भोपाल की उस काली रात का सच, चश्मदीदों के ब्यान

Published: Saturday, Dec 03,2011, 15:27 IST
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भोपाल गैस त्रासदी, डॉ. दीपक गाँधी, मेजर कंचाराम खनूजा, वी.के शर्मा उप स्टेशन मास्टर, Major Kancharam Khanjua, Dr, Deepak Gandhi, Bhopal Gas tragedy, Anderson, IBTL

२-३ दिसंबर १९८४ की रात ४२ टन मिथाइल आइसोसाईंनेट रिसकर उड़ चली थी हवा का बहाव नजदीकी झोपड़पट्टियों की ओर था उस जहरीले बादलों ने हजारों लोगों की लीला समाप्त कर दी थी। उस रात गैस की प्रतिक्रिया से उत्पन्न गर्मी के प्रभाव से टेंक नं. ६१० अपने कंक्रीट के आधार से ही फट गया लेकिन वह बिखरा नहीं आज भी वहाँ उगी घास पतवार के बीच पड़ा है फैक्ट्री के मलबे में से निरीक्षक जेवियर मोरो को टंक नं. ६१० का तापमापक मिला यह उपकरण त्रासदी की रात को कार्य नहीं कर रहा था इस कारण किसी को यह भान भी ना हो पाया कि उस रात गैस विस्फोट होने वाला है।

कोई भी यह स्पष्ट रूप से कभी भी नहीं जान पायेगा कि उस रात और उसके बाद के दिनों में कितने लोग काल के गाल में समा गए ३ दिसंबर की सुबह पौ फटने तक हमीदिया चिकित्सालय मृत शरीरों का बड़ा घर बन चुका था संप्रदायों के अनुरूप मुसलमानों के लिए सामूहिक कब्रें खोदी गयीं व हिंदुओं के लिए सामूहिक चिताओं के लिए इलाके भर से लकडियों का इंतज़ाम किया गया। अधिकाश मृतकों की मृत्यु हृदयघात एवं दम घुटने के कारण हुई थी।

डॉ. सत्पथी (फोरेंसिक विशेषज्ञ) ने पीडितों की बड़े संख्या में फोटो प्रदर्शित किये उनमें से चार सौ लोगों पर किसी ने कोई दावा नहीं किया पुरे के पुरे परिवार समाप्त हो गए बहुत से मृतकों का कोई ठिकाना ही ना था। कार्बाइड पीडितों के लिए त्रासदी के समय कम्पनी अध्यक्ष वारेन एंडरसन की मृत्युदंड की मांग करना एक मामूली सांत्वना भर है असल दोषी तो हैं वे राजनेता जिन्होंने असल दोषियों को देश से निकलने का रास्ता दिया और आज भी भोपाल गैस कांड के पीड़ित मूल अपराधी वारेन एंडरसन को दण्डित करने की मांग को लेकर प्रदर्शन करते हैं लेकिन भ्रष्ट सरकार से उन्हें सांत्वना के अतिरिक्त कुछ नहीं मिलता।

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इतिहास के इस सबसे भयानक औद्योगिक विनाश के नायक व पीड़ित ...

सजदा बानो – उस त्रासदी से दो वर्ष पूर्व उसका पति संयंत्र कि गैस का पहला शिकार था। दो दिसंबर १९८४ को सजदा अपने दोनों बच्चों के साथ रेल से भोपाल जा रही थी। उस प्राणघातक गैस ने जो देखते ही देखते स्टेशन में घुस आई थी उसके बड़े बेटे को मार डाला...

राजकुमार केसवानी – एक पत्रकार जिसने इस घटना के दो वर्ष पूर्व ही चार लेखों में इन महाविपत्ति की भविष्यवाणी कर दी थी लेकिन इनकी आवाज़ को अनसुना कर दिया गया।

वी.के शर्मा उप स्टेशन मास्टर – इन्होने सैकड़ों लोगों की जान बचाई यात्रियों से भरी एक रेल के ड्राइवर को रेल को तेजी से भोपाल से बाहर ले जाने का आदेश दिया जो अभी अभी उस जानलेवा बादल की चपेट में आई थी प्राणघातक भभक द्वारा मारे जाने के विश्वास में श्री वी. के. शर्मा को मुर्दाघर ले जाया गया जहाँ उन्हें चिता की अग्नि से उनके एक मित्र ने बचाया वे आज भी उस त्रासदी के अनेक परिणाम भुगत रहे हैं।

मेजर कंचाराम खनूजा – आयु ४५ भोपाल इंजीनियर दल इकाई का यह सिक्ख कमांडर उस विनाशक रात के नायकों में से एक था अपने बचाव के लिए अग्निशामकों वाला चश्मा और मुँह पर गीला रुमाल मात्र रखकर वह एक गत्ता फैक्ट्री के चार सौ मजदूरों और उनके परिवार को बचाने के लिए एक ट्रक पर चढ़ गए जिन पर नींद के दौरान गैस ने हमला किया था।

डॉ. दीपक गाँधी – डॉ.गाँधी उस जानलेवा रात हमीदिया अस्पताल में ड्यूटी पर थे वे गैस के शिकार लोगों को सँभालने वाले पहले डॉक्टर थे उसके बाद मरने वाले लोगों का ज्वर ही पुरे शहर से फूट पड़ा वे तीन दिन और तीन रात तक निरंतर कार्य करते रहे।
 
नि:शब्द : आई.बी.टी.एल. इस पर कोई भी टिपण्णी करने में असहाय है एवं किसी भी प्रकार की झूठी सांत्वना नहीं देना चाहता ... किसी भी व्यक्ति का दुःख दर्द वही जान सकता है ... 

साभार अनुराग राम

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