भारतीय मीडिया एक निरंकुश हाथी...

Published: Friday, Oct 05,2012, 09:52 IST
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एमएमएस घोटालों मे हाल ही में आयी बाढ़ को व्यंग्यात्मक रूप से कुछ यूं देखा जा सकता है: यह राष्ट्र एक एमएमएस, मन मोहन सिंह चला रहे हैं लेकिन हो सकता है लोगों के मन में यह प्रश्न हो की उन्हे आखिर कितने अधिकार प्राप्त है? अश्लील एमएमएस से हटकर इस देश ने एमएमएस के राज मे हुए राजनैतिक घोटालों के एमएमएस की पूरी धारावाहिक शृंखला देखी। विगत कई दिन इन घोटालों को दबाने के कारणों को समर्पित रहे।

In English : Can The Congress' Propaganda Cover-up MMS Scams?
20 सितंबर को भाजपा और राजग (एनडीए) के घटक दलों द्वारा प्रस्तावित अखिल भारतीय राजनैतिक हड़ताल थी, या जैसा भारतीयों को कहना पसंद है.... भारत बंद था। यदि निष्पक्ष दृष्टि से देखें तो यह बंद पूरी तरह सफल रहा लेकिन यदि मीडिया के कवरेज को देखें तो निश्चय ही मीडिया का दुष्प्रचार ध्यान मे आए बिना नहीं रहेगा। ऐसा लग रहा था मानों खबरें अकबर रोड या 10 जनपथ मे बैठकर लिखी जा रही हों और नोएडा के स्टूडियो से प्रसारित हो रही हों जहाँ चैनल के संपादकों की भूमिका काँग्रेस के कार्यकर्ता निभा रहे हों।

काँग्रेस के प्रति मोह रखने वाले चैनल्स रेलवे स्टेशन, अस्पताल और हर उस जगह पहुँचे जहां से वे बंद की वजह से लोगों को हुए दुख की कहानियाँ बना इकट्ठी कर सकें या ‘बना’ सकें और फिर उन कहानियों को चैनल के संवाददाता अपने घड़ियाली आँसू बहाते दिखाते रहे। मीडिया जनता की नब्ज़ को अच्छी तरह जानता है। वही लोग जो बंद के दौरान घर मे आराम से छुट्टी मनाते हैं, यदि हनीमून मनाने के लिए खंडाला जाना हो तो बंद को गालियां देते हैं। जनता का दुख हर बंद के दौरान इसी तरह का रहता है। चाहे वह भाजपा समर्थित बंद हो या काँग्रेस द्वारा घोषित बंद। हाँ यह अलग बात है की काँग्रेस समर्थित बंद को मीडिया का सकारात्मक कवरेज मिलता है। काँग्रेस प्रेमी मीडिया का बंद कवरेज 2 मुख्य सिद्धांतों पर आधारित था-

01. बंद को असफल घोषित करना लेकिन फिर भी ‘जनता को हुई परेशानियों’ के लिए भाजपा को कोसना।
02. बंद को मिली सफलता से भाजपा को दूर रखना।
 
दो प्रसिद्ध हिन्दी न्यूज़ चैनल्स के दो उदाहरण मेरी बात को और स्पष्ट कर देंगे-

# “ बंद के कारण 50,000 करोड़ का नुकसान.... राजनीति का खुला खेल.... राजनेताओं का बंद… आम जनता को क्या मिला?......12,500 करोड़ का नुकसान”- ज़ी न्यूज़
# “हड़ताल का कोई असर नहीं। मेरी हड़ताल, आपकी हड़ताल, आखिर किसकी हड़ताल है यह? भाजपा का कार्यकर्ता गिरफ्तार”- आज तक
सबसे पहले तो, इन चैनलों द्वारा दिखाये गए नुकसान के आंकड़े ही गलत थे। आखिर दिन खत्म होने से पहले ही उन्हे ‘दिन भर मे हुए नुकसान’ के आंकड़े कहाँ से मिल गए? 50,000 और 12,500 में से आखिर कौन सा आंकड़ा सही है? या वे दोनों ही गलत हैं? और यदि हड़ताल सचमुच बेअसर थी तो ये आर्थिक नुकसान के ये इतने बड़े आंकड़े आखिर आए कहाँ से? इन खबरिया चैनलों ने धोखाधड़ी के मैनेजमेंट का प्रशिक्षण कोर्स शुरू कर देना चाहिए। वैसे, क्या ये आंकड़े एमएमएस शासन मे हुए 2G घोटाले से लेकर कोलगेट घोटाले और स्विस बैंकों मे सुरक्षित रखा 400 लाख करोड़ रुपये का कालाधन जैसे बड़े-बड़े घोटालों को ढंकने के लिए ज़बरदस्ती पैदा किए गए? इतने बड़े घोटालों को ‘बंद से हुए नुकसान’ के फर्जी आंकड़ो से ढंकना तो ऐसा ही है जैसे फरवरी के महीने में खुले आसमान के नीचे सोये किसी इंसान को  कड़कड़ाती ठंड से बचाने के लिए रुमाल ओढा दिया जाए। मुंगेरी मीडिया के फिजूल सपने!

