मुंबई: महाराष्ट्र में राज्य सचिवालय में गुरूवार को लगी भीषण आग में मंत्रालय के छत पर लहरा रहे राष्ट्रीय ध्वज को बचाने वा..
क्या हिन्दू (भगवा) आतंकवाद एक राजनीतिक षड्यंत्र है ?
क्या ‘भगवा आतंक’ हिंदुओं एवं मुस्लिमों को राजनीतिक रूप से समान
करने का एक उन्मादी प्रयास है? जिसके लिये नैतिकता को ताक पर रख
दिया गया है? इसके लिये बताये जाने वाले परिप्रेक्ष्य के मूल चित्र के
साथ ही कुछ गडबड है ; मिलान के हर संभव प्रयास के उपरांत भी पहेली के
टुकड़े एक दूसरे के साथ जुड़ते दिखाई नहीं देते, और ना ही यह इस
ताले की चाबी है |
देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी, एन आई ए, अपनी व्यापक पहुंच,
अत्याधुनिक संसाधनों से युक्तता, और यह तथ्य कि "कार्यवाही की परिधि
तय करना उसके दायरे में निहित है" के होने पर भी, उसका अंधेरे में हाथ
पैर चलाना चालू है वे उग्रतापुर्वक प्रयास कर रहे है उन ठोस तथ्यों को
खोजने लिए जिनसे हिंसा के कृत्यों को ‘हिंदू आतंक' चिन्हित किया
जा सके और फिर उस के लिए हिंदू को ही उत्तरदायी घोषित कर दण्डित किया
जा सके |
ऐसे परिदृश्य जिनका सार समझ पाना कठिन है एक गंभीर जाँच का आह्वान
करते है और बाध्य करते है की इस अवस्था के मूल का एक तार्किक
विकल्प खोजा जाये | कितना कठिन होगा इस पर विश्वास करना की हमारी जांच
एजेंसियां सामान्यतः अक्षम हैं और ऐसी गंभीर समस्याओं के समाधान हेतु
एजेंसी के पास कुशाग्र बुद्धि वाले दल की कमी है जो सूक्ष्मता से जांच
कर सके ?
आतंक के अन्य उदाहारणों को लेते हुए कहा जाए तो विदेशों में रची जटिल
साजिशों के लिए तथ्यों को जुटाने एवं न्यायालय में अपराधियों पर
अभियोग चलने में हमारी सुरक्षा एजेंसियां सक्षम रही हैं (मुंबई
हमला इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है)| परन्तु इस असफलता के लिए क्या
तर्कसंगत स्पष्टीकरण दिया जाए ?
" क्या यह संभव है कि कोई निश्चित तथ्य आगे नहीं आ पा रहा
है? या फिर ऐसे किसी तथ्य का अस्तित्व है ही नहीं ?", एक बड़ा
प्रश्न जिसमें मतभेद है किंतु इस शंका से बचा नही जा सकता विशेषकर तब
जब विवाद राजनीति से प्रभावित है |
हिन्दू आतंकवाद : हिन्दू आतंक की परिकल्पना के
केन्द्र में तीन बम विस्फोट है (२९ सितंबर, २००८) मालेगांव, (१८ मई,
२००७) मक्का मस्जिद, हैदराबाद एवं अजमेर शरीफ (11 अक्टूबर, 2007) |
समझौता एक्सप्रेस पर हुए विस्फोट की इसी कोण से जांच की जा रही है |
चलिए इन आरोपों की वैधता की जांचने हेतु कुछ विशिष्ट विवरणों को
देखते है :
समझौता विस्फोट मामला :
१. २००८ में, नागौरी गुट के मुखिया एवं भारत में प्रतिबंधित
'स्टुडेंट इस्लामिक मूवमेंट' के 'सफदर नागौरी' पर आरोप है की
उन्होंने नार्को परिक्षण के समय समझौता विस्फोट में सिमी की भागीदारी
को माना है |
२. उसी वर्ष नवंबर में, महाराष्ट्र एटीएस जो मालेगांव विस्फोट की जांच
कर रही थी, समझौता मामले में 'लेफ्टिनेंट कर्नल श्रीकांत पुरोहित' की
भूमिका की जाँच करती है एवं बिना तथ्यों के खाली हाथ आती है | पुरोहित
के विरूद्ध आरोप-पत्र समझौता विस्फोट मामले में किसी भी प्रकार के
