मस्जिद बनाने के लिए अरबों की जमीन व दिल्ली का सरकारी खजाना लुटाने की तैयारी

Published: Monday, Jul 09,2012, 13:26 IST
Source:
0
Share
delhi mosque in front of lal quilla, shila dixit, shoaib iqbal, maulana saiyyad ahmed barewali,

मस्जिद बनाने को अरबों की जमीन व सरकारी खजाना लुटाने की तैयारी दिल्ली के मुसलमान नेताओं को खुश करने में जुटीं शीला दीक्षित - मनमोहन शर्मा

दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की कांग्रेसी सरकार लाल किले के सामने एक आलीशान मस्जिद का निर्माण करने के लिए अरबों रुपए मूल्य की भूमि दिल्ली के मुस्लिमों को भेंट कर रही हैं। बताया जाता है कि मुख्यमंत्री ने हाल में ही सुभाष पार्क की समूची भूमि अकबराबादी मस्जिद के निर्माण के लिए मुसलमानों को देने का वायदा किया है। यह वायदा उन्होंने मटिया महल इलाके से मुस्लिम विधायक शोएब इकबाल से किया है, जिसकी चर्चा वह पत्रकारों के बीच कर चुके हैं कि दिल्ली सरकार जल्दी ही उन्हें इसे सौंप रही है, जहां शीघ्र ही मस्जिद का निर्माण किया जाएगा।

शोएब इकबाल गत कई वर्षों से इस पार्क को मस्जिद बनाने के लिए मुस्लिमों को सौंपने की मांग कर रहे हैं। उनका दावा है कि इस जगह पर शाहजहां की बेगम अकबराबादी ने मस्जिद का निर्माण उस समय दस लाख रुपए की लागत से करवाया था। यह मस्जिद लाल पत्थर और संगमरमर से बनी हुई थी। इसी मस्जिद से मौलाना सैयद अहमद बरेलवी और मौलाना मोहम्मद सईद ने अंग्रेजों के खिलाफ जिहाद करने का फतवा जारी किया था। देश के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की विफलता के बाद अंग्रेजों ने इस मस्जिद को तोपों से उड़ा दिया था। इसके मलबे पर एडवर्ड पार्क का निर्माण किया गया, जिसमें ब्रिटिश सम्राट एडवर्ड सप्तम की प्रतिमा लगाई गई थी। साठ के दशक में डा. राम मनोहर लोहिया के दबाव पर उस मूर्ति को हटाकर बुराड़ी भेज दिया गया था और इस पार्क का नया नाम 'सुभाष पार्क' रखा गया था। ऐसा ऐतिहासिक स्थान तो देश की धरोहर है और वह पुरातत्व विभाग की देखरेख में होना चाहिए। बताया जाता है कि विभाग की आपत्ति के बावजूद इस बेशकीमती जमीन पर मुस्लिम नेताओं की नजर लंबे समय से है जिसे मस्जिद की आड़ में वाणिज्यिक उद्देश्य से वे इस्तेमाल करना चाहते हैं।

मुस्लिम राजनीति की पैंतरेबाजी : इस पार्क को मुसलमानों के हवाले करने की मांग गत एक दशक से जामा मस्जिद के इमाम और दिल्ली विधानसभा के पूर्व उपाध्यक्ष शोएब इकबाल उठाते रहे हैं। हाल में ही जब मंडी हाउस से कश्मीरी गेट तक मेट्रो रेल की भूमिगत पटरी बिछाने की परियोजना तैयार हुई तो इस परियोजना में एक भूमिगत स्टेशन सुभाष पार्क में प्रस्तावित था। तब शोएब इकबाल ने सरकार के खिलाफ आंदोलन छेड़ने की घोषणा की थी। शोएब इकबाल का दावा है कि हाल में ही दिल्ली सचिवालय में हुई बैठक में मुख्यमंत्री श्रीमती शीला दीक्षित ने उन्हें यह आश्वासन दिया है कि अब मेट्रो स्टेशन किसी अन्य जगह बनाया जाएगा और इस पार्क को अकबराबादी मस्जिद का पुनर्निर्माण करने के लिए मुस्लिमों को सौंप दिया जाएगा। इस क्षेत्र में खुदाई का काम शीघ्र ही शुरू हो जाएगा। इसके साथ ही मस्जिद का नवनिर्माण भी प्रारंभ कर दिया जाएगा।