सभी जानते हैं कि केवल भाजपा ही पूरे देश मे हड़ताल को सुचारु रूप से चलाने का माद्दा रखती है। वरना क्यों खुद मीडिया भाजपा कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी दिखाता? आजतक को यह क्यों नहीं समझ आता कि जनता के पास भी सोचने-समझने वाला एक अदद दिमाग है! या आजतक बॉलीवुड से बदला लेना चाहता है जो इस चैनल को गंभीरता से नहीं लेते और हर इक्का-दुक्का फिल्म मे इस चैनल का मज़ाक उड़ाते हैं? फिल्म वेलकम का मूर्ख सा चैनल याद है? क्या इसलिए ही आजतक ‘ये तेरा घर ये मेरा घर’ को ‘ये तेरा बंद ये मेरा बंद’ की तरह नकल करके खुद को अलंकृत करना चाहता है?

यहाँ तक कि एमएनएस और शिवसेना के बंद मे शामिल नहीं होने को भी एनडीए के घटक दलों में आपसी सहयोग की कमी की तरह दर्शाया गया। बेवकूफ़ों! महाराष्ट्र में यह समय गणेशोत्सव का है जो महाराष्ट्र का मुख्य त्यौहार है जैसे बंगाल मे दुर्गापूजा या पंजाब मे नानक जयंती और नवरात्र, तमिलनाडू मे पोंगल और बिहार मे छठ महत्वपूर्ण होते हैं। शिवसेना या एमएनएस जनता का धार्मिक महोत्सव बिगाड़ना नहीं चाहते थे, बस इतनी सी बात थी।

इसी तरह बंगाली न्यूज चैनल एबीपी आनंद ने इसे ‘क्रियाहीन बंद’ कहा। यकीन मानिए यह वही चैनल है जिसने बंगाल मे तृणमूल काँग्रेस के खिलाफ बंद का समर्थन किया था।

पैदल सैनिकों के लड़ाई हारने के बाद खुद सेनापति दुष्प्रचार भरे युद्ध पर उतर आता है। मुझे हमेशा एमएमएस की मुद्राओं को निहारना अच्छा लगता है। वो बैठे हुए किसी पुतले की तरह नज़र आते हैं तो खड़े होने पर किसी कठपुतली जैसे दिखते हैं। चलते वक़्त तो पूरे रोबोट नज़र आते हैं। मुझे सिर्फ इतना नहीं पता था कि वो बोलते हुए कैसे नज़र आते हैं? कल मुझे अपने इस प्रश्न का जवाब मिल गया। मैंने राष्ट्रीय समाचार चैनल पर उनके भ्रामक प्रचार भरे बयान को सुना और मुझे एहसास हुआ कि यह आदमी भले ही प्रधानमंत्री के रूप मे अच्छा नहीं लगता हो लेकिन ‘भ्रामक प्रचार मंत्री’ के रूप मे वे सबसे अधिक सटीक लगेंगे। एक समर्पित कोंग्रेसी होने के नाते वे नीचता के किसी भी बिन्दु तक गिरने को तैयार हैं।  ये रहे उनके भाषण के कुछ अंश जिसे उन्होने काफी पूर्व-तैयारी के बाद गहरी सांस भरते हुए, बिना किसी उतार-चढ़ाव या हाव-भाव के पढ़ा, इस डर के साथ बोला कि ‘सर्वशक्तिमान’ ना जाने इस भाषण को पसंद करेंगी या नहीं? ;
 
