ऐसे में कहाँ अविरल रह पाएगी गंगा

Published: Sunday, May 27,2012, 23:12 IST
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8,295 मेगावाट -- सुनने में यह आंकड़ा काफी जादुई लगता है, लेकिन लगे हाथ जब यह जानकारी भी मिलती है कि इतने बिजली उत्पादन के लिए देव नदी गंगा पर 25 व 50 नहीं, अपितु पूरे 121 बांध बन रहे हैं या बनाए जाने हैं, तब हैरत होती है। प्रधानमंत्री की अध्यक्षता वाले राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण के वैज्ञानिक सदस्य और काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के पर्यावरणविद् प्रो. बीडी त्रिपाठी ने इस मामले को गंगा की अविरलता में बाधक मानते हुए प्रधानमंत्री व उत्तराखंड के मुख्यमंत्री को अपनी सर्वे रिपोर्ट भेजी है।

विद्युत उत्पादन में लगे विशेषज्ञों का कहना है कि वैसे तो पनबिजली परियोजनाओं के पक्ष में तमाम अकाट्य तर्क प्रस्तुत किये जा सकते हैं, लेकिन गंगा जैसी नदी के प्रवाह को रोककर पन बिजली प्रोजेक्ट को कहीं से भी उचित नहीं ठहराया जा सकता। यदि जरूरी ही है तो गंगा के प्रवाह को बिना बाधित किए गंगा की तमाम अन्य सहायक पहाड़ी नदियों से जरूरत भर का पानी निकाल कर दो-तीन थर्मल पॉवर प्रोजेक्ट के जरिए इससे कहीं अधिक बिजली का उत्पादन किया जा सकता है। प्रो. त्रिपाठी द्वारा 22 मई को प्रधानमंत्री व उत्तराखंड के मुख्यमंत्री को भेजी गई सर्वे रिपोर्ट ने पूरे गंगा बिजली प्रोजेक्ट को सवालों के कठघरे में ला खड़ा किया है।

गंगा को बचाने के लिए किये जा रहे प्रयासों और सामाजिक आंदोलनों की की वास्तविकता जानने के साथ ही शासन को भी सच से सामना कराने के लिए प्रो. त्रिपाठी ने मई के प्रथम सप्ताह में उत्तराखंड में गंगा, भागीरथी, अलकनंदा, मंदाकिनी, पिंडार, धौलीगंज, सोनगंगा, यमुना के साथ ही गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ, बद्रीनाथ, हिमालय की यात्रा की। इस 17 दिवसीय सर्वेक्षण के दौरान उन्होंने न केवल गंगा की मुख्य धाराओं का अवलोकन किया वरन प्रवाह के बाधित किये जाने के बाद जनजीवन पर इसके असर का भी अध्ययन किया।

प्रो.त्रिपाठी यह भी बताते हैं कि कि गंगा की मुख्य नदियों भागीरथी और अलकनंदा पर कुल 121 बांध बनने हैं। इनमें से भागीरथी पर 16 प्रोजेक्ट चल रहे हैं, 13 निर्माणाधीन जबकि 54 प्रस्तावित हैं। इसी क्रम में अलकनंदा पर छह प्रोजेक्ट चल रहे हैं, आठ स्वीकृत हैं और 24 प्रस्तावित हैं। 22 मई को प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को प्रेषित सर्वे रिपोर्ट में उन्होंने लिखा है कि इन जल विद्युत परियोजानाओं के चलते उत्तराखंड की मूल वनस्पतियों, जंतुओं का तकरीबन विनाश हो चुका है।

इसी बीच वाराणसी में अविरल गंगा के लिए गत 9 अप्रैल से अन्न-जल त्याग तपस्या रत साध्वी पूर्णाम्बा की बिगड़ती जा रही है। अस्पताल के अधीक्षक भी अब परोक्ष रूप से यह स्वीकारने लगे हैं कि यदि साध्वी को तत्काल ठोस आहार न दिया गया, तो स्थिति कभी भी बिगड सकती है। बुधवार को अविरल गंगा आंदोलन का नेतृत्व कर रहे स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को लिखे पत्र में साध्वी ने स्पष्ट लिखा है कि यदि उन्हें कुछ होता है, तो उसके उत्तरदायी केवल प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह होंगे। उन्होंने लिखा है कि "  वैसे भी मेरी चेतना समाप्त होती जा रही है। बस आपसे यही अनुरोध है कि यदि मैं अचेत भी हो जाऊं तो भी मुझे कुछ ठोस पदार्थ खिलाने न दिया जाए।"

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