जानकार सूत्रों के अनुसार इस क्षेत्र में जमीन की कीमत बहुत ऊंची है और इस (सुभाष पार्क) भूमि का मूल्य कई अरब रुपए आंका गया है। सवाल यह पैदा होता है कि दिल्ली सरकार यह समूचा पार्क ही मस्जिद के निर्माण के लिए देती है या उसका कुछ भाग इस कार्य के लिए दिया जाएगा? दिल्ली विधानसभा में भी मुस्लिम विधायक इस मस्जिद के नवनिर्माण की मांग कई बार उठा चुके हैं। दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमती शीला दीक्षित के अनुसार, सरकार अकबराबादी मस्जिद के निर्माण के लिए हरसंभव सहायता देने को तैयार है।

पहले भी किए कब्जे : इस संदर्भ में यह उल्लेख करना भी जरूरी है कि जंगपुरा में सरकारी भूमि पर कुछ वर्ष पूर्व 'नूर मस्जिद' नाम से एक ढांचे का निर्माण किया गया था जिसे गत वर्ष दिल्ली विकास प्राधिकरण ने ध्वस्त कर दिया था। इस घटना की आड़ लेकर दिल्ली की जामा मस्जिद के इमाम अहमद बुखारी, ओखला के विधायक और अन्य मुस्लिम नेताओं ने आंदोलन किया था और अदालती निर्देश की धज्जियां उड़ाते हुए हजारों लोगों के साथ 'नूर मस्जिद' के पुनर्निर्माण का प्रयास किया था। आंदोलनकारियों के आगे शीला दीक्षित ने घुटने टेक दिए थे। वह जामा मस्जिद जाकर इमाम से मिली थीं। उन्होंने यह घोषणा की थी कि हर हालत में 'नूर मस्जिद' को उसी पुरानी जगह पर बनवाया जाएगा। दिल्ली विकास प्राधिकरण ने इस मस्जिद के नवनिर्माण के लिए 500 गज भूमि देने की पेशकश दिल्ली सरकार के दबाव पर की थी। मगर उसने दिल्ली सरकार से इस भूमि की कीमत यानी 89 लाख रुपए भी मांगे थे। बाद में दिल्ली सरकार के दबाव पर इस धनराशि को घटाकर 72 लाख रु. कर दिया गया। गत सप्ताह दिल्ली सरकार ने इस धनराशि का भुगतान कर दिया और अब 'नूर मस्जिद' का निर्माण भी शीघ्र ही शुरू होने वाला है। खास बात यह है कि यह मस्जिद जिस क्षेत्र में बनाई जा रही है वहां मुस्लिम आबादी नहीं है। स्थानीय नागरिक कल्याण संघ द्वारा इस मस्जिद के निर्माण को रोकने के लिए उच्च न्यायालय का दरवाजा भी खटखटाया गया था, पर राजनीतिक दबाव के कारण नागरिक कल्याण संघ इस मस्जिद का निर्माण रोकने में विफल रहा।

दिल्ली के इतिहास में शायद यह पहला अवसर है जब सरकार किसी मस्जिद के निर्माण के लिए सरकारी खजाने से लाखों रुपए खर्च कर रही है। आज तक किसी भी अन्य मत-पंथ के पूजा स्थल के निर्माण के लिए दिल्ली की कांग्रेस सरकार ने कभी एक पैसा भी सरकारी खजाने से नहीं दिया है। एक सरकारी सर्वेक्षण के अनुसार, दिल्ली में लगभग 5000 मस्जिदें हैं जिनमें से आधी से अधिक वीरान पड़ी रहती हैं, इनमें नमाज पढ़ने के लिए कोई नहीं आता। कूचा पंडत, अजमेरी गेट स्थित खजूरवाली मस्जिद जो वक्फ बोर्ड के तहत है, का जीर्णोद्वार करने को कोई तैयार नहीं, लेकिन जमीन हड़पने और मुस्लिम प्रभाव बढ़ाने व वोट की राजनीति के लिए मस्जिदों के निर्माण का चलन तेजी से बढ़ा है।