कीमतों के आसमान छूने के मुद्दे पर उनका कहना था- “80% पेट्रोलियम आयात किया जाता है। पेट्रोल की कीमतें 17 रुपये तक बढ़नी चाहिए थी लेकिन हमने केवल 5 रुपये बढ़ाए। सबसीडी को कम करना ज़रूरी है। यदि हम कीमते नहीं बढ़ाते तो वस्तुओं की कीमत और बढ़ जाती। यदि हम कीमते नहीं बढ़ते तो 200,000 करोड़ का नुकसान होता”

एमएमएस जी, हम जानते हैं कि यदि संभव होता तो आप घरेलू पेट्रोलियम संसाधनों का उपयोग करने या पर्यावरण के अनुकूल कोई अन्य ऊर्जा संसाधन पर शोध करवाने की बजाय पूरा 100% पेट्रोलियम आयात करते। कुछ जगजाहिर व जहों से आपके अरब कौम से अदृश्य अनुबंध हैं। एमएमएस ने झूठे दावे करके जनता को गुमराह किया है। पेट्रोलियम विभाग द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार कुल 187,727 करोड़ का और अधिक से अधिक 2 लाख करोड़ का नुकसान होगा। एक ऐसा देश जिसके लोग आंकड़ों पर बहुत अधिक विश्वास करते हैं, यह व्यक्ति इस तरह के झूठे दावे करता है। क्या ये सच मे प्रख्यात अर्थशास्त्री हैं?

आखिर क्यों सब्सिडी को कम या समाप्त किया गया? हमने तो कभी भी आपके द्वारा प्रदत्त हज सब्सिडी और मदरसों को अनुचित आर्थिक मदद जैसी असंवैधानिक और गैरकानूनी इस्लामिक सब्सीडियों में कटौती कि कोई घोषणा तो क्या इस दिशा मे सोचने तक के बारे मे नहीं सुना? भरोसा कीजिये... भारत एक ‘धर्मनिरपेक्ष’ देश है। तो आखिर क्यों ये असंवैधानिक इस्लामी सबसीडियाँ खत्म नहीं की जाती?

हमारे एमएमएस जी चुट्कुले गढ़ने मे माहिर हैं। उन्होने एक हास्यास्पद वक्तव्य दिया- “यदि हम कीमतें नहीं बढ़ाते तो वस्तुएँ महंगी हो जाती।” जैसे कोई कहे कि :यदि मैं अर्थशास्त्र नहीं पढ़ता तो अर्थशास्त्री नहीं बनता” या “यदि मेरे पास भारत की नागरिकता ना होती तो मुझे भारतीय नहीं माना जाता” सच मे हमे बहुत ही ‘अच्छे’ प्रधानमंत्री मिले हैं !!
इस व्यक्ति ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) के लाभ कुछ यूं गिनाए- “पैसे पेड़ पर नहीं उगते। एफ़डीआई से किसानो को लाभ होगा। लाभ का 50% शीत-गृह (कोल्ड स्टोरेज) बनाने पर खर्च किया जाएगा।

किसानों को आखिर किस तरह का लाभ होने वाला है? इसी तरह कांग्रेसी मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा ने एक नयी खोज की कि खाद्य कीमतों मे वृद्धि किसानों के लिए फायदेमंद है !! लेकिन आखिर किस तरह? क्या हमरे पास शीत-गृह बनाने के लिए फंड की कमी है? तो हर गली मे अवैध बूचड़खाने खोलने के लिए धन कहाँ से आया इनके पास? क्या केवल उन मुस्लिमों को ही खुश करना इनका परम कर्तव्य है जिनके लिए इस्लाम के अलावा कोई चीज़ मायने नहीं रखती? आखिर धर्मनिरपेक्षता से जुड़े मुद्दों पर मुस्लिमों की ओर से कोई आवाज़ क्यों नहीं आती? विदेशी निवेश के बिना भी हम सभी समस्याओं का निराकरन कर सकते हैं। ज़रूरत है तो केवल साहस की।

यदि पैसे पेड़ पर नहीं उगते तो जनता की कमाई से अपने स्विस बैंक के खाते भरने, आम आदमी का खून चूसने, मुस्लिम तुष्टीकरण और जनता के भूखे होने के बावजूद मुस्लिमों को मुफ्त में अरब की सैर कराने से पहले सोचिए।

मनमोहन सिंह ने सही कहा था- “मुझे नागरिकों की समझ पर भरोसा है।” लेकिन मनमोहन जी, क्या जनता को आपकी समझदारी पर भरोसा है?

लेखक : Titu Shadowson |  अनुवाद : तनया गडकरी

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