हर अच्छी किताब पढऩे के कुछ फायदे हैं। यदि बारीकी से शब्दों को पकड़ेंगे तो हम पाएंगे किताब में चार संदेश जरूर होते हैं। कैस..
वीर अफ़ज़ल गुरु चौक, युवा मसीहा कसाब स्टेडियम, जैसे नामकरण कैसे रहेंगे?
केरल में त्रिचूर की "अलर्ट सिटीजन्स" नामक संस्था ने शहर में एक मुख्य सड़क का नाम पोप जॉन पॉल (द्वितीय) के नाम पर रखने का विरोध किया है और महापौर को चिठ्ठी लिखकर इस निर्णय को वापस लेने की माँग की है।
उल्लेखनीय है कि कुछ वर्ष पहले भी "सिस्टर अलफ़ोंसा" की तस्वीर वाले 5 रुपये के सिक्के जारी किये जा चुके हैं, जबकि कई हिन्दू संगठनों ने माँग की थी कि इन सिक्कों पर "आदि शंकराचार्य" की तस्वीर होनी चाहिए। जहाँ एक ओर इंडोनेशिया में नोटों पर भगवान गणेश के चित्र देखे जा सकते हैं वहीं दूसरी ओर "सेकुलरिज़्म" के कैंसर से पीड़ित भारत में सभी नोटों पर "राष्ट्रपिता"(???) का कब्जा है। ज़ाहिर है कि सरकारों के लिए आदि शंकराचार्य के मुकाबले पोप जॉन पॉल और सिस्टर अल्फ़ोंसा अधिक महत्वपूर्ण हैं।
सेकुलरों का तर्क है कि जब दिल्ली सहित कई अन्य शहरों में अकबर रोड, शाहजहाँ रोड हो सकती है तो पोप के नाम पर सड़क और अल्फ़ोंसा के चित्र वाला सिक्का क्यों नहीं हो सकता? परन्तु कोई सेकुलर यह बताने को तैयार नहीं है कि अकबर और पोप की तुलना कैसे की जा सकती है? पोप जॉन पॉल (द्वितीय) का भारत के इतिहास और विकास में क्या योगदान है?
परन्तु जब हमने यह तय कर ही लिया है कि हमें "सेकुलरिज़्म" के कीचड़ में लोटना ही है तो फ़िर अगले कुछ वर्षों में हमें वीर अफ़ज़ल गुरु चौक, पूज्य क्वात्रोची रोड, मित्र मुशर्रफ़ कॉलोनी, युवा मसीहा अजमल कसाब स्टेडियम, उद्योग रत्न वॉरेन एण्डरसन एयरपोर्ट जैसे नामकरणों को स्वीकार करना ही है…।
हालांकि सैकड़ों जातियों में बँटे हुए "लतखोर" हिन्दुओं को कोई उपदेश देना बेकार ही है, फ़िर भी लिखता हूँ… दिल है कि मानता नहीं।
— सुरेश चिपलूनकर
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