नई दिल्ली | चिदंबरम के मामले पर निचली अदालत के फैसले से निराश न होते हुए डा. सुब्रमण्यम स्वामी ने कहा कि आज नहीं तो कल ग..
आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट के आदेश के बाद अल्पसंख्यको के नाम पर राजनीति करने वाली यू.पी.ए-2 की अगुआई वाले सबसे प्रमुख घटक दल कांग्रेस पार्टी की नियत पर अब सवाल उठने लगने लगे है। ऐसा लगता है कि उसकी धर्माधारित राजनीति पर अब ग्रहण लग गया है। ध्यान देने योग्य है कि अभी हाल ही में संपन्न हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के चलते केंद्र सरकार ने ओबीसी के 27 प्रतिशत आरक्षण के कोटे से 4.5 प्रतिशत आरक्षण अल्पसंख्यक समुदाय को देने की घोषणा की थी। सरकार की चुनावों के दौरान इस प्रकार की लोकलुभावनी घोषणा को मुस्लिम वोट बैंक को लुभाने का चुनावी पैतरा मानकर चुनाव आयोग ने विधानसभा चुनावों तक इसके अमल में रोक लगा दी थी परन्तु केंद्र सरकार ने विधानसभा चुनावों के परिणाम आते ही अपने फैसले को लागू कर दिया।
परन्तु आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट के आदेश से सरकार बुरी तरह बौखला गयी और आनन्-फानन में कानून और अल्पसंख्यक मामलों के केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद ने मंगलवार को सरकार के हुए डैमेज को कंट्रोल करने की कोशिश करते हुए प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाकर यह कहा कि केंद्र सरकार ओबीसी आरक्षण कोटा के भीतर अल्पसंख्यकों को 4.5 प्रतिशत कोटा की व्यवस्था को रद्द करने के आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में चल रहे अवकाश के चलते स्पेशल लीव पिटिशन (एसएलपी) के तहत सुप्रीम कोर्ट जाने का मन बनाया है। अटर्नी जनरल के भारत लौटने के बाद उनसे सलाह-मशविरा करने के बाद सरकार सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटायेगी । परन्तु पत्रकारों सवाल से बौखलाते हुए केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद ने यहाँ तक कह दिया कि यह "प्रेस-कांफ्रेस मेरी है जो कह रहा हूँ उसे सुनो "। अल्पसंख्यक कोटा पर यदि सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी सरकार के खिलाफ गया तो केंद्र सरकार की बहुत किरकिरी होगी। इसके बाद सरकार संविधान पीठ के समक्ष मामले को ले जा सकती है और अगर वहा भी हार का मुह देखना पड़ा तो सरकार के पास संविधान सशोधन के सिवा कोई दूसरा विकल्प नहीं होगा। परन्तु संविधान-संशोधन के लिए दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है जो गठबंधन से चल रही सरकार के लिए आसान नहीं होगा।
केंद्रीय मंत्री ने के अनुसार इससे पहले भी आंध्र प्रदेश में आरक्षण के कोटे पर वहां की हाई कोर्ट रोक लगाती रही है। पिछली बार पांच जजों के एक पैनल ने आरक्षण के कोटे के विरुद्ध निर्णय दिया था जिस मामले में सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है। उन्होंने कहा कि सरकार पूरी कोशिश करेगी कि जितनी जल्दी हो इस मामले पर तमाम उलझनें दूर हो जाए क्योंकि कोर्ट के इस फैसले से कई छात्रो का भविष्य अधर में लटक गया है। ध्यान देने योग्य है कि आरक्षण के अमल में आने के बाद आईआईटी में करीब 400 छात्रों का चयन हो गया है परन्तु कोर्ट के इस फैसले से आईआईटी के दाखिलों पर असर पड़ सकता है। फिर कोई राजीव गोस्वामी न बने इसलिए मानव संसाधन विकास मंत्रालय भी हरकत में आ गया है। ध्यान देने योग्य है कि वी.पी. सिंह की सरकार द्वारा मंडल कमीशन की सिफारिसो को लागू करने के विरोध में राजीव गोस्वामी ने आत्मदाह कर लिया था।
