एक और हिन्दी दिवस... मैकाले का भूत आज सबसे अधिक प्रसन्न होगा

Published: Friday, Sep 14,2012, 17:00 IST
By:
0
Share
hindi divas, hindi books, hindi literarture, 14 sep hindi day, worst hindi, hindi in worst condition, ibtl blogs

आज हिन्दी दिवस है। मैकाले का भूत आज सबसे अधिक प्रसन्न होगा, यह देखकर कि 179 साल पहले की गयी उनकी भविष्यवाणी सही साबित हुई और भारत में ही हिन्दी के संरक्षण हेतु हिन्दी दिवस मनाने की नौबत आ पड़ी। मैकाले ने भारतीय भाषाओं को खत्म करने की वकालत करते हुए कहा था- “हमें अंग्रेज़ी साम्राज्य के विस्तार के लिए एक ऐसा वर्ग बनाना है जो अपनी जड़ों से घृणा करे। वे लोग रंग व रक्त से हिंदुस्तानी होंगे किन्तु आचार-व्यवहार में अंग्रेज़ होंगे। कुछ जीत ऐसी होती हैं जिन पर कभी आंच नहीं आती। यह ऐसा साम्राज्य है जिसे कोई समाप्त नहीं कर सकता। यह अविनाशी साम्राज्य अँग्रेजी भाषा, कला और कानून का है।”

तो हमने भी मैकाले के इस सपने को पूरा करने में कोई कसर नहीं रखी। हमने हिन्दी की चिन्दियाँ करना अपनी बौद्धिकता का सबूत मान लिया। हमने देसी भाषा बोलने वाले भाई-बहनों को पिछड़ा कहकर उनका अपमान क्या। हम खुद पर शर्म करने लगे। हम केवल अधकचरे नकलची बनकर रह गए।
वह हिन्दी जिसने विश्व साहित्य को उत्कृष्ट रचनाएँ दी हैं, जो भारतीय उपमहाद्वीप में अधिकांश लोगों द्वारा बोली या समझी जाती है, जो देश के दूरस्थ सिरों को आपस में जोड़ने का कार्य करती है, जो हम भारतवासियों की आत्मा में पैठी हुई है, उसी हिन्दी को हम गँवारू भाषा मानकर उसका तिरस्कार करने लगे हैं। यही वजह है कि आज भारत को अपनी ही भाषा के सम्मान व संरक्षण हेतु विशेष ‘दिवस’ आयोजित करना पड़ रहा है।

हिन्दी को ना अपनाने की ज़िद ने एक ही देश में 2 टापू बना दिए अर्थात एक अँग्रेज़ीदाँ वर्ग का India और दूसरा भारतीय भाषाएँ बोलने वाला वृहद भारत। किन्तु दिक्कत यह है कि यह 0.25% आबादी वाला इंडिया बाकी 99.75% भारतीयों का नीति नियंता बना बैठा है। इंडिया की भारत के प्रति हिराकत स्पष्ट झलकती है।

कितनी हास्यास्पद बात है कि जिस ब्रिटिश राज से आज़ादी पाने हेतु हमने इतना बलिदान दिया, उस आज़ादी की वेला पर हमारे प्रथम प्रधानमंत्री ने हिन्दी मे नहीं अपितु अंग्रेजी मे भाषण दिया। वर्ष 2007 में 1857 के प्रथम स्वतन्त्रता संग्राम के 150 वर्ष पूर्ण होने के उपलक्ष्य मे हमारे उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री व लोकसभा अध्यक्ष ने हिन्दी या किसी अन्य भारतीय भाषा में नहीं अपितु अंग्रेजी में उद्बोधन दिये। हमने तो भारतीय संविधान का मूल प्रारूप भी हिन्दी में नहीं बनाया। जब भारत की लोकतांत्रिक राजव्यवस्था आम लोगों के लिए है तो आम लोगों की समझ से दूर क्यों कर दिया गया?