कायदों की धज्जियां उड़ाईं : भारतीय पुरातत्व विभाग के नियमों के अनुसार जो उपासना स्थल पुरातत्व विभाग के नियंत्रण में होते हैं उनमें नमाज या उपासना करने पर पूर्ण प्रतिबंध है। मगर इसके बावजूद दिल्ली में ऐसी 36 प्राचीन मस्जिदें हैं जिनमें विश्वनाथ प्रताप सिंह के शासनकाल में मुस्लिम समुदाय ने जबरन नमाज पढ़ने का सिलसिला शुरू किया था। इन मस्जिदों में सफदरजंग मकबरे की मस्जिद, हौजखास की नीली मस्जिद, कुदसिया बाग की मस्जिद, फिरोजशाह कोटला की जामा मस्जिद और पुराने किले के सामने स्थित अकबर के शासनकाल में बनी खैरूल मिनाजुल मस्जिद उल्लेखनीय हैं। एक दशक पूर्व दिल्ली सरकार के भूमि प्रबंधन विभाग ने एक सर्वेक्षण करवाया था जिसके अनुसार राजधानी में 175 मस्जिदों, मकबरों और दरगाहों का निर्माण गैर कानूनी ढंग से किया गया है। इनमें से एक दर्जन से अधिक मस्जिदें लोगों ने पुरानी दिल्ली के पार्कों में बनाई हैं।

दिल्ली क्षेत्र के पुरातत्व विभाग के तत्कालीन अधीक्षक ए. मोहम्मद ने कहा था कि दिल्ली की जिन 36 ऐतिहासिक मस्जिदों में जबरन नमाज पढ़ी जा रही है उनके अवैध कब्जे को हटाने के बारे में विभाग ने पुलिस में दर्जनों बार मामले दर्ज कराए हैं। मगर राजनीतिक दबाव के कारण पुलिस ने इन अवैध कब्जों को हटाने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की।

देश की राजधानी में कुछ नेता अपनी नेतागिरी को चमकाने के लिए मस्जिदों के मुद्दे को बार-बार उछालते रहे हैं। कुछ महीने पूर्व दरियागंज में पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ के दादा अशद उल्लाह द्वारा बनाई गई एक खस्ताहाल मस्जिद के नवनिर्माण का कार्य कुछ स्थानीय मुस्लिमों ने शुरू किया था। इस कार्य का उद्घाटन चांदनी चौक से कांग्रेसी विधायक प्रहलाद सिंह साहनी द्वारा किया गया था। यह कार्य अंजुमन मोहजबिन वतन के महामंत्री जामिन अंजुम द्वारा कराया गया था। लेकिन लोकजनशक्ति पार्टी के विधायक शोएब इकबाल ने एक सिख द्वारा मस्जिद के नवनिर्माण की शुरुआत का विरोध किया। उनका तर्क था कि मस्जिद की बुनियाद किसी गैर मुस्लिम द्वारा रखी जानी इस्लाम के खिलाफ है। उन्होंने अतिवादी मुसलमानों की एक भीड़ को इकट्ठा करके पुराने नींव के पत्थर को काबा से लाए हुए आबे-जमजम से धोया। इस अवसर पर पूर्व नगर पार्षद हाफिज सलाहुद्दीन, नवाब जफर जंग आदि कई लोग मौजूद थे।

तोहफे में सरकारी जमीन : कुछ दशक पूर्व केंद्रीय मंत्री हुमायूं कबीर ने आई.टी.ओ. के पास एक हजार करोड़ रुपए मूल्य की बहुमूल्य जमीन कांग्रेसी मुसलमानों की संस्था जमीयते उलेमा के तत्कालीन अध्यक्ष मौलाना असद मदनी को सौंपी थी। 17 एकड़ की यह भूमि 15वीं शताब्दी की एक प्राचीन मस्जिद और दरगाह की थी जिसका निर्माण अकबर के मजहबी सरपरस्त मौलाना अब्दुल नबी ने करवाया था। कांग्रेसी मुस्लिम संगठन को वह प्राचीन मस्जिद और उसकी भूमि उपहारस्वरूप सौंपने का संसद में कई बार खूब विरोध हुआ, मगर सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी। अब इसी पुरानी मस्जिद का नवनिर्माण करके वहां पर जमीयते उलेमा का केंद्रीय दफ्तर चलाया जा रहा है।

अब शोएब इकबाल अकबराबादी मस्जिद के नवनिर्माण का शगूफा छोड़कर कहीं ऐसा ही कोई इरादा तो पूरा नहीं करना चाहते? शायद इसी योजना के तहत दिल्ली की मुख्यमंत्री श्रीमती शीला दीक्षित आने वाले चुनावों में मुस्लिम मत बटोरने के लालच में अरबों रुपए की सरकारी जमीन तोहफे में दिल्ली के मुसलमानों को सौंप रही हैं?

पाञ्चजन्य

Comments (Leave a Reply)

DigitalOcean Referral Badge