राष्ट्रीय मीडिया – कितना राष्ट्रीय ?

Published: Monday, Mar 12,2012, 21:06 IST
Source:
0
Share
राष्ट्रीय मीडिया, कितना राष्ट्रीय, लोकतान्त्रिक, indian media, biased media, indian freedom,

यहाँ बड़ी पीड़ा व कष्ट से मुझे यह कहना पड़ रहा है की मेरे मन में “इस” प्रकार का विषय आया, परन्तु विगत कुछ समय से मैं लोकतंत्र के इस चौथे खम्भे को पूरे भवन की नींव खोदते हुए देख रहा हूँ और आज इनका दुराचरण निश्चय ही पराकाष्ठाओं को पार करने को उदधृत है जो मुझे बाध्य होना पड़ा इस विषय पर अभिव्यक्ति के लिए। कुछ समय पहले तक जो अखबार या टीवी हमारे लिए सूचना व चेतना का विश्वसनीय एवं सशक्त माध्यम थे आज उनके लिए “दलाल”,“बिकाऊ” व अविश्वसनीय होने का लांछन लगाया जा रहा है और यदि इसी प्रकार चलता रहा तो यह निश्चय ही हमारी लोकतान्त्रिक व्यवस्था पर भयंकर कुठाराघात होगा।

बहुत दूर न जाते हुए मैं पिछले कुछ समय के आचरण के विषय में ही टिप्पणी करूँगा। बाज़ार जाने पर हम देखते थे की कमर तोड़ महँगाई है, जनता त्रस्त हो कर त्राहि-त्राहि कर रही है, बटुआ न जाने कब खाली हो जाता था पता ही नहीं चलता था। घर में जब टीवी चलाते तो देखते की किसी सिने तारिका के दाँतों पर परिचर्चा चल रही है। नहीं तो किसी अंतर्राष्ट्रीय आतंकवादी की जीवनी पर घंटों आँसू बहाए जाते थे। मित्रों से ज्ञात होता था की फलां-फलां जगह बाढ़ आई हुई है और त्राहि-त्राहि मची हुई है, और हमारे टीवी पर सबसे “महत्त्वपूर्ण” विषय होता था की अमुक खिलाड़ी इस खेल में अपना शतक पूरा करेंगे या नहीं !! क्या कहेंगे इसे आप – वैचारिक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रयोग या जनमानस तो अपने निहित स्वार्थों के लिए बरगलाना? पहले कार्यक्रमों के बाद या बीच में विज्ञापन आते थे, परन्तु वर्तमान में तो संपूर्ण कार्यक्रम ही “विज्ञापन” बन गए हैं।

कभी कभार तो हमारे पड़ोसी राष्ट्रों, विशेषकर पाकिस्तान, का इतना गहन प्रसारण किया जाता है की शंका होने लगती है कि यह कही गलत जगह तो नहीं लग गया? हमारे यहाँ सुदूर पूर्व में “बंद” तथा उस से उपजने वाली विसंगतियों को प्रायः बताया ही नहीं जाता और ऐसा क्यों न हो जब उन्हें पास के शहरों में होने वाले तमाशे बिना श्रम के प्राप्त हो रहें हैं! और कुछ नहीं तो विदेश में किसी की “ताजपोशी” या “विवाह” का दिवस भर प्रसारण होता हैं। यह वास्तव में ही चिंता का विषय है, वह भी ऐसे समय में जब हम अमूमन अपनी बहुत सी धारणाएँ टीवी और अखबारों से ही बनाते हैं क्योंकि व्यस्त जीवन शैली व समयाभाव हमें इसकी आज्ञा नहीं देता की हम हर विषय की तह तक जाएँ एवं उसे गहराई से समझें। तब स्वाभाविक है की यह पूछा जाए कि  राष्ट्रीय मीडिया – कितना राष्ट्रीय है ??

महापुरुषों से सम्बंधित कार्यक्रमों व आयोजनों को “बाजार मूल्य” से तौला जाता है, और ऐसे अवसरों पर अमूमन सभी चैनल कठपुतलियों से हो जाते हैं और “किन्ही” हाथों में नाचते हैं। कोई आश्चर्य नहीं होता अब तो जब हम देखते हैं की भगत सिंह, चंद्र शेखर आज़ाद, राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाक उल्ला खाँ इत्यादि शहीदों का “गलती से” भी उल्लेख नहीं आता। हाँ, विदेशों में हो रहें ऐसे आयोजनों का “सीधा प्रसारण” अवश्य किया जाता है जिनमें वह अपने शहीदों का सम्मान करते है। क्या यह हमारे साथ किया जा रहा छल नहीं है? हमें क्या परोसा जा रहा है? और कितना व्याह्वारिक है यह सब?

इसी बीच कुछ ऐसे भी वृतांत सामने आये जिसमें कुछ वरिष्ठ पत्रकारों ने, जिनका आदर हम सभी करते थे, किन्ही कारणों से जिनसे केवल वे स्वयं ही परिचित होंगे, अपनी प्रतिष्ठा व विश्वसनीयता को दाँव पर रख दिया। सोशल मीडिया में इसकी बड़ी चर्चा हुई जिसकी गूँज मुख्यधारा मीडिया में भी पहुँची। पर उसके बाद जो हुआ वो निश्चय ही आश्चर्यचकित कर देने वाला था, जिनके नाम इस प्रकरण में आये उन पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा! शायद वे “अपने आप” ही “अपने” को ऐसी अट्टालिकाओं में पहुँचा चुके हैं जहाँ वो किसी भी निरीक्षण से परे हैं ( आत्मनिरीक्षण का तो प्रश्न ही नहीं उठता ) !!

इन सब से उकता कर हमने शरण ली अपने “बचपन” के साथी “दूरदर्शन” की, जहाँ आज भी सामंजस्य उसी प्रकार से कायम है जैसा हमने पहले देखा था। यहाँ “सभी” बातें महत्वपूर्ण होती है। यहाँ लोगों से बात करते समय संवाददाता “घड़ियाली आँसू” नहीं बहाते, न ही विषय वस्तु को तोड़-मरोड़ कर प्रस्तुत करते हैं और न ही चीखते हुए हमारे कान के पर्दों पर “भयंकर” आघात करते हैं। और सबसे बड़ा लाभ यह है की ये किसी प्रकार का विष आपके जीवन या विचारों में नहीं घोलते। इस लेख के माध्यम से मेरा प्रयास है की यह जानूँ की क्या इस अनुभूति में मैं अकेला हूँ, या आप में से भी कोई ऐसे विचार रखता है। आपकी टिप्पणियां सादर आमंत्रित हैं। इति !

अन्य लेख # आजाद क्या आज भी प्रासंगिक हैं ?

शैलेश पाण्डेय | लेखक से ट्विट्टर पर जुडें twitter.com/shaileshkpandey

Comments (Leave a Reply)

DigitalOcean Referral Badge