विश्वसनीय-तथ्य को सिद्ध करने में विफल रहा है |
३. २०१० में स्वामी असीमानंद (एक हिंदू धार्मिक नेता) दण्डाधिकारी
(मजिस्ट्रेट) के सामने हिंदू आतंकी संगठनों की की भागीदारी स्वीकारते
है | परन्तु बाद में वह अपने वक्तव्य से यह दावा करते हुए पलट जाते है
की वह स्वीकारिता (बयान) उन पर दबाव बनवा कर प्राप्त की गई थी |
मालेगांव मामला : पुरोहित को फसाने के प्रयास
अनिश्चित्ता की स्थिति में है, क्यूंकि पुरोहित पर लापता 'आर.डी.एक्स'
मामले में चल रही सैन्य जाँच कोई भी तथ्य प्रकाश में लाने में विफल
रही है जिसे पुरोहित विस्फोट की योजना बनाने हेतु ले कर चंपत हो गया
था |
इसके साथ ही, अमेरिकी विदेश विभाग द्वारा अगस्त २०१० में विमोचित एक
रिपोर्ट में लश्कर-ए-तैयबा एवं हरकत-उल-जिहाद इस्लामी को समझौता
एक्सप्रेस एवं मक्का मस्जिद बम विस्फोट हेतु क्रमशः उत्तरदायी माना
|
" आरिफ कासमानी लश्कर-ए-तैयबा के अन्य संगठनों के साथ व्यवहारों का
मुख्य समन्वयक (कॉर्डिनेटर) है... कासमानी ने लश्कर-ए-तैयबा के साथ
आतंकी आक्रमणों को सुगम करने हेतु कार्य किया जिसमे जुलाई २००६ मुंबई
रेल विस्फोट एवं फरवरी २००७ समझौता एक्सप्रेस विस्फोट पानीपत शामिल
हैं | "
अमेरिकी विदेश विभाग द्वारा जारी विज्ञप्ति सं.
५२०१० : जारी विज्ञप्ति के अनुसार 'हूजी भारत' को आतंकी
आक्रमणों के लिए उत्तरदायी बताया जिसमे मई २००७ हैदराबाद मस्जिद हमला,
इस हमले में १६ मारे गए एवं ४० घायल हुए थे, मार्च २००७ में वाराणसी
आक्रमण जिसमें २५ मारे गए एवं १०० घायल हुए | "
राज्य अमेरिका विभाग विज्ञप्ति ६ अगस्त, २०१०
: विख्यात सुरक्षा विशेषज्ञ बी रमन ने इन दोनों आक्रमणों के लिए
व्यापक रूप से अलग-अलग जांच की अनुपयुक्तता दिखाई |
" इस प्रकार, अमेरिकी जांचकर्ताओं के अनुसार 'लश्कर' एवं 'अल-कायदा',
समझौता एक्सप्रेस एवं 'हूजी' मक्का मस्जिद विस्फोट के लिए उत्तरदायी
थे | यदि अमेरिकी जांचकर्ता, जिनके पास पाकिस्तान में बेहतर स्रोत है,
सही है, तब हमारे जांचकर्ता कैसे दावा कर सकते हैं कि गिरफ्तार किये
गए हिंदू इन घटनाओं के लिए उत्तरदायी थे? "
अतः यह गंभीर हैं कि कोई ठोस तथ्य नहीं है | दो अलग-अलग स्रोतों से
प्राप्त तथ्यों का एक दूसरे से टकराव अपने पीछे एक बड़ा प्रश्न चिन्ह
छोड़ता है, इसके अतिरिक्त जाँच दो कदम पीछे आ जाती है एवं अभी तक खोजे
गये सभी अस्पष्ट तथ्यों को रेखांकित करती है |
जबसे गृह मंत्री चिदंबरम ने ’भगवा आतंक’ शब्द गढा, तब से इस तथ्य को
सत्य साबित करने एवं प्रत्येक घटना एवं विचित्र षड्यंत्रों को ’भगवा
आतंक’ का नाम देने में जुटी है, गढे गये सिद्धांतों की पुनरावृत्ति कर
के एक सतत अभियान चलाया जा रहा है : क्यों कहा जाता है कि मुंबई २६/११
आक्रमण समय में एटीएस प्रमुख हेमंत करकरे की मृत्यु में हिंदू आतंक
सम्मिलित था |
इस प्रकार के विचार विचित्र एवं काल्पनिक ही है जो जनता मे संदेह को
जन्म देता है इस न्यायिक जाँच का ईंधन एक गुप्त राजनीतिक मकसद है |
क्या ‘हिंदू आतंक’ एक सुविधाजनक उपयुक्त हौआ है जिसे भारत की
विभाजनकारी साम्प्रदायिक राजनीतिक बहस में शीघ्रता (फुर्ती) से परोस
दिया गया है ?
