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कुमार विश्वास ने परिहास बता कर बाबा रामदेव पर की टिपण्णी
उत्तर प्रदेश के पिलखुवा जिले से सम्बन्ध रखने वाले कुमार विश्वास
को आज कौन नहीं जानता। अपनी कविताओं के माध्यम से उन्होंने युवाओं में
विशेष स्थान बनाया है। आशिकों एवं मोहब्बत में लगे एक विशेष वर्ग के
लोगों ने उन्हें अपना मसीहा और दिल की आवाज सुन लेने वाला कवि मान
लिया। उनके शब्दों में कहा जाये तो यू-ट्यूब पर किसी भी भाषा के
साहित्य को सबसे अधिक सुने जाने वाले कवि (कुमार के अनुसार) कुमार ही
हैं।
यह भी नाकारा नहीं जा सकता की उन्होंने कालिजों में जाकर युवा
वर्ग को जगाया एवं चेताया सामाजिक कार्यों में भी लगातार वह प्रयासरत:
हैं। परन्तु पिछले कुछ दिनों में मिली सफलता ने उन्हें कुछ नकारात्मक
विचार भी दिए हैं। पहले स्वयं उन्होंने कहा की पाकिस्तान के
विषय मैं इतना अधिक बोलना गलत था माफ़ी के रूप में उन्होंने कहा कि अगर
में वहां के लोगों से मिला तो वह मेरा सम्मान न करेंगे।
फिर उन्होंने मेन-स्ट्रीम मीडिया मैं टीम-अन्ना को बदल दिए जाने की
गुहार लगायी। इस पर आज तक कोई स्पष्टीकरण नहीं मिला बात अंदर ही दब कर
रही। किरण बेदी जी ने भी ट्विट्टर के माध्यम से कहा की कुमार को
मिडिया पर ऐसा नहीं कहना चाहिए था।
अब उन्होंने एक नए करतब को ही अंजाम दे डाला, परिहास के नाम
पर बाबा रामदेव पर ही टिपण्णी कर डाली की " हमने तो उन्हें बड़ा समझाया
की आप ये अनशन-वंशन छोडो ये तो फकीरों का काम है, अन्ना जी ठहरे फ़कीर
और आप अपना योग कीजिये-करवाइए वरना आप तो दुकान वाले बाबा हैं आपकी
दुकान ये नेता बंद करवा देंगे " चलिए इसे व्यंग मैं लिया जा सकता है
क्यूंकि शैली ही ऐसी है परन्तु उनका जोश कम न हुआ और उन्होंने यह भी
कहा बाबा ने एक नयी चीज़ सिखा दी की " गए तो अकबर के कपड़ों में और लौटे
जोधा के कपड़ों मैं "
इस विडियो के इंटनेट पर आने के पश्चात समर्थकों ने अपनी प्रतिक्रिया
कुमार के फेसबुक के माध्यम से कुमार के समक्ष रखी, तब कुमार ने फेसबुक
पृष्ठ पर माफ़ी के रूप में लिखा की बाबा के समर्थकों को 'परिहास' एवं
'उपहास' मैं अंतर समझाना चाहिए। आप उनके पृष्ठ (फेसबुक पोस्ट) पर जाकर स्वयं देख
सकते हैं। अब कुमार साहब आप स्वयं बताएं की जो जनता घोटालों का कारण
नहीं जानती, जो स्कुल से निकाल दी जाती है की उनके माता-पिता
अंग्रेजी नहीं जानते आप उनसे हिंदी साहित्य की बारीकियों को समझने के
लिए रहे हैं, हो सकता है कल आप अन्ना समर्थकों को भी नाराज़ कर बैठें।
आपको अपने शब्दों को संभालना होगा।
एक सुझाव है कुमार विश्वास जी, कि बड़े बड़े लोग कम समय में आकाश के
सामान ऊँचे उठ गए लेकिन उस सम्मान, उस ऊंचाई को संभाल कर रखना एक बहुत
जिम्मेदारी भरा काम रहा। जय हिंद का नारा लगा लेने से प्रत्येक
व्यक्ति तब तक देशभक्त नहीं हो जाता तब तक उसकी देशभक्ति को उस देश के
नागरिक नमन न करें। इसी आशा के साथ आप हमारे दिल में बने रहेंगे और
अपने शब्दों में मीठापन लायेंगे क्यूंकि देश एक नाजुक दौर से गुजर रहा
है।
मनु शर्मा (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं) यह उनके व्यक्तिगत विचार
है।
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