आप सोचेंगे मैं बहुत अधिक निराशावादी हो रही हूँ; किन्तु परिदृश्य ही कुछ ऐसा है। भाषाई दिवालियापन पूरे देश को चपेट में लेता जा रहा है। कई बार ऐसा हुआ कि किसी बच्चे से हिन्दी मेँ बात करने पर वह टुकुर टुकुर शक्ल ताकने लगता है और तब अचानक कहीं से उसकी माँ प्रकट होती है; गर्व से यह कहते हुए कि- “Oh he can’t understand Hindi, U know.”

भारत में हिन्दी त्यागकर अंग्रेज़ी बोलना आपके पढे-लिखे होने का सबूत माना जाता है। (भले ही आपकी अंग्रेज़ी व्याकरण की दृष्टि से खराब हो)। यही हाल हिन्दी साहित्य का भी है। आजकल हिन्दी पुस्तकें दुर्लभ हो गयी हैं। हाल यह कि जो हिन्दी में लिखता है, वो बिकता नहीं और जो अंग्रेज़ी मे कचरा साहित्य भी लिख दे, वह मीडिया द्वारा रातों-रात सितारा बना दिया जाता है।
खुद मीडिया में भी 2 वर्ग बन गए हैं- पहला ‘उच्च वर्ग’ अर्थात अंग्रेज़ी मीडिया और दूसरा ‘निम्न वर्ग’ अर्थात बेचारा सा, हीनभावना ग्रस्त हिन्दी मीडिया। हिन्दी मीडिया अपनी विशाल प्रसार संख्या के बावजूद अपने से कहीं छोटे अंग्रेज़ी मीडिया से डरा-दबा सा रहता है। भारतीय मनोरंजन उद्योग हिन्दी की नींव पर ही खड़ा है किन्तु अमिताभ बच्चन जैसे कुछ अपवादों को छोड़ दें तो अधिकांश फिल्मी सितारे हिन्दी से दूरी बनाए रखते हैं। जो हिन्दी उन्हे रोज़ी–रोटी देती है, वही हिन्दी बोलने में उन्हे शर्म आती है। यही शर्म हम सभी भारतीयों पर तारी है और इसी शर्म के चलते हम भाषायी कंगाल बनने की कगार पर खड़े हैं। विदेशी लोग हमे एक ऐसे अजूबे के तौर पर देखते हैं जो अपनी जड़ों से कटने पर उतारू हैं। आखिर हम विश्व संस्कृति को क्या ऐसे भाषायी विदूषक देंगे जो ना ठीक से अंग्रेज़ी जानते हैं और ना हिन्दी? हम पूरे विश्व के समक्ष अपनी हंसी उड़वाने को तैयार हैं, मगर अपनी मातृभाषा नहीं अपनाएँगे।

आपने कभी अँग्रेज़ीदाँ लोगों के मुँह से H.M.T. शब्द ज़रूर सुना होगा। H.M.T. अर्थात ‘हिन्दी मीडियम टाइप’। यह शब्द हमारे काले अंग्रेजों ने हिन्दी भाषियों का अपमान करने हेतु गढ़ा है किन्तु मैं गर्व से कहना चाहूंगी कि यदि भाषायी स्वाभिमान का अर्थ HMT होना है तो मैं हूँ H.M.T। हम हिन्दी से भागने की चाहे लाख कोशिश कर लें मगर एक बार सोचकर ज़रूर देखें कि क्यों बहुत खुशी या गहरे दर्द में हम मातृभाषा मे ही हँसते या रोते हैं? क्यों हम दोस्तों के साथ मस्ती करते हुए हिन्दी पर आ ही जाते हैं? क्यों हम चोट लगने पर मातृभाषा में ही चिल्लाते हैं? गुस्सा आने पर गालियां भी हिन्दी में सुनाते हैं! हमारी तो दादी-नानी की कहानियाँ भी एचएमटी हैं... हिन्दी ही जानती हैं।

तब अपनी भाषा पर शर्म करना छोड़िए। अपनी भाषा पर शर्म करके आज तक कोई देश महान नहीं बना है। आशा है कि कभी ना कभी हम अपनी धरोहर, अपनी संस्कृति व भाषा पर गर्व करना सीख ही जाएंगे।

Comments (Leave a Reply)

DigitalOcean Referral Badge