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यहाँ यह ध्यान देने योग्य है कि इससे पहले केंद्र सरकार ने अपने फैसले का बचाव करते हुए यह दलील दी थी कि उसने सच्चर कमेटी की सिफारिशों को लागू करने की ओर कदम बढाया है और यही संस्तुति कांग्रेस पार्टी के 2009 के घोषणापत्र में भी थी अतः इसे मात्र मुस्लिम हितों से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए। अल्पसंख्यकों को उनके पिछड़ेपन के आधार पर आरक्षण दिया गया, न कि मजहब के आधार पर। परन्तु सरकार का तर्क है धरा का धरा रह गया। दरअसल सरकार ने बड़ी चतुराई से उस समय हो रहे पांच राज्यों में चुनाव के दौरान अल्पसंख्यक आरक्षण का एक चुनावी शिगूफा छोड़ा था क्योंकि उसने अपने इस चुनावी पैतरे से एक साथ तीन राज्यों में पंजाब, गोवा और उत्तर प्रदेश में निशाना साधा। मसलन पंजाब में सिख समुदाय पर आरक्षण का लाभ मिलने का वादा किया गया तो उत्तरप्रदेश में मुसलमानों पर और गोवा में ईसाईयों पर दांव लगाया।
देश में पड़ रही भयंकर गर्मी के इस मौसम में आये हाई कोर्ट के इस फैसले ने राजनीति गलियारों में उबाल ला दिया है। अल्पसंख्यक-आरक्षण के इस मुद्दे पर बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि एक तरफ जहा कांग्रेस इस मामले में राजनीति कर रही है वही दूसरी तरफ यूपीए मुसलमानों को आरक्षण के मामले में गंभीर नहीं है। बीजेपी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने भी इस मसले पर यूपीए सरकार को निशाने पर लेते हुए कहा कि सरकार द्वारा की गयी गलतियों को ठीक करने का काम अदालतों को करना पड़ रहा है। एक तरफ टीडीपी (तेलगू देशम पार्टी) के अध्यक्ष चंद्रबाबू नायडू ने केंद्र सरकार द्वारा कोटे के अंदर कोटा देने की बजाय संविधान में संशोधन करके मुसलमानों के लिए अलग से कोटे की व्यवस्था करने की वकालत की तो दूसरी तरफ लोक जनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष रामबिलास पासवान ने रंगनाथ मिश्रा की रिपोर्ट के अनुसार मुसलमानों को आरक्षण देने की बात कही। गौरतलब है कि रंगनाथ मिश्र आयोग ने अल्पसंख्यको को शिक्षा , सरकारी नौकरी एवं समाज कल्याण योजनाओं में 15 प्रतिशत पिछड़े वर्ग के कोटे के अंतर्गत आरक्षण देने की संस्तुति की थी। इस 15 प्रतिशत आरक्षण में 10 प्रतिशत आरक्षण मुस्लिम समुदाय के लिए और बाकी 5 प्रतिशत आरक्षण अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के लिए प्रावधान है।
आरक्षण की इस बिसात पर ऊँट किस करवट बैठेगा यह तो समय के गर्भ में है परन्तु यूपीए सरकार की नियत की कलई अब खुल गयी है। अब समय आ गया है कि आरक्षण के नाम पर सरकार राजनैतिक रोटियां सेकना बंद करे और समाज-उत्थान को ध्यान में रखकर फैसले करे ताकि किसी भी तबके को ये ना लगे कि उनसे उन हक छीना गया है और किसी को ये ना लगे कि आजादी के इतने वर्ष बाद भी उन्हें मुख्य धारा में जगह नहीं मिली है। तब वास्तव में आरक्षण का लाभ सही व्यक्ति को मिल पायेगा जिसके लिए संविधान में आरक्षण की व्यवस्था की गयी थी।
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