दिल्ली पुलिस ने अपनी पोल खुद ही खोल दी है कहा गृहमंत्री पी. चिदंबरम जी बड़े चिंतित हो उठे थे
सर्वोच्च न्यायालय के सामने दिल्ली पुलिस को कैसी सफेद झूठ बोलनी पड़ रही है। यह उसकी मजबूरी है। वह भी उसकी मजबूरी थी कि उसे 4 जून को बाबा रामदेव के भक्तों पर हमला करना पड़ा। मजबूरी को छिपाने की इस मजबूरी पर किसे तरस नहीं आएगा? हमारे नेताओं से ज्यादा खूंखार प्राणी भारत में और कौन हैं? इन खूंखार नेताओं के सामने बेचारे पुलिसवालों की हैसियत क्या है? नेताओं का इशारा पाते ही उन्हें उन लोगों पर भी टूट पड़ना होता है, जो बिल्कुल बेकसूर और मासूम होते हैं। नेताओं के इशारे पर ही हमारी पुलिस हत्यारों और बलात्कारियों पर छाता तान देती है। उसने यही काम 4 जून को रामलीला मैदान में किया।
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दुनिया के इतिहास में एक लाख लोगों का सामूहिक अनशन पहले कभी
नहीं हुआ। गांधी जी के जमाने में भी नहीं हुआ। यदि इस अनशन की
पूर्णाहुति ससम्मान होती तो सारे विश्व में भारत का माथा ऊँचा होता।
अहिंसक आंदोलन का विश्व-प्रतिमान कायम होता।
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सर्वोच्च न्यायालय में दिल्ली पुलिस ने अपनी पोल खुद ही खोल दी है। उसने गृहमंत्री पी. चिदंबरम पर छाता तान दिया है। उसने अदालत से कहा है कि गृह मंत्रीजी बड़े चिंतित हो उठे थे। रामलीला मैदान में 50 हजार लोगों की समाई थी लेकिन एक लाख से भी ज्यादा लोग आ गए थे और आते ही जा रहे थे। ऐसी हालत में गृहमंत्री जी ने जो निर्णय कि ‘उसकी अनुमति संविधान देता है’। बेचारे पुलिसवालों को चिदंबरम के अफसरों ने जो पट्टी पढ़ाई, वहीं उन्होंने अदालत के सामने उगल दी। पुलिस के बयान से यह रहस्य खुल गया कि रामलीला मैदान के भूखे-प्यासे सत्याग्रहियों पर जानलेवा हमला किसने करवाया?
दुनिया के इतिहास में एक लाख लोगों का सामूहिक अनशन पहले कभी नहीं हुआ। गांधी जी के जमाने में भी नहीं हुआ। यदि इस अनशन की पूर्णाहुति ससम्मान होती तो सारे विश्व में भारत का माथा ऊँचा होता। अहिंसक आंदोलन का विश्व-प्रतिमान कायम होता। इस सरकार को भी जबर्दस्त श्रेय मिलता लेकिन हमारे केन्द्रीय मंत्रिमंडल में बैठे कुछ अंहकारी, नौसिखिए और नौकरीबाज नेताओं ने सरकार की इज्जत धूल में मिला दी। कांग्रेस जैसी महान पार्टी को, जो अपने अहिंसक आंदोलनों के कारण सारे विश्व में सम्मानित हुई, इन तथाकथित नेताओं ने कलंकित कर दिया। पुलिस ने उनका अंधा आदेश माना और आम जनता ने पलटकर उन पर वार नहीं किया, इसका मतलब यह नहीं कि वे सस्ते में छूट गए। भारत के करोड़ों लोगों ने उस दिन खून का घूंट पिया है। वे दुष्टों को दंडित किए बिना नहीं रहेंगे। देश की सर्वोच्च अदालत को आगे बढ़कर सरकार के इस कुकर्म पर आखिर उंगली क्यों उठानी पड़ी है।
प्रधानमंत्री ने उस ‘रावण लीला’ पर खेद जरूर प्रगट किया। वे मगर के आंसू थे लेकिन आज तक वे और उनके मंत्री देश और अदालत को यह नहीं बता पाए कि हमारी इस नखदंतहीन सज्जन सरकार को इतनी भंयकर गुंडागर्दी करने की जरूरत क्यों पड़ गई? अदालत ने बिल्कुल सटीक सवाल पूछा है कि पुलिस ने पांच जून की सुबह तक इंतजार क्यों नहीं किया? गहरी नींद में सोए हुए, भूखे-प्यासे एक लाख लोगों पर उसने मध्यरात्रि में हमला क्यों किया? संन्यासिनों, ब्रह्मचारिणियों, वेदपाठी पंडितों, किशार छात्रों, वृद्ध वानप्रस्थितियों-किसी को भी नहीं बख्शा गया। यदि भारत में सचमुच के राजनीतिक दल होते तो यह सरकार पांच जून की सुबह ही गिर जाती। जरा याद करें, नवंबर, 1966 को। गृहमंत्री गुलजारी लाल नंदा को दूसरे दिन सुबह ही इस्तीफा देना पड़ा था, गौरक्षा-आंदोलन पर हिंसक-प्रहार करने के लिए। खुद कांग्रेस पार्टी में बगावत हो गई थी। यदि भारती की जगह कोई बौद्ध या ईसाई या मुस्लिम राष्ट्र और उसके साधुओं पर इस तरह का प्रहार होता तो जनता नेताओं की खाल खींच लेती।
हमारी पुलिस अपने मालिकों को बचाने के लिए अपने पाप का ठीकरा बाबा रामदेव के माथे पर फोड़ रही है। वह उस ‘गुंडागर्दी’ के लिए रामदेवजी को जिम्मेदार ठहरा रही है। चोरी और सीनाजोरी कर रही है। बाबा रामदेव की गलती यही है कि वे इन धूर्त नेताओं के चकमे में आ गए और उनसे 4 जून की शाम तक बात करते रहे। वे उन्हें आदरणीय और विश्वसनीय समझते रहे। हमारी सबसे बड़ी अदालत को जड़ तक पहुंचना होगा। बेचारे पुलिसवाले उसे क्या जवाब देंगे? उसके कटघरे में तो उन सब मंत्रियों को खड़ा किया जाना चाहिए, जिन्होंने बाबा रामदेव को धोखा दिया और अपनी सरकार की कब्र खोद दी।
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