परमाणु ऊर्जा से संपन्न भारत का सपना देखने वाले होमी जहांगीर भाभा की राष्ट्रभक्ति को नमन

Published: Sunday, Oct 30,2011, 01:44 IST
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होमी जहांगीर भाभा का जन्म 30 अक्टूबर 1909 को मुंबई के एक धनी पारसी परिवार में हुआ। उनकी परवरिश बेहद उच्चस्तरीय परिवेश में हुई । उनके माता-पिता दोनों ही भारत के बड़े उद्योगपति घराने टाटा से संबंधित थे। उन्होंने मुंबई से कैथड्रल और जॉन केनन स्कूल से पढ़ाई की। फिर एल्फिस्टन कॉलेज मुंबई और रोयाल इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस से पढ़ाई की। उनपर महात्मा गांधी के विचारों का जबरदस्त प्रभाव था। इसलिए उनके विचार सादगीपूर्ण और वास्तविकता के काफी करीब थेमुंबई से पढाई पूरी करने के बाद भाभा ने वर्ष1927 में इंग्लैंड के कैअस कॉलेज, कैंब्रिज इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने गए। हालांकि इंजीनियरिंग पढ़ने का निर्णय उनका नहीं था। यह परिवार की ख्वाहिश थी कि वे एक होनहार इंजीनियर बनें। होमी ने सबकी बातों का ध्यान रखते हुए, इंजीनियरिंग की पढ़ाई जरूर की, लेकिन अपने प्रिय विषय फिजिक्स से भी खुद को जोड़े रखा। न्यूक्लियर फिजिक्स के प्रति उनका लगाव जुनूनी स्तर तक था। उन्होंने कैंब्रिज से ही पिता को पत्र लिख कर अपने इरादे बता दिए थे कि फिजिक्स ही उनका अंतिम लक्ष्य है। देश को उर्जा के बहुत बड़े विकल्प की आवश्यकता को भाभा ने बहुत पहले ही भांप लिया था इसलिए आजादी से पहले ही उन्होंने भारत को परमाणु ऊर्जा से संपन्न देश बनाने का सपना देख लिया था। डॉक्टर भाभा के नेतृत्व में भारत में एटॉमिक एनर्जी कमीशन की स्थापना की गई।

उन्होंने मुटठीभर वैज्ञानिकों की सहायता से परमाणु ऊर्जा विद्युत उत्पादन के लिए एक व्यवहार्य वैकल्पिक स्रोत में उच्च क्षमता को पहचानते हुए मार्च, 1944 में भारतीय नाभिकीय कार्यक्रम प्रारंभ किया। उन्होंने बहुत से अवसरों पर कहा था कि कुछ ही दशकों में जब परमाणु ऊर्जा का विद्युत उत्पादन के लिए सफलतापूर्वक अनुप्रयोग किया जाएगा तब भारत को विशेषज्ञों के लिए विदेशों की ओर नहीं देखना पडे़गा बल्कि वे यहीं मिलेंगे। यह डॉ. भाभा की दूरदृष्टि ही थी जिसके कारण भारत में नाभिकीय अनुसंधान को उस समय प्रारंभ किया जब ओटो हान एवं फ्रिट्ज स्ट्रॅसमैन द्वारा नाभिकीय विखंड़न के चमत्कार की खोज की जा रही थी एवं तत्पश्चात एन्रिको फर्मि व साथियों द्वारा अविच्छिन्न नाभिकीय श्रृंखला अभिक्रियाओं की व्यवहार्यता के बारे में रिपोर्ट किया गया। उस समय बाहरी विश्व को नाभिकीय विखंडन एवं अविच्छिन्न श्रृंखला अभिक्रिया की सूचना न के बराबर थी। परमाणु ऊर्जा पर आधारित विद्युत उत्पादन की कल्पना को कोई मान्यता देने के लिए तैयार नहीं था।

उन्होंने नाभिकीय ऊर्जा की असीम क्षमता एवं उसकी विद्युत उत्पादन एवं सहायक क्षेत्रों में सफल प्रयोग की संभावना को पहचाना।उनके एटॉमिक एनर्जी के विकास के लिए समर्पित प्रयासों का ही परिणाम था कि भारत ने वर्ष 1956 में ट्रांबे में एशिया का पहले एटोमिक रिएक्टर की स्थापना की गई। केवल यही नहीं, डॉक्टर भाभा वर्ष 1956 में जेनेवा में आयोजित यूएन कॉफ्रेंस ऑन एटॉमिक एनर्जी के चेयरमैन भी चुने गए थे।  डॉ. भाभा ने नाभिकीय विज्ञान एवं इंजीनियरी के क्षेत्र में स्वावलंबन प्राप्त करने के लक्ष्य से यह कार्य प्रारंभ किया और आज का परमाणु ऊर्जा विभाग जो विविध विज्ञान एवं इंजीनियरी के क्षेत्रों का समूह है, उसका कारण यह है कि उन्होंने वर्ष 1957 में एटोमिक एनर्जी ट्रेनिंग स्कूल की भी स्थापना की थी। इसमें साइंस व इंजीनियरिंग के स्टूडेट्स को बहुउद्देश्यीय ट्रेनिंग दी जाती थी। डॉ. भाभा एक कुशल वैज्ञानिक और प्रतिबद्ध इंजीनियर होने के साथ-साथ एक समर्पित वास्तुशिल्पी, सतर्क नियोजक एवं निपुण कार्यकारी थे।

वे ललित कला एवं संगीत के उत्कृष्ट प्रेमी और लोकोपकारी थे। एयर इंडिया का विमान स्विटजरलैंड की आलप्स पर्वतमाला में दुर्घटनाग्रस्त, हादसे में प्रसिध्द भारतीय भौतिकविज्ञानी होमी जहांगीर भाभा की मृत्यु 24 जनवरी 1966 को हो गयी उनकी मृत्यु को लेकर  बहुत से भ्रम की स्थितियां हैं वर्ष 2007 में अमेरिका के साथ परमाणु करार पर बुधवार को लोकसभा में हुई चर्चा के दौरान आडवाणी ने कहा कि भाभा भारत को एक परमाणु हथियार संपन्न राष्ट्र बनाने के पक्ष में थे। उन्होंने कहा कि एक पत्रकार के रूप में मैंने भाभा के उस प्रेस कॉन्फ्रेंस को कवर किया था, जिसमें उन्होंने साफ तौर पर कहा था कि अगर हम निर्णय ले लें तो डेढ़ से दो साल में परमाणु बम बना सकते हैं। लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू इसके पक्ष में नहीं थे।  अगर 60 के दशक में भारत ने परमाणु बम बनाने का निर्णय ले लिया होता तो भारत भी परमाणु बम बनाने वाले क्लब का सदस्य होता स्विद्ज्र्लैंड में परमाणु उर्जा पर बोले गए उनके भाषण में उन्होंने सम्पूर्ण विश्व को एक नयी अनुसन्धान की सोच दी उन्होंने कहा था कि विश्व में अग्रणी भूमिका निभाने की आकांक्षा रखने वाला कोई भी देश शुद्ध अथवा दीर्घकालीन अनुसंधान की उपेक्षा नहीं कर सकता।

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