट काट
करता था सफल जवानी को॥
श्री राधा कृष्णदास ने प्रताप के शौर्य का निम्‍न शब्‍दों में वर्णन किया है--
ठाई महल खंडहर किये सुख सामान विहाय,
छानि बनन की धूरि को गिरि गिरि में टकराय।

बाबू जयशंकर प्रसाद ने अपने ऐतिहासिक काव्‍य ‘महाराणा का महत्‍व' में खानखाना के मुंह से कहलवाया--

सचमुच शहनशाह एक ही शत्रु वह
मिला आपको है कुछ उंचै भाग्‍य से
पर्वत की कन्‍दरा महल है, बाग है-
जंगल ही, अहार घास फल फूल है।

हरिकृष्ण प्रेमी ने अपनी श्रद्धा के सुमन निम्‍न शब्‍दों में अर्पित किये-

सारा भारत मौन हुआ जब
सोता था सुख से नादान।
तब बन्‍धन के विकट जाल से।
लड़ा रहे थे तुम ही जान।

श्री सुरेश जोशी ने मानवता व प्रताप का वर्णन निम्‍न शब्‍दों में किया है।

राज तिलक सूं महाराणा पद पायो,
पण मिनखपणां रो तिलक कियो खुद हाथा,
तूं राणा सूं छिन में बणग्‍यो बेरागी
तूं अल्‍ख जगाई, जाग्‍यो अगणित राता।

कन्‍हैयालाल सैठिया की प्रसिद्ध कविता पातल और पीथल में अपना संकल्‍प दोहराते हुए प्रताप कहते हैं-

‘हूं भूखमरूं, हूं प्‍यास मरूं,
मेवाड़ धरा आजाद रहे।
हूं घोर उजाड़ा में भटकूं,
पण मन में मॉ री याद रखे॥

प्रसिद्ध क्रांतिकारी श्री केसर सिंह बारहठ ने महाराणा श्री फतहसिंह को 1903 में एक पत्र लिखा, इस पत्र में उन्‍होंने महाराणा प्रताप के शौर्य, आनबान का वर्णन करते हुए महाराणा फतहसिंह को दिल्‍ली दरबार में जाने से मना किया था उसी पत्र की पंक्‍तियां प्रस्‍तुत हैं।

‘पग पग भाग्‍या पहाड़, धरा छौड़ राख्‍यों धरम।
‘ईसू' महाराणा रे मेवाड़, हिरदे, बसिया हिकरे।'
डिंगल भाषा में पृथ्‍वीराज ने लिखा है--
‘जासी हाट बाट रहसी जक,
अकबर ठगणासी एकार,
रह राखियो खत्री धम राणे
सारा ले बरता संसार।

आधुनिक खड़ी बोली में कई कवियों ने प्रताप को विषय बनाकर बहुत कुछ लिखा है। इन में प्रसाद, निराला, माखनलाल चतुर्वेदी, सुभद्रा कुमारी, मैथिलीशरण गुप्‍त, दिनकर, नवीन, रामावतार, राकेश, श्‍याम नारायण पाण्‍डेय, रामनरेश त्रिपाठी,हरिकृष्ण प्रेमी आदि मुख्‍य हैं।

हरिकृष्ण प्रेमी की ये पंक्‍तियां--
‘भारत के सारे बल को जब ,कसा बेड़ियों ने अनजान।
तब केवल तुम ही फिरते थे, वन वन पागल सिंह समान।

प्रताप के त्‍याग, बलिदान, स्‍वातन्‍त्र्य भावना की कामना कवियों ने की है। रामनरेश त्रिपाठी ने प्रताप के वंशजों से कहा है--

‘हे क्षत्रिय! है एक बूंद भी
रक्‍त तुम्‍हारे तन में जब तक
पराधीन बनकर तुम कैसे
अवनत कर लेते हो मस्‍तक।'

महाराणा प्रताप के विषय में सैकड़ों कविताएं, सोरठे हिन्‍दी, ब्रज भाषा, डिंगल, पिंगल आदि में उनके समय से ही मिलती है, यह बात उनकी लोकप्रियता, वीरोचित भावना तथा त्‍याग व बलिदान की ओर इशारा करती है। प्रख्‍यात कवि पृथ्‍वीराज राठोड़ ने ठीक ही कहा-

माई एहड़ा पूत जण, जेहड़ा राणा प्रताप।
अकबर सूंतो ओजके जाण सिराणे सांप।

रचनाकार: यशवन्त कोठारी का आलेख : आधुनिक हिन्‍दी साहित्‍य में महाराणा प्रताप

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