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सत्यमेव जयते एवं जिंदगी लाइव को भी है सुधार की आवश्यकता
कल 'सत्यमेव जयते' देख रहा था।हरीश अय्यर को देख थोडा अटपटा लगा।
अभी अभी दो हफ्ते पहले उन्हें 'ज़िन्दगी लाइव' में देखा था- गे स्पेशल
में। वहां ये कह रहे थे की बचपन से ही उन्हें और लडको की तुलना में
थोडा अजीब फील होता था।१५ साल की उम्र में ही उन्हें इसका एहसास हो
गया।उसके बाद ही उन्होंने ये तय कर किया की वो जैसे हैं वैसी ही
जिंदगी जियेंगे और अपने घरवालों को भी बताएँगे। मुझे याद है ऋचा
अनिरुद्ध के एक सवाल के जवाब में उन्होंने बड़ी साफगोई से कहा था - I
love men and whats wrong in it।As of now i love a man and he loves
me too।We are in a happy relationship।I m very happy। उनकी माँ भी
वहां थी।और उन्होंने भी कई बातें बतायी। कहा की ये हमेशा हमसे कुछ
कहना चाहता था लेकिन कह नहीं पाता था और हम समझ नहीं पाते थे।
इन्ही माँ-बेटे को कल सत्यमेव जयते में देखा। अलग रूप,अलग अंदाज़, अलग
आवाज़। यहाँ हरीश ने कहा की उन्हें बचपन से ही ऐसे अनुभव से गुजरना
पड़ा जिससे लगभग १७ सालों तक इनके जीवन में सन्नाटा रहा। इन्हें पुरुष
वर्ग से डर लगने लगा, नफरत हो गयी की हर कोई उनके साथ ऐसा ही करेगा।
इनकी माँ यहाँ भी इनके साथ थी।
जिन्होंने भी 'ज़िन्दगी लाइव' और कल का 'सत्यमेव जयते' दोनों देखा
होगा उन्हें ये ये दोनों बातें परस्पर-विरोधी लगी होंगी,अटपटी लगी
होंगी, थोड़ी अटपटी है भी। अटपटी इसलिए भी है की खुद हरीश दोनों शो में
दो बिलकुल अलग अलग व्यक्ति के रूप में उभर के सामने आये। 'ज़िन्दगी
लाइव' में इनके बचपन से सम्बंधित भी कई बातें पूछी गयीं लेकिन इन्होने
कभी ऐसे किसी घटना का जिक्र नहीं किया, नाही इनकी माँ ने किया जबकि
दोनों बातें एक दुसरे से जुडी थी। विषयनिष्ठ नजरिये से देखा जाये तो
ये दो मुद्दे (समलैंगिकता और बचपन में किसी व्यस्क द्वारा
गुदा-यौन-शोषण जैसा हरीश ने बताया) आपस में बेहद जुड़े मुद्दे है। अपने
समय के सबसे मशहूर मनो-विज्ञानी सिगमंड फ्रायड ने अपने प्रसिद्ध
रिसर्च पेपर-Three essays on the theory of sexuality (Published in
1905) में साफ़ बताया है की समलैंगिकता ऐसे किसी शोषण का फल हो सकती
है।
सेक्स-सायकोलोजी की बाद की रिसर्च ने भी इस सिद्धांत की पुष्टि की है
जैसे होमोसेक्सुँलिटी के सबसे प्रमाणिक-Lewes के रिसर्च ने (Published
in 1988)। दुःख इस बात का है की दोनों ही शोज़ ने इतने महतवपूर्ण कोण
को अपने-अपने कार्यक्रम में कोई जगह नहीं दी। अगर 'ज़िन्दगी लाइव'
जैसे प्रतिष्ठित टॉक शो में समलैंगिकता जैसा महत्वपूर्ण मुद्दा उठता
है और इतना महत्व का कोण छोड़ दिया जाता है तो दुःख होता है। उसी
तरह सत्यमेव जयते जो खुद को एक परफेक्ट शो के रूप में प्रचारित करता
है और लोग भी इसे ऐसा ही मानते रहे है, से भी ये कोण छुट गया तो अजीब
लगा। अजीब इसलिए भी लगा की खुद हरीश व्यक्तिगत स्तर पर भी इन दो शो
में अलग-अलग व्यक्ति के रूप में नज़र आयें। कम से कम हरीश को व्यक्तिगत
तौर पर शो के करता-धर्ताओं के इतर जा कर दोनों चीजों को साथ जोड़ कर