दूसरे शब्दों में कहें तो यह हिन्दुओं एवं मुस्लिमों को राजनैतिक रूप
से संतुलित करने का एक विकृत प्रयास है जिसमें नैतिकता को ताक पर रख
दिया गया है | यदि हिन्दू आतंकवाद की बात केवल राजनैतिक चुहलबाजी होती
तो भी चिंता की बात नहीं थी परन्तु यह एक खतरनाक खेल बन चुका है जिसका
भारत के आतंकवाद के विरुद्ध संघर्ष पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है | और
तो और ये हमें पाकिस्तान पर दबाव डालने के हमारे प्रयासों को भी
निष्फल कर रहा है |
यह कोई नहीं कह रहा कि हिन्दू संगठनों द्वारा की गयी हिंसा को क्षमा
कर दिया जाये | उसकी जांच चलते रहनी चाहिए | परन्तु अपनी सारी ऊर्जा
उसी और सभी संसाधन उसी दिशा में लगा देना और पाकिस्तान प्रायोजित
आतंकवाद को भूल जाना नरभक्षी भेड़िये को छोड़ कर एक चूहा पकड़ने के
लिए शिकारियों का दल भेजने जैसी भूल होगी |
साभार : विवेक गुमस्ते | तथ्य एवं श्रोत : रीडिफ़.कॉम ...
Share Your View via Facebook
top trend
-
तिरंगे को आग से बचाने वाले कर्मचारियों को भाजपा ने किया सम्मानित
-
अपनी ही गोली से शहीद हुआ दिलेर : शहीद चन्द्रशेखर आजाद
महान देशभक्त चंद्रशेखर आजाद 15 वर्ष की अल्पायु में ही अपनी शिक्षा अधूरी छोड़कर गांधी जी के असहयोग आंदोलन में कूद स्वतंत्र..
-
दोपहर की शादी में थ्री पीस सूट पहनना स्वीकार, भले ही चर्म रोग क्योँ न हो : भारत का सांस्कृतिक पतन
-
दिग्विजय सिंह पर साधा निशाना, अभद्र व्यव्हार एवं गाली गलोंच से मुझे ज्यादा समर्थन मिलता है
योग गुरू रामदेव ने कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह का नाम लिये बिना कहा कि कुछ खास लोग मुझे गालियां दे रहे हैं लेकिन वह नही..
-
विधानसभा चुनाव आते ही मुस्लिम समुदाय को आरक्षण, गलत दिशा में राजनीति
उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड आदि राज्यों के विधानसभा चुनाव निकट आते ही मुस्लिम समुदाय को जिस तरह आरक्षण देने की पहल शुरू..
what next
-
-
सुनहरे भारत का निर्माण करेंगे आने वाले लोक सभा चुनाव
-
वोट बैंक की राजनीति का जेहादी अवतार...
-
आध्यात्म से राजनीती तक... लेकिन भा.ज.पा ही क्यूँ?
-
अयोध्या की 84 कोसी परिक्रमा ...
-
सिद्धांत, शिष्टाचार और अवसरवादी-राजनीति
-
नक्सली हिंसा का प्रतिकार विकास से हो...
-
न्याय पाने की भाषायी आज़ादी
-
पाकिस्तानी हिन्दुओं पर मानवाधिकार मौन...
-
वैकल्पिक राजनिति की दिशा क्या हो?
-
जस्टिस आफताब आलम, तीस्ता जावेद सीतलवाड, 'सेमुअल' राजशेखर रेड्डी और NGOs के आपसी आर्थिक हित-सम्बन्ध
-
-
-
उफ़ ये बुद्धिजीवी !
-
कोई आ रहा है, वो दशकों से गोबर के ऊपर बिछाये कालीन को उठा रहा है...
-
मुज़फ्फरनगर और 'धर्मनिरपेक्षता' का ताज...
-
भारत निर्माण या भारत निर्वाण?
-
२५ मई का स्याह दिन... खून, बर्बरता और मौत का जश्न...
-
वन्देमातरम का तिरस्कार... यह हमारे स्वाभिमान पर करारा तमाचा है
-
चिट-फण्ड घोटाले पर मीडिया का पक्षपातपूर्ण रवैया
-
समय है कि भारत मिमियाने की नेहरूवादी नीति छोड चाणक्य का अनुसरण करे : चीनी घुसपैठ
-
विदेश नीति को वफादारी का औज़ार न बनाइये...
-
सेकुलरिस्म किसका? नरेन्द्र मोदी का या मनमोहन-मुलायम का?
-
Comments (Leave a Reply)