लौट आइये शास्त्री जी... लौट आइये !

Published: Tuesday, Oct 02,2012, 12:06 IST
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उन्होने कभी कोई बड़े-बड़े दावे नहीं किए, मगर उनके कर्मों ने भारत को स्वाभिमान से अपने पैरों पर चलना सिखाया। उन्होने कभी नहीं कहा कि “एफ़डीआई के बिना नहीं होगा किसानों का भला।” उन्होने कहा- “जय किसान”, और देश के किसानों ने मिट्टी से सोना उपजा दिया। उन्होने कभी जवानों के हाथ नहीं बांधे छद्म ‘अहिंसा’ या शांति नोबल के ख्वाबों से। नारा दिया “जय जवान”, और देश के जवानों ने 65 के युद्ध मे दुश्मनों को धूल चटा दी।

जब देश मे नन्हें मुन्ने, तरसते थे दूध के लिए, वो कभी नहीं उलझे ‘क्षीर सागर’ के दिवास्वप्न-जाल में, बल्कि श्वेत क्रांति कर बहा दी दूध की नदियां धरती पर ही। जब देश भूख से झूझ रहा था, उन्होने कभी नहीं कहा कि “गरीब खाने लगे हैं बहुत, इसलिए अनाज की कमी है।” बल्कि स्वयं सप्ताह में 2 दिन उपवास रखा और गरीबों की भूख मिटाई।
 
वह जनता की आँखों का तारा थे। देश के सच्चे सपूत, भारत माँ के लाल, पंडित लाल बहादुर शास्त्री। आज लाल बहादुर शास्त्री जयंती है। देख रही हूँ, कि जिस काँग्रेस ने राजीव गांधी की जयंती पर करोड़ों रुपये खर्च कर अखबार विज्ञापनों से रंग डाले, उसने अपने इस महान नेता के लिए 1 पंक्ति भी नहीं लिखी? लेकिन तभी एहसास होता है कि शास्त्री जी को इन विज्ञापनों की ज़रूरत कहाँ? वे तो करोड़ों भारतीयों के दिल मे बसते हैं।

बाजारीकरण और भ्रष्टाचार के जिस दौर मे हम जन्मे हैं, उसमे शास्त्री जी का व्यक्तित्व किसी मिथकीय देव-पुरुष सा ही नज़र आता है। हम तो उस दौर में जन्मे हैं जहाँ नेता और अफसर मिलकर गरीबों के राशन से लेकर सड़क, पुल, चारा, कोयला यहाँ तक कि कफन तक डकार जाते हैं। करोड़ों टन अनाज सड़ाते हैं, फिर उसकी महंगी शराब बनाकर पी जाते हैं और फिर गरीबों की भूख का मज़ाक उड़ाते हैं। जहाँ सम्पन्न लोग भ्रष्ट धन से खरीदे महंगे मोबाइल, ब्रांडेड कपड़े और गाडियाँ लेकर जंतर-मंतर जाते हैं और फिर भ्रष्टाचार के खिलाफ नारे लगाते हैं।
 
एक तरफ आज के दौर में ‘कुछ नहीं’ होते हुए भी कुछ छद्म गांधी हवाई उड़ानों मे ही 1880 करोड़ रुपये उड़ा देते हैं वहीं प्रधानमंत्री पद पर रहते हुए भी शास्त्री जी ने कभी निजी कार्यों के लिए सरकारी गाड़ी का प्रयोग नहीं किया। कैसे कोई प्रधानमंत्री होते हुए भी इतनी सादगी से जीवन बिता सकता है? कैसे मान लें कि कोई हाड़-मांस का ऐसा इंसान भी था जिसकी सिंह गर्जना ने पूरे विश्व को भारत की ताकत से परिचित करवाया? हम तो बड़े बड़े आतंकवादी हमलों के बाद भी मिमियाने की आवाज़े ही सुनते आए हैं। हमने तो ऐसे ही रोबोट-नुमा प्रधानमंत्री देखे हैं जो देश की नाव डुबोना अपना परम कर्तव्य मानते हैं इसलिए कभी-कभी शक होने लगता है कि शास्त्री जी सच मे जीते जागते इंसान थे।

शास्त्री जी छद्म ‘सत्य-अहिंसा-अपरिग्रहवादियों’ से बहुत ऊपर थे। जहाँ एक ओर महात्मा गांधी ने अहिंसा को इस हद्द तक तोड़ा-मरोड़ा कि देश का पौरुष ही नष्ट हो गया, वहीं व्यक्तिगत जीवन मे अहिंसा को परमधर्म मानने वाले शास्त्री जी ने देश पर हमले के वक़्त वीरता के साथ शत्रुओं को करारा जवाब दिया।

लाल बहादुर शास्त्री जी को याद करते हुए एक वृद्ध की आंखे नम हो जाती हैं। आँसू पोंछते हुए कहते हैं- “उनकी एक आवाज पर पूरा देश, विकास के सपने को पूरा करने के लिए उठ खड़ा हुआ। जब दुनिया भारत के खिलाफ पाकिस्तान का साथ दे रही थी, शास्त्री जी ने युद्ध मे भारत को विजय दिलाई। शास्त्री जी ना होते तो ना जाने इस देश की हालत क्या होती? गर्दिशों के इस दौर मे भारत को एक और लाल बहादुर की ज़रूरत है।”

मेरी भी आँखें भर आती हैं। अखबार मे प्रकाशित उनके चित्र पर श्रद्धा भरे 2 आँसू ढुलक जाते हैं। मैं प्रार्थना करती हूँ..... “शास्त्री जी... आप जानते हैं आज देश किस गर्त मे डूब रहा है। फिर से देश का स्वाभिमान जगाने लौट आइये शास्त्री जी...
प्लीज लौट आइये!!

लेखक तनया गडकरी एवं रोता-बिलखता आई.बी.टी.एल परिवार ...

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