रखना चाहिए था। उससे न केवल लोग विषय को गहन रूप से समझ पाते बल्कि
समलैंगिक लोगों के प्रति समाज की संवेदना भी बढती,वही दूसरी ओर
बाल-यौन-शोषण के दीर्घ-कालिक प्रभाव भी लोग समझ पाते। बड़ा अफ़सोस हुआ
की इतने बड़े मौके को गवां दिया गया।
इसका एक कारण ये हो सकता है की ऐसे शोज़ में जाने के लिए प्रतिभागियों
को कुछ न कुछ पैसे जरुर मिलते है।कई बार ये रकम अच्छी खासी होती है।
तो हो सकता है इस कारण बिलकुल पेशेवर तरीके से हरीश ने दोनों शोज़ को
ही अँधेरे में रखते हुए प्रतिभागी बन गए हो और अपने जिंदगी के दो
अलग-अलग तथ्यों को अलग-अलग बेच आयें हो। अगर ऐसा है तो ये गंभीर है।
दोनों ही शो, पूरे देश में चेतना के प्रवाह बन चुके है।जिंदगी लाइव ने
कुछ सालों में तो सत्यमव जयते ने कुछ दिनों में हो लोगो के दिलों में
अपने लिए जगह बना ली है। अगर ऐसे शो, रिअलिटी शो जैसे तिकड़मो के
शिकार बन जायेंगे तो इससे लोगो का भरोसा इस कदर टूट सकता है की फिर
मीडिया का कोई जन-जाग्रति शो कभी लोगो के दिलो में पैठ नहीं बना
पायेगा।
ऐसा भी हो सकता है की दोनों ही शो के लोगो को हरीश की जिंदगी की ये दो
ही बातें मालूम हो लेकिन 'विषय-वस्तु की जटिलता के बढ़ जाने' जैसी
पेशेवर मजबूरियों के कारण बड़ी चालाकी से, बड़े पेशेवर अंदाज़ से अपने
अपने मुफीद चीजें चुन ली गयीं। और अगर ऐसा हुआ है तो ये और भी गंभीर
बात है। क्यूंकि सामाजिक विषयों के प्रति लोगो की समझ को और गहन,
विस्तृत और विवेचनात्मक बनाने के उद्देश्य से ही बनाये गए इन दोनों
शोज़ ने महज 'प्रस्तुतीकरण की सुविधा' के लिए दो अलग अलग ज्वलंत
विषयों के संभव अंतर-संबंधो को देख पाने के एक बड़े अवसर से दर्शको को
वंचित कर दिया। वरना बिना विवरणों में जाये उल्लेख मात्र के लिए ही
'ज़िन्दगी लाइव' में उनके बाल-शोषण की बात दो लाइनों में डाल दी जाती
और उसी तरह 'सत्यमेव जयते' में उनके समलैंगिक होने की बात महज़ एक तथ्य
के रूप में सामने रख दी गयी होती तब भी यह सुधि दर्शको का ध्यान इस ओर
दिलाने के लिए पर्याप्त होती। कहीं-न-कहीं लोगों के मानस को ये तथ्य
अपील करते और देर-सबेर लोगो का ध्यान इन अंतर-संबंधो की तरफ जाता।
हालाँकि सबसे अच्छा तो यही होता की हरीश के मामले में विशेषज्ञों के
राय के जरिये इस बात को बाकायदा दर्शको के सामने रखा जाता। यदि अलग
अलग विषय के 'फोकस' को बरक़रार रखने के तर्क को मान कर ऐसा नहीं भी
किया गया तो उपरलिखित तरीके से उल्लेख करना तो आवश्यक था ही। ऐसा भी न
करके दोनों ही शोज़ ने अपने अपने विषय और दर्शको दोनों के साथ अन्याय
किया है। और जब इस तरह मुख्य-धारा की मीडिया 'पेशेवर मजबूरियों,पेशेवर
दबावों' का हवाला देकर विषयो को पुरे तरीके से नहीं समेट पाती,अलग अलग
विषयो को जोड़ कर लोगो के सामने बड़ी तस्वीर नहीं पेश कर पाती, तब-तब
वैकल्पिक मीडिया इन कथित 'पेशेवर मजबूरियों' और पेशेवर दबावों' के परे
जाकर लोगो को ये 'बड़ी तस्वीर' दिखाती है। यही इस लेख का उद्देश्य भी
है।
लेखक अभिनव शंकर, प्रौद्योगिकी में स्नातक (बी.टेक)
हैं एवं बहुराष्ट्रीय स्विस कम्पनी में कार्यरत हैं, लेखक को लिखें :
[email protected]
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