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अन्ना का चेहरा देख छोड़ दिया भोजन - आनंद सिंह, भड़ास4मीडिया
छात्र राजनीति में रहते हुए हम लोग अक्सर एक नारा लगाते थे..सत्ता के हम सभी दलाल, फिर भी भारत मां के लाल। उस वक्त जोश था, होश नहीं। अर्थ नहीं समझते थे। आज 21-22 वर्षों के बाद रामलीला मैदान में पहली बार टीवी स्क्रीन पर यह नारा लगाते हुए मैंने कुछ नौजवान भाइयों को देखा तो बरबस ही मुठ्ठियां भींच गईं।
अन्ना हजारे की हालत गंभीर है। उन्होंने हठ कर लिया है कि वह ड्रिप नहीं लगाएंगे। डा. त्रेहन के साथ-साथ 8 डाक्टरों की टीम लगातार मिन्नतें कर रही हैं कि आप ड्रिप लगवा लो वरना नुकसान हो जाएगा। अन्ना कह रहे हैं कि मैं अगर मर भी गया तो कोई बात नहीं। कई हजार अन्ना पैदा हो जाएंगे। अन्ना का चेहरा लगातार आठ दिनों से टीवी पर देख रहा हूं। आज भी देखा। खाना खा रहा था, पत्नी के साथ। अन्ना का चेहरा देख कर पत्नी सुबक-सुबक कर रोने लगी और हम दोनों मियां-बीवी गुमसुम हो गए।
पत्नी ने कहा-अन्ना आठ दिनों से भूखे हैं और हम लोग खा रहे हैं. . .मैं अपनी मां के मरने पर उतना नहीं रोया। मां बीमार थी, चली गयी। मैं अन्ना का मुरझाया हुआ चेहरा देख अपने आंसू नहीं रोक पाया। पावर का चश्मा लगाने का एक फायदा यह है कि लोग आपके आंसू अमूमन नहीं देख पाते। शायद मेरे बच्चों ने भी मेरे आंसू नहीं देखे वरना वो मुझसे कई तरह के सवाल पूछते। मैं क्या जवाब देता उनके सवालों का? बच्चे स्कूल जाते हैं तो अन्ना हजारे जिंदाबाद कहते-कहते जाते हैं, लौटते हैं तो डोरोमैन की जगह अब एनडीटीवी लगाते हैं। सचमुच, अन्ना जन-जन के हो चले हैं।
अन्ना हजारे को क्या पड़ी थी जनलोकपाल के लिए संघर्ष करने की? मनीष तिवारी जैसा बिना दुम का कुत्ता कभी समझ सकेगा अन्ना को? इस आदमी ने अन्ना पर भगोड़ा होने का आरोप लगा कर मीडिया की सुर्खियां तो बटोरी, अब जब सेना के नार्थ कमांड से आरटीआई के तहत मांगी गई जानकारी में अन्ना को भगोड़ा नहीं बताया गया तो वह टीवी स्क्रीन से गायब हैं। सत्ता की दलाली में मशगूल राजीव शुक्ला के टीवी पर सिनेमा के गीत चल रहे हैं। रिपोर्टर खबर फाइल करता है, पूरा टेप डस्टबीन में डाल दिया जाता है। सन 47 के बाद करप्शन को हटाने के लिए इतना बड़ा जनआंदोलन देश में चल रहा है, सारे मीडिया के लोग अन्ना रूपी जनआंदोलन का लाइव कवरेज कर रहे हैं और राजीव शुक्ला के चैनल पर लौंडियाबाजों वाला गीत-संगीत। यह सत्ता की दलाली नहीं तो और क्या है?
अमृतसर में पैदा हुआ हमारा प्रधानमंत्री बेशक दुनिया का जाना-माना अर्थशास्त्री हो पर यह निर्मम सरदार है, यह गत आठ दिनों में दिख ही चुका है। मुझे ही नहीं, पूरी दुनिया को। 75 साल का बूढ़ा बिना खाये-पीये सत्ता तंत्र को हिला रहा है और हमारा सरदार, हमारा प्रधानमंत्री दीक्षा कार्यक्रम में लोगों को उपाधियां बांट रहा है। क्या अन्ना की जान से बढ़ कर इन डिग्रियों का महत्व है? बुधवार को दोपहर में साढ़े तीन बजे सर्वदलीय बैठक बुलाई गई है। आठ दिन बीतने के बाद? भगवान करे अन्ना को मेरी उम्र लग जाए पर खुदा ना खास्ते अन्ना का शरीर साथ छोड़ दे तो?
यह मानना पड़ेगा कि डा. मनमोहन सिंह सचमुच इस देश के अब तक के सबसे घटिया, वाहियात और फैसले न करने वाला प्रधानमंत्री के रूप में याद किये जाएंगे। लाखों-लाख लोग जिस आदमी के पीछे दिन-रात लगे हुए हैं, उस आदमी की फिक्र हमारे देश के प्रधानमंत्री को नहीं है। हमारे देश के प्रधानमंत्री को फिक्र है कपिल सिब्बल की, जिनका थोड़ा-सा रक्तचाप बढ़ जाता है तो हमारे प्रधानमंत्री फोन पर फोन करते हैं या उनका पीएमओ हाई अटेंशन में आ जाता है। किससे छुपा है कि रामलीला मैदान में मंगलवार की दोपहर पंडाल गिर गए और पानी भर गया। महानगरपालिका के कर्मचारियों को किसने देखा पानी फेंकते हुए?
अन्ना का आंदोलन पूरी तरह मौजू है। अन्ना पूरी तरह बेदाग हैं। वह अपने जीवन की परवाह नहीं करते, इसलिए वे आज के दधीच हैं। उनका आंदोलन जन-जन का आंदोलन है। सही बात के लिए है। करप्शन को दूर करने के लिए है। उस आंदोलन को यह कांग्रेस की सरकार दबाना चाहती है। यह तय है कि दिल्ली के तख्त पर अगले अनेक दशकों के लिए कांग्रेस का यह आखिरी कार्यकाल है। इसके बाद कांग्रेस की सरकार दिल्ली में बनेगी, यह कोरी कल्पना और मनुष्य को अमरत्व का वरदान मिलने जैसा है। भरोसा न हो तो 2012 के यूपी चुनाव में ट्रेलर देख लेंगे। और हां, इस देश के सबसे बदनुमा प्रधानमंत्री के रूप में मनमोहन सिंह का भी नाम अभी से लिखवा लें, आपके बच्चों का ज्ञानवर्धन होगा।
लेखक आनंद सिंह दैनिक हिंदुस्तान, दैनिक जागरण, राष्ट्रीय सहारा समेत कई अखबारों में वरिष्ठ पदों पर रह चुके हैं. इन दिनों साप्ताहिक अखबार हम वतन में बतौर प्रिंसिपल करेस्पांडेंट कार्यरत हैं
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